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हिंदी ब्लॉगिंग और आपकी सोच ? (चौथा भाग)

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विगत तीन पोस्ट में मैंने परिचर्चा के माध्यम से कई प्रबुद्ध जनों के विचारों से आप सभी को रूबरू कराया....विषय था हिंदी ब्लॉगिंग और आपकी सोच ?आईये इसी क्रम में कुछ और व्यक्तियों के विचारों से हम आपको रूबरू कराते हैं-




ब्लॉगों की दुनिया धीरे-धीरे बड़ी हो रही है. अभिव्यक्ति के अन्य माध्यमों के प्रति जन्मते अविश्वास के बीच यह बहुत ही महत्वपूर्ण घटना है. कोई भी आदमी अपनी बात बिना रोक-टोक के कह पाए, तो यह परम स्वतंत्रता की स्थिति है. परम स्वतंत्र न सिर पर कोऊ. यह स्वाधीनता बहुत रचनात्मक भी हो सकती है और बहुत विध्वंसक  भी. रोज ही कुछ नए ब्लॉग संयोगकों  से जुड़ रहे हैं. मतलब साफ है कि ज्यादा से ज्यादा लोग न केवल अपनी बात कहना चाह रहे हैं बल्कि वे यह भी चाहते हैं कि लोग उनकी बात सुने और उस पर प्रतिक्रिया व्यक्त करें. यह प्रतिक्रिया ही आवाज को गूंज प्रदान करती है, उसे दूर तक ले जाती है. जब आवाज दूर तक जाएगी तो असर भी करेगी. पर क्या हम जो चाहते हैं वह सचमुच कर पा रहे हैं? क्या हम ऐसी आवाज उठा रहे हैं जो असर करे? और सबसे महत्वपूर्ण बात ये कि हमें कैसे पता चले कि हमारी बात का असर हो रहा है या नहीं ?
दरअसल निजी और सतही स्तर पर गुदगुदाने वाले प्रसंगों से हटकर हम ब्लागरों को अपने समय की समस्याओं पर केन्द्रित होने की जरूरत है. भ्रष्टाचार, गरीबी, जातिवाद, साम्प्रदायिकता, सामाजिक रुढियों से उपजी दर्दनाक विसंगतियां और मनुष्यता का अवमूल्यन आज हमारे  देश की ज्वलंत समस्याएं  हैं. आदमी चर्चा से बाहर हो गया है, उसे  केंद्र में प्रतिष्ठित करना है. सत्ता के घोड़ों की नकेल कसकर रखनी है, ताकि  वे बेलगाम मनमानी दिशा में न भाग सकें.
  • डॉ. सुभाष राय
(मुख्य संपादक : दैनिक जनसंदेश टाईम्स ) 
किसी भी आंदोलन या संस्कृति का जब जन्म होता है तो बहुत से प्रारंभिक वर्ष उसकी प्रवृत्तियाँ स्पष्ट होने में चले जाते हैं। वह एक बिंदु की तरह होता है। उसमें से एक राह निकलेगी और पंक्ति बनेगी तो वह किस दिशा में जाएगी यह कोई नहीं कह सकता। हिंदी ब्लागिंग या चिट्ठाकारिता अभी इस स्थिति से ज़रा सा ही आगे बढ़ी है। वह कदंब के फूल की तरह बिंदु से कई दिशाओं में फूट तो पड़ी है पर उसकी सुगंध जन जन में बसना बाकी है।
  • पूर्णिमा वर्मन
( हिंदी पत्रिका अभिव्यक्ति/ अनुभूति की संपादक )

ब्लाग के बारे में अलग-अलग लोग अपने-अपने अनुसार धारणा बनाते हैं। पत्रकार इसे मीडिया के माध्यम के रूप में प्रचलित करना चाहते हैं और साहित्यिक रुचि के लोग इसका साहित्यिकीकरण करना चाहते हैं। मेरी समझ में ब्लाग अभिव्यक्ति का एक माध्यम है। अब यह आप पर है कि आप इसका उपयोग कैसे करते हैं। लेख, कविता, कहानी, डायरी, फोटो, वीडियो, पॉडकास्ट और अन्य तमाम तरीकों से आप ब्लाग की सहायता से अपने को अभिव्यक्त कर सकते हैं।
अभिव्यक्ति के इसी सिलसिले में ब्लाग में कबाड़ से लेकर कंचन तक तक सब कुछ मौजूद है। अगर अस्सी फ़ीसदी कचरा है तो बीस फ़ीसदी कंचन भी मौजूद है। अब यह हम पर है कि हम यहां कंचन की मात्रा कैसे बढ़ाते हैं।
  • अनूप शुक्ल
( फ़ुरसतिया के नाम से चर्चित हिंदी के प्रारंभिक ब्लॉगर )

My Photoवर्तमान में इंटरनेट आम आदमी की जिंदगी का अहम हिस्सा बनता जा रहा है। 21वीं शताब्दी के प्रारंभ में किसी ने कल्पना भी नहीं की थी कि इतनी जल्दी यह लोगों के जीवन स्तर को प्रभावित करेगा। आम उपयोक्ता प्रायः इ मेल, गाने, वाल पेपर, आदि सर्च करता है। इसके साथ ही उसका परिचय ब्लागिंग से भी हो जाता है। ब्लागिंग की शुरूआत हुए अभी अधिक समय नहीं हुआ है। अंग्रेजी के ब्लॉग इस शताब्दी के प्रारंभ में इंटरनेट पर आ गए थे। जिन्हंे अमरीकी इंटरनेट उपयोगकर्त्ताओं द्वारा बनाया गया था। हिंदी ब्लागिंग की विधिवत शुरूआत हुए अभी लगभग 7 वर्ष ही हुए हैं। यूनिकोड़ की सुविधा उपलब्ध हो जाने के बाद हिंदी तथा अन्य भारतीय भाषाओं में ब्लागिंग आसान हो गई है। ब्लागिंग के माध्यम से अपनी बात बिना किसी रूकावट या कांट छांट के दूसरों तक पहुंचाई जा सकती है। यह इस माध्यम का सुखद पहलू है।
  • अखिलेश शुक्ल
(संपादक : कथा चक्र )

My Photoएक समय वह था जब भजन, कीर्तन और प्रवचन को साहित्य का स्थान प्राप्त था किन्तु कालान्तर में पत्र-पत्रिकाओं और पुस्तकों ने इसका स्थान ले लिया लेकिन सन् 2003के बाद से हिन्दी में ब्लॉगिंग होने लगी और आज यह निरन्तर तेजी के साथ फल-फूल रही है। जिससे समाज को न केवल दिशा मिलती है बल्कि इससे समाज को तकनीकी और विकास की राह भी मिलती प्रतीत होती है। हमेशा नये-नये अन्वेषण, नये-नये विषयों पर आलेख भी ब्लॉगिंग के माध्यम से हमें मिलने लगे हैं।यह तो सर्वविदित है कि ब्लॉगिंग का माध्यम इण्टरनेट ही है और इण्टरनेट न क्षेत्रीय है, न एक देशीय, यह तो सार्वभौमिक है। इसलिए इसमें जो भी साहित्य-सामग्री है उसमें विभिन्न सभ्यताओं और संस्कृति की झलक दृष्टिगोचर होती है। जिससे हमें विभिन्न स्थानों, क्षेत्रों और विभिन्न देशों की संस्कृति के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी मिलती है।
  • डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक"
( सुप्रसिद्ध साहित्यकार और हिंदी के चर्चित ब्लॉगर )

आने वाले समय की चुनौतियों की बात करें तो हिंदी ब्लॉगिंग में विषयवार आधारित लेखन को लेकर ब्लॉगर्स को सजग होना होगा । ये इस लिए भी महत्वपूर्ण हो जाता है क्योंकि जब हिंदी ब्लॉगिंग अपने आर्थिक पक्ष की ओर बढेगी तो फ़िर पाठक और उस ब्लॉग पर सामग्री की तलाश में आता हर कोई किसी न किसी खास विषय को तलाशता वहां पहुंचेगा । एक दूसरी महत्वपूर्ण बात जो अभी हिंदी ब्लॉगिंग में नहीं आ सकी है वो है ब्लॉगर का एक नागरिक पत्रकार की भूमिका में खुल कर नहीं आ पाना । हालांकि इसकी अपेक्षा शुरूआती दौर में ही करना उचित नहीं होगा लेकिन हिंदी ब्लॉगिंग अपने तेवरों में तीखापन और एक हद तक आम आदमी का ध्यान तभी खींच सकेगी जब वहां वो खबरें , वो बातें , वो जानकारियां साझा की जाएंगी जो कहीं अन्यत्र आना लगभग नामुमकिन सा है । विकीलीक्ज़ ने रास्ता दिखा ही दिया है कि अंतर्जाल की ताकत के साथ क्या और कितना किया जा सकता है । उम्मीद की जानी चाहिए कि हिंदी अंतर्जाल भी आने वाले कुछ वर्षों में ही सरकार , प्रशासन , मीडिया , साहित्य ..सभी क्षेत्रों में दखल देते हुए एक ऐसा बिंदु बन जाएगा जिसकी उपेक्षा करना आसान नहीं होगा ।
  • अजय कुमार झा
( हिंदी ब्लॉगिंग के वेहद समर्पित ब्लॉगर)
................जारी है परिचर्चा मिलते हैं एक विराम के बाद 

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