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Channel: ब्लॉग परिक्रमा
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केवल मनोरंजन के उद्देश्य से प्रकाशित हुआ था वर्ष २००७ का विश्लेषण

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वर्ष -२००७ में चिट्ठाजगतकी गतिविधियों पर , हमारा यह काव्य विश्लेषण परिकल्पनापर पहली बार प्रकाशित हुआ था । यह पहल अनायास ही मेरे द्वारा की गयी । इस विश्लेषण के पीछे किसी भी प्रकार का पूर्वाग्रह अथवा दुराग्रह नही था ,बल्कि केवल मनोरंजन के उद्देश्य से प्रकाशित किया गया था,किन्तु इस विश्लेषण को हिंदी ब्लॉगजगत ने काफी गंभीरता से लिया । फलत: वर्ष-२००८ और वर्ष-२००९ में मुझे वृहद् विश्लेषण के दौर से गुजरना पडा ....!


ब्लॉग परिक्रमा की शुरुआत मैं वर्ष-२००७ की उसी चर्चा से करने जा रहा हूँ, ताकि आप भी उस विश्लेषण से वाकिफ हो सकें ।

() रवीन्द्र प्रभात



विश्लेषण-२००७


कुछ खट्टा - कुछ मीठा है ,
ब्लॉगजगतका हाल !
आओ तुम्हें सुनाएँ ,कैसे बीता साल !!


कहीं राड़- तकरार था , कहीं प्यार - इजहार !
तोल-मोल में व्यस्त थे , हिन्दी -चिट्ठाकार !!


खूब लुटाये "ज्ञान"ने , ज्ञान का अक्षय कोष !
और "सारथी"ने किये , हिन्दी का जयघोष !!


कहीं हास व व्यंग्य है , कहीं तकनिकी ज्ञान !
ब्लोगर के घर हो रहे , नित्य नया संधान !!


ब्लॉगजगत में "तश्तरी"बनकर के अपबाद !
घूम रहे हैं आजकल , भारत में निर्बाध !!"

चिट्ठा "
नए कलेवर में , यत्र-तत्र- सर्वत्र !
"अलोक"ढूँढते रह गए , हिन्दी मापक यंत्र !!


कांव- कांव"काकेश "के , कभी न माने हार !
नए शोध में व्यस्त हैं , अपने " अमर कुमार "!!


अजब यहाँ संयोग है , शब्द- शब्द में प्यार !
"महावीर "की साधना , "ममता"का श्रृंगार !!


कहीं "अनिता"दर्शन में , कहीं "साध्वी ''संग !
"मीनाक्षी"ने मिला दिए , चिंतन में हीं भंग !!


मोती को खंगाल के , फेंक रहे हैं सीप !
बाँट रहे हैं रोशनी , " दीपक भारतदीप " !!


"रवि रतलामी "
ने मियाँ , खूब जमाये रंग !
शब्द-शब्द साहित्य में , सम्मानों के संग !!


"परमजीत"
की जीत हुई , फिर से आये
"राज"
फिल्म समीक्षा कर-करके , व्यस्त हुए "दिव्याभ"!!


संवेदन - संसार में , हास बना हथियार !
लगा रहा" ठहाका "है , मुम्बई वाला यार !!


क्रमश: ....अभी जारी है

स्मृतियों के आईने में ब्लॉग विश्लेषण

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कल मैंने ब्लॉग परिक्रमा की शुरुआत वर्ष २००७ के विश्लेषण से किया था, प्रस्तुत है उस विश्लेषण की दूसरी कड़ी -

गूँज रहा है "रेडियो" "ई-मिरची" के संग !
"बाल किशन"का ब्लोग भी , खूब दिखाया रंग !!


"शब्द लेख"यह सारथी, और "संजय"उवाच !
"अंकुर गुप्ता"ढूंढ रहे, "हिन्दी पन्ना"आज !!


"ठुमरी"गाकर मस्त है, खूब निपोरे खीश !
विमल बेचारे सोचे , कहाँ गए हैं "श्रीश" !!


लाये विनोद "हसगुल्ले""संजय"देखें जोग !
" आशीष महर्षि"बोले, बनाबा दो अब योग !!


दूर खड़े ही सोचते, रह-रहकर"उन्मुक्त " !
"चक्रव्यूह "के व्यूह से, कब होंगे हम मुक्त !!





कोलकत्ते में "मीत"क्यों , खोज रहे हैं मीत !
गजल हुयी है बेवफा , खंडित हो गए गीत !!



"अन्तरध्वनि "में नीरज जी, " महक "बिखेरें आज !
छंद की गरिमा ढूंढें, " वाचस्पति अविनाश "!!


" अनुगुन्जन "और " इयता "सुन्दर सा है ब्लोग !

संकृत्यायन कह रहे , मेरा है यह शौक !!


" नोटपैड "पर लिखिये , जो जी में आ जाये !
या " कबाड़ "में फेंकिये , उल्टी- सीधी राय !!


" विनीत कुमार "की गाहे, और बगाहे बात !
" जोशिम "के संग गाईये , ग़ज़ल अगर हो याद !!


"पुनीत ओमर " " अर्बूदा " , "अनिल "कलम के साथ !
लिखें क्या अब ब्लोग में, पीट रहे हैं माथ !!


"नारद"घूमे ब्लोग पे, चाहे जागे सोय !
नर हो या नारायण हो, चर्चा सबकी होय!!


मतलब वाली बतकही, करती है दिन-रात !
अपनी भी "परिकल्पना"हो गयी है कुख्यात !!
यह क्रम अभी जारी है ..........

बडे ढोल में बड़ी पोल...

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परिकल्पना के पहले ब्लॉग विश्लेषणमें ज्यादा ब्लोग्स की चर्चा नहीं की जा सकी थी, क्योंकि तब सक्रिय ब्लोग्स की संख्या बहुत कम थी और कुछ गिने-चुने ब्लोगर ही लगातार अपनी सक्रियता को बनाए हुए थे ....ऐसे में आईये पहले ब्लॉग विश्लेषण की तीसरी और आखिरी कड़ी पर नज़र डालते हैं -

बडे ढोल म पोल बड़ी , यही मुकद्दस बात !
जिसका दिल जितना बड़ा , वही "चकल्लस " गात !!

नीरव की यह "वाटिका "देती है सन्देश !
अनवरत साहित्य बढे , प्रगति करे यह देश !!

"घुघूती बासूती"को, " कथाकार"की राय !
उत्तरोत्तर सोपान पे , नया साल ले जा य !!


" आलोक पुराणिक "बोले, " नीरज " जी को छोड़ !
चिट्ठा- चिट्ठा घूम के , लगा रहे हो होड़ !!



कुछ विनोद भी सुस्त है , निकल गया "अरमान"
"
मंगलम "कहते रहे, सबको दो सम्मान !!


" अनूप शुक्ल "श्रधेय हैं, करते नहीं" भदेस" !

सबको देते स्नेह से , शांति- सुख- सन्देश !!


अपना चिंतन बांचिये , देकर सबको प्यार !
सदीच्छा से भरा रहे, यह सुन्दर संसार !!


कुछ चिट्ठे नाराज हैं, अंकित नही है नाम !
खास-खास को छोड़ के , जोड़े हो क्यूं आम ? ?


भाई मेरे यह सोचो, कुछ तो हुआ कमाल !
पढा है जिसको मैंने , पूछा उसका हाल !!


बस इतनी सी बात है , ना समझे तो ठीक!
समझदार तो सबहीं हैं,समझ गए तो ठीक

() रवीन्द्र प्रभात

आओ बच्चो तुम्हें दिखाएँ झांकी ब्लोगिस्तान की ...

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हिंदी ब्लोगिंग की शुरुआत ०२ मार्च २००३ को हुई थी जब आलोक कुमार ने नौ दो ग्यारहनामक ब्लॉग का प्रकाशन किया ।ब्लाग के लिये चिट्ठा शब्द भी उन्होंने ही सुझाया। हिंदी के इस पहले ब्लोगर का कहना है कि htttp://directory.google.com/world/hindiके बारे में मुझे पता चला और मैं भी इसका स्वयंसेवी संपादक बन गया, रोज हिंदी के स्थलों की खोज होती थी । संपादन करते हुए एहसास हुआ कि हिंदी में कुछ सामग्री ही नहीं है । इससे कम बोलने वाले होते हुए भी यूनानी, कोरोयाई, जापानी, अरबी के अधिक स्थल है । बहुत दुःख हुआ फिर लगा कि यह काम तो हिंदी बोलने-लिखने वालों को ही करना है । जाल से इतनी चीजें मुफ्त में मिलती है तो हमारा भी कुछ फ़र्ज़ है वापस देने का , फिर सोचा कि क्यों न रोज कुछ न कुछ हिंदी में लिखूं ? कुल तीन लेखों के बाद यह बंद हो गया । फरबरी २००३ में गूगल ने ब्लोगर की कंपनी को खरीदा तो मुझे पता चला कि इस काम को स्वचालित तरीके से किया जा सकता है फिर शुरू कर दिया अपना ब्लॉग नौ दो ग्यारह ... !

वर्ष-२००३-२००४ को हिंदी ब्लोगिंग का पूर्वाध काल कहा जा सकता है । इन दोनों वर्षों में हिंदी ब्लोगिंग का बहुत ज्यादा विकास नहीं हो पाया , किन्तु वर्ष २००४ के उत्तरार्ध में रवि रतलामी का एक आलेख अभिव्यक्ति में प्रकाशित हुआ जिसका शीर्षक था : अभिव्यक्ति का नया माध्यम : ब्लॉग। इस आलेख के आने के पूर्व तक अधिकाँश लोग जियोसिटीज डोट कोंम पर ही पी डी एफ फाईल संलग्न कर ब्लोगिंग का आनंद ले रहे थे । इस आलेख के प्रकाशन के पश्चात लोगों को ब्लॉग के मायने समझ में आने लगे और इस दिशा में लोगों का रुझान बढ़ता गया !

इस दौर के प्रमुख ब्लॉग हैं - इंदौर के देबाशीश का ब्लॉग नुक्ता चीनी, रवि रतलामी का हिंदी ब्लॉग ,पंकज नोरुल्ला, शजर बोलता है, अक्षर ग्रामकुछ बतकही, फ़ुरसतिया , मेरी कविताएँ,सिन्धियत, मेरा पन्ना, ठलुआ , शब्द साधना, गुरु गोविन्द, कटिंग चाय, समथिंग टू से, कुछ तो है जो कि और हाँ कबाजी आदि । आगे चलकर अमर कुमार जी के ब्लॉग कुछ तो है जो कि का सदस्य मैं भी बना । वर्ष -२००५ में जब हिंदी चिट्ठों की संख्या में तेजी से वृद्धि हुई तब उस समय चिट्ठा चर्चा की शुरुआत हुई ।
वर्ष-२००५ के उत्तरार्ध में हिंदी ब्लॉग की संख्या एन केन प्राकेण १०० हुई । हिंदी के प्रमुख ब्लॉग और उनकी ताज़ा पोस्टिंग के बारे में देबाशीश ने माइजावासर्वर पर हिंदी का पृष्ठ चिठ्ठा विश्वबनाया , जहाँ हिंदी ब्लॉगर्स के परिचयों के साथ ही ताज़ा ब्लॉग्स के सारांश (पूरे ब्लॉग के लिंक सहित) देखे जा सकते थे . इसी प्रकार वेबरिंग पर भी हिंदी चिठ्ठाकारों की जालमुद्रिका बनी थी इसी दौरान !हलांकि वर्ष-२००५ में मनीष कुमार का Ek Shaam Mere Naamअस्तित्व में आ गया था , किन्तु यह रोमन में लिखा जा रहा था , वर्ष-२००६ में मनीष कुमार एक शाम मेरे नामसे दूसरा ब्लॉग वर्ष-२००६ में पुन: लेकर आये जिसमें उन्हीनें देवनागरी लिपि में सुन्दर संस्मरण प्रस्तुत किया । सकारात्मक ब्लोगिंग को बढ़ावा देने के उद्देश्य से इन्हें वर्ष -२००९ में संवाद सम्मान से सम्मानित भी किया जा चुका है ।


वर्ष-२००६ में हिंदी चिट्ठों का व्यापक बिकास हुआ और उस दौरान उड़न तश्तरी ,इन्द्रधनुष, अखंड,आलोक,पुष्टिमार्ग, प्रणव शर्मा,प्रशांत,भास्कर,विनीत,श्रवन,संतोष,IIFMights का चिट्ठा , थोड़ा और , श्रीश , ई पंडित , नारद, परिचर्चा,हमारा बेंजी, माझी दुनिया , निशिकांत वर्ल्ड, दीपांजलि , निरंतर , तरकशके साथ-साथ अनेक महत्वपूर्ण ब्लॉग अवतरित हुए । वर्ष-२००६ हिंदी चिट्ठों के विकास के लिहाज से महत्वपूर्ण अवश्य रहा किन्तु महत्वपूर्ण सामग्री परोसने के लिहाज से बहुत उपयोगी नहीं रहा । हिंदी चिट्ठों का व्यापक बिकास हुआ वर्ष-२००७ में और इस दौरान चिट्ठों की संख्या दो हजार को पार कर गयी । ``


वर्ष -२००७ में हिंदी चिट्ठों की संख्या ज्यादा नहीं थी, लगभग तीन हजार के आसपास थी , इसीलिए ब्लॉग विश्लेषण के अंतर्गत परिकल्पना पर केवल साठ महत्वपूर्ण ब्लोग्स की हीं चर्चा की जा सकी थी , इनमें प्रमुख है -"ज्ञानदत्त पाण्डेय का मानसिक हलचल " , "सारथी" ,"उड़न तश्तरी " , "अलोक" ,"काकेश " , " अमर कुमार "!!, "महावीर " , "अनिता" , "साध्वी '' , "मीनाक्षी" , " दीपक भारतदीप " , "रवि रतलामी " ,"परमजीत" , "दिव्याभ"!! ," ठहाका " , रेडियो ,ई-मिरची , "बाल किशन"का ब्लोग, "शब्द लेख सारथी,"संजय""अंकुर गुप्ता""हिन्दी पन्ना" , "ठुमरी""श्रीश" , "हसगुल्ले" , "संजय" , " आशीष महर्षि" ,
"उन्मुक्त " ! "चक्रव्यूह " "सचिन लुधियानवी" " कंचन सिंह चौहान" " सुखन साज़ " " इरफान " !!
"मीत" , "अन्तरध्वनि " , " महक "वाचस्पतिअविनाश " अनुगुन्जन ", " इयता " , " नोटपैड "" कबाड़ " , " विनीत कुमार " , " जोशिम " , "पुनीत ओमर " , " अर्बूदा " , "अनिल " , "नारद" "परिकल्पना" , "चकल्लस " , "वाटिका " , "घुघूती बासूती", " कथाकार" , " आलोक पुराणिक " , " नीरज ", अरमान", "मंगलम ", " भदेस" , " अनूप शुक्ल "की फुरसतिया, तेताला, बगीची , मेरी भावनाएं और रबीश कुमार का कस्बा आदि ।

वर्ष-२००८ आते आते ब्लोग्स की संख्या में तेजी से इजाफा हुआ और यह संख्या दस हजार के आसपास पहुँच गयी । वर्ष -2००८ में हिन्दी चिट्ठा जगत के लिए सबसे बड़ी बात यह रही कि इस दौरान अनेक सार्थक और विषयपरक ब्लॉग की शाब्दिक ताकत का अंदाजा हुआ । अनेक ब्लोगर ऐसे थे जिन्होनें अपने चंदीली मीनार से बाहर निकलकर जीवन के कर्कश उद्घोष को महत्व दिया लेखन के दौरान , तो कुछ ने भावनाओं के प्रवाह को । कुछ ब्लोगर की स्थिति तो भावना के उस झूलते बट बृक्ष के समान रही जिसकी जड़ें ठोस जमीन में होने के बजाय अतिशय भावुकता के धरातल पर टिकी हुयी नजर आयी ।

उसी वर्ष हुआ था मुंबई पर आतंकी हमला । इस हमला ने पूरे विश्व बिरादरी को झकझोर कर रख दिया एकवारगी । भला हमारे ब्लोगर भाई इससे अछूते कैसे रह सकते थे । कई चिट्ठाकारों के द्वारा जहाँ इस बीभत्स घटना की घोर निंदा की गयी , वहीं पाकिस्तान को इसके लिए खरी-खोटी भी सुनाई गयी । कनाडा के भारतीय ब्लोगर समीर लाल ने उड़न तस्तरीमें अपने कविताई अंदाज़ में जहाँ कुछ इस तरह वयां किया था " समझ नहीं पा रहा हूँ कि इस वक्त मैं शोक व्यक्त करुँ या शहीदों को सलाम करुँ या खुद पर ही इल्जाम धरुँ....!" वहीं अनंत शब्दयोगके एक पोस्ट में दीपक भारत दीप पाकिस्तान की पोल खोलते हुए कहा था , कि-"पाकिस्तान का पूरा प्रशासन तंत्र अपराधियों के सहारे पर टिका है। वहां की सेना और खुफिया अधिकारियों के साथ वहां के अमीरों को दुनियां भर के आतंकियों से आर्थिक फायदे होते हैं। एक तरह से वह उनके माईबाप हैं। यही कारण है कि भारत ने तो 20 आतंकी सौंपने के लिये सात दिन का समय दिया था पर उन्होंने एक दिन में ही कह दिया कि वह उनको नहीं सौंपेंगे। "सारथीपर अपने पोस्ट के माध्यम से जे सी फ्लिप शास्त्री ने कहा , कि- "आज राष्ट्रीय स्तर पर शोक मनाने की जरूरत है।


बम्बई में जो कुछ हुआ वह भारतमां के हर बच्चे के लिये व्यथा की बात है!राष्ट्रद्रोहियों को चुन चुन कर खतम करने का समय आ गया है!!शायद एक बार और कुछ क्रांतिकारियों को जन्म लेना पडेगा !!!"
वहीं ज्ञान दत्त पाण्डेय का मानसिक हलचलमें श्रीमती रीता पाण्डेय का कहना था कि "टेलीवीजन के सामने बैठी थी। चैनल वाले बता रहे थे कि लोगों की भीड़ सड़कों पर उमड़ आई है। लोग गुस्से में हैं। लोग मोमबत्तियां जला रहे हैं। चैनल वाले उनसे कुछ न कुछ पूछ रहे थे। उनसे एक सवाल मुझे भी पूछने का मन हुआ – भैया तुम लोगों में से कितने लोग घर से निकल कर घायलों का हालचाल पूछने को गये थे? "


कविताई अंदाज़ में अपनी भावनाओं को कुछ कठोर शब्दों में वयां किया था उस वर्ष कवि योगेन्द्र मौदगिलने कि "बच्चा -बच्चा आज जगह ले अपने स्वाभिमान को , उठो हिंद के बियर सपूतों , पहचानो पहचान को,हिंसासे ही ध्वस्त करो , हिंसा की इस दूकान को , रणचंडी की भेंट चढ़ा दो पापी पाकिस्तान को ...!" वहीं निनाद गाथामें अभिनव का कहना था , कि "किसको बुरा कहें हम आख़िर किसको भला कहेंगे,जितनी भी पीड़ा दोगे तुम सब चुपचाप सहेंगे,डर जायेंगे दो दिन को बस दो दिन घबरायेंगे,अपना केवल यही ठिकाना हम तो यहीं रहेंगे,तुम कश्मीर चाहते हो तो ले लो मेरे भाई,नाम राम का तुम्हें अवध में देगा नहीं दिखाई....!"हिन्दी ब्लोगिंग की देनमें एक पोस्ट के दौरान रचना का कहना था कि-"हर मरने वालाकिसी न किसी करकुछ न कुछ जरुर थाइस देश कर था या उस देश का थापर आम इंसान थाशीश उसके लिये भी झुकाओयाद उसको भी करोहादसा और घटनामत उसकी मौत को बनाओ...!"विचार-मंथन—एक नये युग का शंखनादमें सौरभ ने कहा था , कि-"कुरुक्षेत्र की रणभूमि के बीच खड़े होकर तो सिर्फ अर्जुन ने शोक किया था, पर आज देश के करोड़ों लोगों की तरह मैं भी मैदान के बीचो-बीच अकेला खड़ा हुआ हूँ—नितांत अकेला, शोकाकुल और ग़ुस्से से भरपूर। मेरे परिवार के 130 से ज्यादा सदस्य आज नहीं रहे. जी हाँ, ठीक सुना आपने, मेरे परिवार के सदस्य नहीं रहे. मौत हुई है मेरे घर में और मेरे परिवार को मारने वाले मेरे घर के सामने है, हँसते हुए, ठहाके लगाते हुए और अपनी कामयाबी का जश्न बनाते हुए. और मैं.... !" एक आम आदमीयानी ऐ कॉमन मन ने बहुत ही सुंदर प्रश्न को उठाया था , कि "कोई न कोई तो सांठ-गाँठ है इन मुस्लिम नेताओं, धार्मिक गुरुओं तथा धर्मनिरपेक्षियों (सूडो) के बीच....!"मेरी ख़बरमें ओम प्रकाश अगरवाल ने कहा था , कि "हमारे पढ़े-लिखे वोटर पप्पुओं के कारण फटीचर किस्म के नेता चुने जा रहे हैं .....!"

कुछ अनकहीमें श्रुति ने तीखे स्वर में कहा , कि - "कहाँ है राज ठाकरे । मुंबई जल रही है , जाहिर है नेताओं की कमीज पर अब दाग काफी गहरे हो चुके हैं । " वहीं इयता पर कुछ अलग स्वर देखने को मिला था उस दौरान , मगर सन्दर्भ है मुंबई का हमला हीं, कहते हैं कि "इस दौरान शराब की बिक्री में ७० फीसदी की कमी आयी । मयखाने खाली पड़े थे और शराबी डर के भाग लिए थे । नरीमन पॉइंट पर दफ्तर बंद है । किनारे पर टकराती सागर की लहरों के पास प्रेमी जोड़े नही हैं । सागर का किनारा वीरान हो गया है । बेस्ट की बसों में कोई भीड़ नही है ...!"

इस सब से कुछ अलग हटकर दिल एक पुराना सा म्यूज़ियमहैपर मुंबई धमाकों में शहीद हुए जवानों की तसवीरें पेश की गयी , जो अपने आप में अनूठा था । वहीं हिन्दी ब्लॉग टिप्सपर ताज होटल का विडियो लगाया गया , जहाँ ताज की पुरानी तसवीरें देखी जा सकती है ।

यहाँ तक कि मुंबई हमलों से संवंधित पोस्ट के माध्यम से वर्ष के आखरी चरणों में एक महिला ब्लोगर माला के द्वारा विषय परक ब्लॉग लाया गया , जिसका नाम है मेरा भारत महानजसके पहले पोस्ट में माला ने कहा कि -"हमारी व्यापक प्रगति का आधार स्तम्भ है हमारी मुंबई । हमेशा से ही हमारी प्रगतिहमारे पड़ोसियों के लिए ईर्ष्या का विषय रहा है । उन्होंने सोचा क्यों न इनकी आर्थिक स्थिति को कमजोड कर दिया जाए , मगर पूरे विश्व में हमारी ताकत की एक अलग पहचान है , क्योंकि हमारा भारत महान है । "

इन हिंदी ब्लोग्स के अतिरिक्त वर्ष-२००८ में जो ब्लोग्स अपनी उपस्थिति से हिंदी ब्लॉगजगत का ध्यान अपनी ओर खींचने में सफल रहे उनमें प्रमुख है - लोकरंग , कुछ अलग सा , शब्दों का सफर , -ठुमरी , खेत खलियान , खलियान , ओडीसा और कंधमाल के आंसू , मेरी प्रतिक्रया , बिदेसिया , दालान , सांई ब्लॉग ,सुखनसाज़ , महक , अर्श , युगविमर्श , अरूणाकाश, महाकाव्य , मीत , "कुछ मेरी कलम से " , -"पारुल…चाँद पुखराज का" , "डॉ. चन्द्रकुमार जैन " , -"क्षणिकाएं " , मीत , "दिशाएँ " , -"प्रहार " , "दिल की बात '' , "दिल की बात '' , हिंद युग्म , परिकल्पना , “ रचनाकार “ , “ अभिव्यक्ति “ , “साहित्यकुंज” , “वाटिका “ , "गवाक्ष ", “ सृजनगाथा “ ," महावीर" " नीरज ""विचारों की जमीं""सफर " " इक शायर अंजाना सा…" "भावनायें... " , "ठहाका " , हिंदी जोक्स , तीखी नज़र , बामुलाहिजा , चिट्ठे सम्बंधित कार्टून , चक्रधर का चकल्लस , अज़ब अनोखी दुनिया के ,अविनाश वाचस्पति , यूँ ही निट्ठल्ला..... , डूबेजी , दीपक भारतदीप की शब्दज्ञान- पत्रिका , निरंतर , अनुभूति कलश , हास्य कवि दरबार , “समतावादी जन परिषद् “ , “ इंडियन बाईस्कोप डॉट कॉम “ , मनोज बाजपेयी , -“ कबाड़खाना “ , रवीश कुमार , “ प्राइमरी का मास्टर “ , “एक हिंदुस्तानी की डायरी“ , “अदालत “ , “ अखाडे का उदास मुगदर “ , स्वास्थ्य चर्चा , गत्यात्मक ज्योतिष , सच्चा शरणम , स्वप्न लोक , "Raviratlami Ka Hindi Blog ", उन्मुक्त , छुट-पुट , "॥दस्तक॥ , सुनो भाई साधो........... , अंकुर गुप्ता का हिन्दी ब्लाग , हिन्दी ब्लॉग टिप्स , Control Panel कंट्रोल पैनल , e-मदद , नौ दो ग्यारह , समोसा बर्गर , तकनीकी दस्तक , मानसिक हलचल...... /सारथी... /hindiblogosphere .../टेक पत्रिका.../ Blogs Pundit... /हि.मस्टडाउनलोड्स डॉटकॉम... /Vyakhaya... /दुनिया मेरी नज़र से - world from my eyes!!... /घोस्ट बस्टर का ब्लॉग... /ज्ञान दर्पण... /Cool Links वैब जुगाड़... /अक्षरग्राम... /लिंकित मन... /मेरी शेखावाटी..., -तस्लीम ,तीसरा खम्बा., भडास , भड़ास ब्लॉग, मुहल्ला , भोजपुर नगरिया , मिथिला मिहिर , भड़ास ४ मीडिया , लोकसंघर्ष , नुक्कड़ ,मनीष कुमार का मुसाफिर हूँ यारोंआदि ।

समग्र विश्लेषण के क्रम में यह पाया गया कि वर्ष-२००८ में शब्दावली में अग्रणी रहे अजित वाडनेकर, सकारात्मक टिपण्णी में अग्रणी रहे अनूप शुक्ल , साफ़गोई में अग्रणी रहे डॉ अमर कुमार, विज्ञान में अग्रणी रहे डा.अरविन्द मिश्रा , व्यंग्य में अग्रणी रहे अविनाश वाचस्पति, हास्य में अग्रणी रहे अशोक चक्रधर, तकनीकी पोस्ट में अग्रणी रहे उन्मुक्त, सामुदायिक गतिविधियों में अग्रणी रहे जाकिर अली रजनीश, कानूनी सलाह में अग्रणी रहे दिनेश राय द्विवेदी, सिनेमा संवंधित फीचर में अग्रणीरहे दिनेश श्रीनेत, चिंतन में अग्रणी रहे दीपक भारतदीप, विनम्र शैली में अग्रणी रहे नीरज गोस्वामी , क्षेत्रीय भाषा भोजपुरी में अग्रणी रहे प्रभाकर पांडे, सकारात्मक प्रतिक्रया में अग्रणी रहे पंकज अवधिया, सकारात्मक सोच में अग्रणी रहे महेंद्र मिश्रा, तकनीकी सृजन में अग्रणी रहे रवि रतलामी, शिक्षा- दीक्षा में अग्रणी रहे शास्त्री जे सी फिलिप, ज्योतिष में अग्रणी रही श्रीमती संगीता पुरी, प्रशंसा -प्रसिद्धि में अग्रणीरहे समीर लाल, गीतात्मकता में अग्रणी रहे राकेश खंडेलवाल और सामयिक सोच -विचार में अग्रणी रहे ज्ञान दत्त पांडे आदि !

अभी जारी है ........

हिंदी ब्लोगिंग का शैशव काल

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जैसा पिछले पोस्ट में मैंने बताया कि हिंदी ब्लोगिंग की शुरुआत ०२ मार्च २००३ को हुई थी और हिंदी का पहला अधिकृत ब्लॉग होने का सौभाग्य प्राप्त है नौ दो ग्यारहको । वर्ष-२००३-२००४ हिंदी ब्लोगिंग का पूर्वार्द्ध काल है । इन दोनों वर्षों में हिंदी ब्लोगिंग का बहुत ज्यादा विकास नहीं हो पाया, यह क्रम कमोवेश वर्ष-२००७ तक चला । वर्ष-२००८ में हिंदी ब्लॉग निर्माण में अप्रत्याशित ढंग से वृद्धि हुई और वर्ष-२००९ आते- आते वृद्धि दर एक सम्मानजनक सोपान पर पहुँचने में सफल रही ।

ऐसे में वर्ष-२००३ से वर्ष-२००७ का काल हिंदी ब्लोगिंग के लिए शैशव काल रहा । इस दौरान साधन और सूचना की सर्वाधिक न्यूनता रही , किन्तु कुछ समर्पित ब्लोगरों ने मिलकर व्यापक प्रयास किये ताकि हिंदी में ब्लोगिंग की ताकत का अंदाजा हो सके । अलग-अलग देशों में रहने वाले ब्लोगरों के कुछ समूह ने हिंदी ब्लोगिंग को संस्थागत रूप देने और नए ब्लोगरों को प्रोत्साहित करने में अहम् भूमिका निभायी । उन्होंने तकनीकी गुत्थियां सुलझाने , नए ब्लोगरों को तकनीकी मदद देने, हिंदी टाईपिंग और ब्लोगिंग के लिए सोफ्टवेयरों का विकास करने तथा ब्लोगिंग को अधिकतम लोगों तक पहुंचाने के लिए ब्लॉग एग्रीगेटरों का निर्माण करने आदि की दिशा में व्यापक पहल की गुंजाईश बनाए रखा ।


हिंदी के प्रारंभिक चिट्ठाकारों में से एक श्री अनूप शुक्ल का कहना है कि -"विनय जैन सबसे शुरुआती ब्लॉगरों में हैं। इसके अलावा अतुल अरोरा, तरुण, आशीष श्रीवास्तव, प्रेम पीयूष ,ई-स्वामी ,रचना बजाज, रत्ना की रसोईआदि कई सक्रिय शुरुआती दौर के सशक्त ब्लोगर रहे हैं । मेरे समझ से वर्ष-२००६ महत्वपूर्ण सामग्री परोसने के लिहाज से बहुत उपयोगी रहा। आप अक्षरग्राम की कडियां देखें तो पायेंगे जैसे लेख अनुगूंज के माध्यम से उन दिनों लिखे गये वैसे अब नहीं लिखे जाते। मेरी समझ में हिंदी ब्लॉगजगत मे अब तक के सबसे बेहतरीन लेखों में से कुछ लेख अनूगूंज में मिलेंगे। इसी क्रम में बुनो कहानी, निरंतर, ब्लॉगनाद, पॉडभारती जैसे प्रयास हुये । बालेन्दु दधीच के लेख से पहले हिंदी ब्लॉगिंग पर एक लेख वागर्थ में छपा था जिसे अनूप सेठी जी ने लिखा था जिसका शीर्षक था- http://web.archive.org/web/20051211230314/http://vagarth.com/feb05/internet/index.htmहिंदी का नया चैप्टर- ब्लॉग!
इसलेख की भाषा हिंदी ब्लॉगिंग के बारे में देखिये-यहां गद्य गतिमान है। गैर लेखकों का गद्य। यह हिन्दी के लिए कम गर्व की बात नहीं है। जहां साहित्य के पाठक काफूर की तरह हो गए हैं, लेखक ही लेखक को और संपादक ही संपादक की फिरकी लेने में लगा है, वहां इन पढ़े-लिखे नौजवानों का गद्य लिखने में हाथ आजमाना कम आह्लादकारी नहीं है। वह भी मस्त मौला, निर्बंध लेकिन अपनी जड़ों की तलाश करता मुस्कुराता, हंसता, खिलखिलाता जीवन से सराबोर गद्य। देशज और अंतर्राष्ट्रीय। लोकल और ग्लोबल। यह गद्य खुद ही खुद का विकास कर रहा है, प्रौद्योगिकी को भी संवार रहा है। यह हिन्दी का नया चैप्टर है।


'चिट्ठाकारों की चपल चौपाल' के नाम से चर्चित 'अक्षर ग्राम'नेटवोर्क ऐसा ही एक समूह था , जिसके सदस्यों में पंकज नरूला (अमेरिका) , जीतेन्द्र चौधरी (कुबैत) , ई स्वामी, संजय बेंगाणी, अमित गुप्ता, पंकज वेंगाणी, निशांत वर्मा, विनोद मिश्रा, अनूप शुक्लऔर देवाशीष चक्रवर्तीशामिल थे । अक्षरग्राम नेटवर्क से जुड़ने वाले अन्तिम सदस्य थे श्रीश शर्मा ।देबाशीष चक्रवर्तीऔर अनूप शुक्लसमूह की ऍडवाइजरी में थे।

ई पंडितके अनुसार शुरु के चिट्ठाकारों में निम्न लोग थे - "पंकज नरूला,प्रत्यक्षा सिन्हा,रमण कौल, रविशंकर श्रीवास्तव, ई-स्वामी, जीतेंद्र चौधरी, अनुनाद सिंह, विनय जैन, प्रतीक पाण्डे, जगदीश भाटिया, मसिजीवी, उन्मुक्त, शशि सिंह, अतुल अरोरा, सृजन शिल्पी, सुनील दीपक, नीरज दीवान, श्रीश शर्मा, पूर्णिमा वर्मन, डॉ जगदीश व्योम आदि तथा बाद के चिट्ठाकारों में निम्न लोग थे- हरिराम, अफ़लातून देसाई, शास्त्री जे सी फिलिप, आलोक पुराणिक,ज्ञान दत्त पाण्डेय, काकेश, घुघूती बासूती, अभय तिवारी, नीलिमा, आभा, बोधिसत्व, अविनाश दास, गौरव सोलंकी, अर्जुन स्वरूप, अशोक कुमार पाण्डेय ,अतानु दे, अविजित मुकुल किशोर, बिज़ स्टोन, चंद्रचूदन गोपालाकृष्णन, चारुकेसी रामदुरई, हुसैन ,दिलीप डिसूजा, दीनामेहता ,मार्क ग्लेसर, नितिन पई, वरुण अग्रवाल, जय प्रकाश मानस, अनूप भार्गव, रबिश कुमार, अनाम दास, मनीष कुमार आदि ।"

इसप्रकार हिंदी ब्लोगिंग के शैशव काल ( वर्ष -२००३ से २००७ के मध्य ) के दौरान जगदीश भाटिया, मसिजीवी, आभा, , बोधिसत्व, अविनाश दास, अनुनाद सिंह, शशि सिंह,गौरव सोलंकी, पूर्णिमा वर्मन, अफ़लातून देसाई, अर्जुन स्वरूप, अतुल अरोरा, अशोक कुमार पाण्डेय ,अतानु दे, अविजित मुकुल किशोर, बिज़ स्टोन, चंद्रचूदन गोपालाकृष्णन, चारुकेसी रामदुरई, हुसैन , दिलीप डिसूजा, दीनामेहता ,डॉ जगदीश व्योम , ई-स्वामी, जीतेंद्र चौधरी,मार्क ग्लेसर, नितिन पई, पंकज नरूला,प्रत्यक्षा सिन्हा,रमण कौल, रविशंकर श्रीवास्तव, शशि सिंह,विनय जैन, वरुण अग्रवाल, सृजन शिल्पी, सुनील दीपक, नीरज दीवान, श्रीश शर्मा, जय प्रकाश मानस, अनूप भार्गव, शास्त्री जे सी फिलिप , हरिराम, आलोक पुराणिक,ज्ञान दत्त पाण्डेय , रबिश कुमार, अभय तिवारी, नीलिमा, अनाम दास, काकेश, मनीष कुमार,घुघूती बासूती , उन्मुक्तजैसे उत्साही ब्लोगर हिंदी ब्लोगिंग की सेवा में सर्वाधिक सक्रिय रहे ।


इसी दौरान 'तरकश समूह'ने भी ब्लॉग पोर्टल के रूप में एक अच्छी शुरुआत की । इसी दौरान सर्वाधिक चर्चित एग्रीगेटर 'नारद'के कुछ प्रतिद्वंदी एग्रीगेटर भी सामने आये , जिनमें ब्लोगवाणी, चिट्ठाजगतऔर हिंदी ब्लोग्स. कॉमप्रमुख है । हलांकि हिन्दीब्लॉग्स.कॉम नारद के कुछ समय बाद से शुरु हो गया था और ब्लॉगवाणी, चिट्ठाजगत आदि से बहुत पहले आ चुका था। वर्ष -२००६ और उसके बाद अपनी सक्रियता और सकारात्मक टिप्पणी के माध्यम से व्यापक प्रभामंडल विकसित करने का महत्वपूर्ण कार्य किया कनाडाई भारतीय समीर लाल समीरने ।


वर्ष-२००७ के अक्तूबर माह में प्रभा साक्षी. कौम (पोर्टल) के संचालक बालेन्दु दधिचीका एक आलेख 'ब्लॉग बने तो बात बने' कादंबनी में प्रकाशित हुआ । इस आलेख से प्रभावित होकर कई ब्लोगरने हिंदी ब्लोगिंग में अचानक अवतरित हुए और आज भी पूरी दृढ़ता के साथ सक्रिय हैं । इसी समय अविनाश वाचस्पति ने भी बगीचीके माध्यम से अपनी सार्थक उपस्थिति दर्ज कराई और जाकिर अली रजनीशविषय परक ब्लॉग तस्लीम लेकर आये । शैशव काल के उत्तरार्द्ध मेंडा. अरविन्द मिश्रने भी साई ब्लॉग के माध्यम से अपनी प्रतिभा को नयी धार देने की जबरदस्त कोशिश की । इन दोनों विषयपरक ब्लोग्स ने तो विज्ञान विषयक प्रस्तुति कर नयी क्रान्ति की प्रस्तावना करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी ।ज्ञान-विज्ञान नाम से सामूहिक ब्लॉग की शुरुआत आशीष गर्गने की शायद साई और तस्लीम के पहले।

कादंबनी में प्रकाशित बालेन्दु दधिची के आलेख 'ब्लॉग बने तो बात बने' से प्रेरित होकर ही शशि सिंघल, संगीता पुरी आदि कुछ महिला चिट्ठाकारों ने भी वर्ड प्रेस पर अपना ब्लॉग बनाया था । एक और प्रमुख महिला चिट्ठाकारारचनामई २००७ से ब्लॉग पर लिख रही हैं और २००८ से नारी ब्लॉग जो पहला ब्लॉग समूह हैं जहां नारियां अपनी बात कहती हैं को सक्रियाए रूप से चला रही हैं ।

बालेन्दु का ऐसा मानना है कि " ब्लोगिंग की दुनिया पूरी तरह स्वतंत्र, आत्म निर्भर और मनमौजी किस्म की रचनात्मक दुनिया है, इसलिए इसकी व्यापकता और विस्तृत प्रभामंडल का सहज आभास होता है । " उनके अनुसार -" समूचे ब्लॉग मंडल का आकार हर छ: महीने में दोगुना हो जाता है । "

हिंदी के बहुचर्चित ब्लोगर रवि रतलामीका मानना है कि " ब्लॉग वेब-लॉग का संक्षिप्त रूप है, जो अमरीका में '1997' के दौरान इंटरनेट में प्रचलन में आया। प्रारंभ में कुछ ऑनलाइन जर्नल्स के लॉग प्रकाशित किए गए थे, जिसमें जालघर के भिन्न क्षेत्रों में प्रकाशित समाचार, जानकारी इत्यादि लिंक होते थे, तथा लॉग लिखने वालों की संक्षिप्त टिप्पणियाँ भी उनमें होती थीं। इन्हें ही ब्लॉग कहा जाने लगा। ब्लॉग लिखने वाले, ज़ाहिर है, ब्लॉगर कहलाने लगे। प्राय: एक ही विषय से संबंधित आँकड़ों और सूचनाओं का यह संकलन ब्लॉग तेज़ी से लोकप्रिय होता गया। हिन्दी ब्लॉगिंग शैशवा-वस्था से आगे निकल करकिशोरावस्था को पहुँच रही है। अलबत्ता इसे मैच्योर होने में बरसों लगेंगे. अंग्रेज़ी के गुणवत्ता पूर्ण (हालांकि वहाँ भी अधिकांश - 80 प्रतिशत से अधिक कचरा और रीसायकल सामग्री है,), समर्पित ब्लॉगों की तुलना में हिन्दी ब्लॉगिंग पासंग में भी नहीं ठहरता. मुझे लगता है कि तकनीक के मामले में हिन्दी कंगाल ही रहेगी. बाकी साहित्य-संस्कृति से यह उत्तरोत्तर समृद्ध होती जाएगी ...!"

अविनाश वाचस्पतिका मानना है कि - "हिन्‍दी ब्‍लॉगिंग की दशा समाज से बेहतर को निकाल कर और अपने साथ लेकर बेहतरीन की ओर अग्रसर है जिससे समाज और ब्‍लॉगिंग की दिशा अपनेपन के प्रचार प्रसार में मुख्‍य भूमिका निभा रही है। इसका एक अहसास आप रोजाना कहीं-न-कहीं आयोजित हो रहे ब्‍लॉगर मिलन के संबंध में जारी की गई पोस्‍टो में महसूस कर सकते हैं और इसका सकारात्‍मक और स्‍वस्‍थ असर आप शीघ्र ही समाज पर महसूस करेंगे।" वहीँ हिंदी के प्रमुख अनाम ब्लोगर उन्मुक्त मानते हैं कि -"मैंने सबसे पहले चिट्ठी 'अभिनेता तथा गायक' नाम से २७ फरवरी २००६ नाम से लिखी। उस समय कम लोग लिखते थे। आजकल अक्सर हो जाने वाले व्यक्तिगत विवाद भी कम थे। अब यह संख्या भी बढ़ गयी है और विवाद भी।"


एक प्रश्न के उत्तर में समीर लाल समीरने स्वीकार किया है कि -"शुरूआती दौर में मैं हिन्दी में कुछ कविताएँ लिखने का प्रयास किया करता था और याहू पर ईकविता ग्रुप से २००५ में जुड़ा. वहाँ हिन्दी कविता वालों का जमावड़ा था और वहीं से हिन्दी ब्लॉग के बारे में जाना.जब मार्च २००६ में अपना ब्लॉग बनाया, तब तक मैं ईकविता ग्रुप में एक पहचान तो बना ही चुका था लेकिन निश्चित ही ब्लॉगजगत में आकर इतना स्नेह और लोकप्रियता हासिल होगी, यह कभी नहीं सोचा था.इसी माध्यम से जुड़ाव के बाद अनूप शुक्ला ’फुरसतिया’ जी ने मुझे गद्य लेखन के लिए उकसाया और बस तब से गद्य पद्य दोनों ही क्षेत्रों में हल्के फुल्के प्रयास जारी हैं. लोग पसंद कर लेते हैं, हौसला मिलता है और निरंतरता बनी हुई है ...!

"वर्ष-२००७ के शुरूआती क्षणों में अपनी सार्थक उपस्थिति से सभी अचंभित करने वाले ज्ञान दत्त पाण्डेय कहते हैं कि - " जब शुरू किया था (हिन्दी ब्लॉग की पहली पोस्ट २३ फरवरी २००७ की है), तो भाषा अटपटी थी। अब भी है। वाक्य यूं बनते थे, और हैं, मानो अंग्रेजी के अनुवाद से निकल रहे हों। फिर भी काम चल गया। लोग हिन्दी का ब्लॉगर मानने लगे।

शायद लिखने कहने का मसाला था। शायद हिन्दी-अंग्रेजी समग्र में जो पढ़ा था वह बेतरतीब जमा हो गया था व्यक्तित्व में। शायद भाषा की कमी कहने की तलब को हरा न पा रही थी। शायद लिख्खाड़ों का अभिजात्य और उनकी ठीक लिखने की नसीहत चुभ रही थी। लेखन/पत्रकारिता के क्षेत्र में छद्म इण्टेलेक्चुयेलिटी बहुत देख रखी थी, और वही लोग आपको नसीहत दें कि कैसे लिखना है, तो मन जिद पकड़ रहा था। अर्थात काफी बहाना था अप्रतिहत लिखते चले जाने का।"


पहली बार परिकल्पना पर ब्लॉग विश्लेषण वर्ष-२००७ में प्रस्तुत किया गया । इसी वर्ष विज्ञान, साहित्य, संस्कृति और मीडिया सेजुड़े कई महत्वपूर्ण ब्लॉग अस्तित्व में आये जो आगे चलकर व्यापक प्रभामंडल विकसित करने में सफलता पायी । उन्मुक्त और रवि रतलामी तकनी जानकारी देने की दिशा में पूरी प्रतिबद्धता के साथ लोकप्रिय हुए । पंकज सुबीर, नीरज गोस्वामीआदि ने अपनी साहित्यिक छवि को संवारने का महत्वपूर्ण कार्य किया वहीँ दिनेश राय द्विवेदीकानूनी सलाहकार के रूप में प्रख्यात हुए । इसी काल क्रम में सुप्रसिद्ध हास्य कवि अशोक चक्रधर ने भी हिंदी ब्लोगिंग को समृद्ध करने के उद्देश्य से ब्लॉग जगत में सक्रिय हुए और प्रमोद सिंह ने अजदकके माध्यम से हिंदी के नए शिल्प और बिंव से हिंदी पाठकों को रूबरू कराया ।

इस दौर के एक और ब्लोगर ने प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से हिंदी ब्लोगिंग को सींचने का कार्य किया वे हैं अमर कुमार , जिनका कहना है कि- "हिन्दी ब्लॉगिंग के इतिहास को एक समेटने का आपका प्रयास कितना श्रमसाध्य है, यह सोच कर ही झुरझुरी होती है, क्योंकि मैंनें वर्ष २००९ के उत्तरार्ध में इसकी योजना बनायी थी, किन्तु इसके सर्वेक्षण में ही मेरा दम निकल गया.. और फिर मुझे अपने यूँ ही निट्ठल्ला का मान रखना था, अतः मैं चुप हो बैठ गया । अपने सपने को यूँ साकार होते देख मुझे क्या लग रहा है, यह न बता पाऊँगा.. कुछ अच्छा या बहुत अच्छा जैसे शब्द गौण हैं यहाँ ।"
अभी जारी है .......

हिंदी ब्लोगिंग में महिलाओं की स्थिति

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महिला ब्लोगरों की बात की जाए तो पूर्णिमा वर्मन, प्रत्यक्षा सिन्हा, सारिका सक्सेना ,नीलिमा, रचना बजाज, सुजाता, निधि श्रीवास्तव, दीना मेहता ,रत्ना की रसॊई ,मानोषी चटर्जी , रचनाजैसी कई बेहतरीन महिला ब्लॉगर शुरुआती दौर में सक्रिय थीं।इसके अलावा डा० कविता वाचक्नवीभी शुरुआती दौर से ही सक्रिय हैं हिंदी ब्लॉगिंग में । ये सभी वर्ष-२००७ से पूर्व सर्वाधिक सक्रिय महिला ब्लोगर थीं,जबकि बरिष्ठ ब्लोगर रवि रतलामीका मानना है कि "हिन्दी की पहली महिला ब्लॉगर - इन्दौर की पद्मजाथी - जिनके ब्लॉग का नाम था - कही अनकही. यह ब्लॉग अब उपलब्ध नहीं है. शायद पद्मजा ने इसे मिटा दिया है. फिर भी इसे इंटरनेट आर्काइव पर यहाँ - http://web.archive.org/web/*/http://padmaja.blogspot.com/देख सकते हैं ।

ज्यादातर महिलायें वर्ष-२००७ या वर्ष-२००७ के बाद आयीं हैं और बड़ी सक्रियता से हर क्षेत्र की, हर विषय की बातें पुरसुकून ढंग से कह रही हैं,टिप्पणियों के माध्यम से गर्मागर्म बहसों में भी गंभीरता से हिस्सा ले रही हैं. हालांकि इनकी संख्या पुरुष ब्लॉगरों की तुलना में कम है, मगर जो भी हैं, वे सभी सार्थक ब्लॉगिंग कर रही हैं. आमतौर पर महिला ब्लॉगरों के लेखन में वेबजनित-कूड़ा-कचरा कम ही नजर आता है। ऐसा उनका मानना है ।


प्रांभिक दौर की सशक्त महिला ब्लोगर और मशहूर कवियित्री डा० कविता वाचक्नवीका कहना है कि- " याहू की बंद हो चुकी ब्लॉग सर्विस (याहू ३६० ब्लॉग सेवा ) में मैं सबसे पहले शामिल हुई । सन २००६ के उत्तर मध्य से मेरा `अथ' नाम का वहाँ ब्लॉग था. और भी बहुत लोगों के थे, पूर्णिमा वर्मन जी, प्रोफ़ेसर ऋषभदेव शर्मा जी, रामायण संदर्शन नाम से हमारे ही द्वारा संचालित एक और.... आदि ढेरों ब्लॉग थे. उन दिनों अक्षरग्राम की सेवा हुआ करती थी और सभी लोग उस पर अपनी चर्चाएँ व शंकाएँ, संसाधनों की जानकारी आदि से जुड़े मुद्दों पर संवाद आदि किया करते थे.... यह हमारे ब्लॉग उन दिनों की बात हैं. याहू ने २००७ के अंत में अपनी उस सेवा (याहू ३६० ब्लॉग सेवा ) को बंद करने की घोषणा कर दी थी, और २००८ में उसे बंद कर दिया था. तभी याहू मेष भी आया था. उस पर भी हमने अपना ब्लॉग कुछ समय संचालित किया था. पश्च्चात उस सेवा के भी बंद हो जाने के उपरांत ब्लॉग को स्पेसेज़ लाईव (माईक्रोसोफ्ट की ब्लॉग सर्विस) पर अपना ब्लॉग स्थानांतरित किया (KVACHAKNAVEE.SPACES.LIVE.COM ) पर अभी भी यह ज़िंदा है...!"

वर्ष-२००७ और उसके बाद सक्रिय महिला चिट्ठाकारों में -

हिंदी की प्रमुख महिला ब्लोगर स्वप्न मंजूषा अदाका मानना है कि -"यूँ तो महिलायें सामजिक, आर्थिक, राजनैतिक, हास्य-व्यंग इत्यादि सभी विषयों पर लिखती हैं...कहानी, कविता, ग़ज़ल, उपन्यास इत्यादि विधाओं में भी इनका योगदान ब्लॉग पर है...और ये अपनी नारीगत समस्याएं या उपलब्धिओं पर भी लिखने में कोई कोताही नहीं करतीं ...!"


अंतरजाल की लोकप्रिय कवियित्री रश्मि प्रभाका मानना है कि -"आपको हर विषय पर प्रविष्ठियां मिल जायेंगी नारियों के ब्लॉग पर ,किन्तु महिला ब्लोगरों के लेखन में साहित्यिक झुकाव ज्यादा नजर आता है और पारिवारिक, घरेलू तथा सामाजिक समस्याओं, स्त्री संबंधी समस्याओं पर हमारा लेखन ज्यादा केंद्रित होता है, राजनीतिक, व्यावसायिक मुद्दे पर कम । इसका सबसे बड़ा कारण है कि महिलायें सद्भावानात्मक और सकारात्मक चिंतन को ज्यादा महत्व देती हैं , क्योंकि यही उनकी प्रकृति का सबसे अहम् हिस्सा होता है ...!"

इस विषय पर हिंदी की प्रखर महिला ब्लोगर रश्मि रविजाका मानना है, कि "ब्लोगिंग में महिलाओं को कोई परेशानी का सामना तो नहीं करना पड़ता...पर उन्हें उतनी गंभीरता से नहीं लिया जाता...जगह बनाने में जरा समय लगता है.परज्यादा दिन उनका लिखा लोग नज़रंदाज़ नहीं कर पाते महिलायें आजकल हर विषय पर लिख रही हैं समसामयिक विषयों पर बड़ी गंभीरता से लिख रही हैं...कोई भी विषय अछूता नहीं है...!


वहीं एक और चर्चित महिला ब्लोगर आकांक्षा यादवका मानना है कि- "ब्लॉगिंग के क्षेत्र में महिलाओं की स्थिति बड़ी मजबूत है, वे तमाम विषयों पर अपनी रूचि के हिसाब से लिख रही हैं. तमाम महिला ब्लागर्स तो इससे परे प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में भी सक्रिय हैं. पर ब्लाग का एक सबसे बड़ा फायदा है कि यहाँ कोई सेंसर नहीं है, ऐसे में आपको जो चीज अपील करे उस पर स्वतंत्रता से विचार प्रकट सकती हैं. इस क्षेत्र में महिलाओं का भविष्य उज्जवल है, क्योंकि यहाँ कोई रूढिगत बाधाएं नहीं हैं....!"



वहीं हिंदी सशक्त लेखिका और ब्लोगर निर्मला कपिलामानती हैं कि-"यह सही है कि साधन और सूचना की न्यूनता के कारण ब्लोगिंग के प्रारंभिक चरण में महिलायें ज्यादा सक्रिय नहीं थी , किन्तु आज के दौर में महिलायें हिंदी ब्लोगिंग को नयी दिशा देने की ओर उन्मुख है और यह हमारे लिए कम संतोष की बात नहीं है !"




वहीं संगीता पुरीका अपने बारे में कहना है कि- "'गत्‍यात्‍मक ज्‍योतिष'की खोज के बाद ज्‍योतिष के रूप में ग्रहों के प्रभाव को दर्शाने की पुरानी विधा के वैज्ञानिक स्‍वरूप से लोगों का परिचय कराने के लिए ब्‍लॉगिंग कर रही हूं .. मैं बालेन्दु दधिची जी के कादंबनी में प्रकाशित आलेख से प्रभावित होकर वर्ष -२००७ के उत्तराद्ध में वार्ड प्रेस पर आई और आजतक पूरी दृढ़ता के साथ सक्रिय हूँ ...!" उल्लेखनीय है कि कादंबनी में प्रकाशित बालेन्दु दधिची के आलेख 'ब्लॉग बने तो बात बने' से प्रेरित होकर ही शशि सिंघलने भी अपना ब्लॉग बनाया था । एक और प्रमुख महिला चिट्ठाकारा रचनामई २००७ से ब्लॉग पर लिख रही हैं और २००८ से नारी ब्लॉग जो पहला ब्लॉग समूह हैं जहां नारियां अपनी बात कहती हैं को सक्रिय रूप से चला रही हैं ।

किरण राजपुरोहित नितिला का मानना है कि -"महिलाओ के हर विषय में ब्लॉग मोजूद है. उनकी विविधतता में भी रोज बढ़ोतरी हो रही है...!" लखनऊ कीरिचाकहती हैं कि -"वैसे आजतक तो कभी किसी का ब्लॉग ये सोच के नहीं पढ़ा की ब्लॉगर महिला है या पुरुष... जो भी अच्छा लगा बस पढ़ लिया...!"

वर्तमान समय मेंघुघूती बासूती, प्रत्यक्षा , नीलिमा, बेजी, संगीता पुरी, लवली, पल्लवी त्रिवेदी, अदा, सीमा गुप्ता, निशामधुलिका, लावण्या, कविता वाचक्नवी, अनीता कुमार, pratibhaa, mamta, रंजना [रंजू भाटिया ],Geetika gupta,वर्षा, डॉ मंजुलता सिंह, डा.मीना अग्रवाल,Richa,neelima sukhija arora, फ़िरदौस ख़ान, Padma Srivastava, neelima garg, Manvinder, MAYA, रेखा श्रीवास्तव, स्वप्नदर्शी, KAVITA RAWAT, सुनीता शानू , शायदा, Gyaana-Alka Madhusoodan Patel, rashmi ravija, अनुजा, अराधना चतुर्वेदी मुक्ति ,तृप्ति इन्द्रनील , सुमन मीत , साधना वैद , सुमन जिंदल, Akanksha Yadav ~ आकांक्षा यादव, उन्मुक्ति, मीनाक्षी, आर. अनुराधा, रश्मि प्रभा, संगीता स्वरुप, सुशीला पुरी, मीनू खरे,नीलम प्रभा, शमा कश्यप, अलका सर्वत मिश्र, मनीषा, रजिया राज, शेफाली पाण्डेय, शीखा वार्ष्णेय, अनामिका, अपनत्व, रानी विशाल, निर्मला कपिला, प्रिया,संध्या गुप्ता, वन्दना गुप्ता , रानी नायर मल्होत्रा, सारिका सक्सेना, पूनम अग्रवाल , उत्तमा, Meenakshi Kandwal, वन्दना अवस्थी दुबे, Deepa, रचना, Dr. Smt. ajit gupta,रंजना, गरिमा, मोनिका गुप्ता, दीपिका कुमारी, शोभना चौरे, अल्पना वर्मा, निर्मला कपिला, वाणीगीत, विनीता यशश्वी, भारती मयंक, महक, उर्मी चक्रवर्ती बबली , सेहर, शेफ़ाली पांडे, प्रेमलता पांडे, पूजा उपाध्याय,कंचन सिंह चौहान, संध्या गुप्ता , सोनल रस्तोगी, हरकीरत हीर, कविता किरण , अर्चना चाव , जेन्नी शबनम , ZEAL, वन्दना , mala , ρяєєтι , Asha , Neelima , डॉ. नूतन - नीति , सुधा भार्गव, Vandana ! ! ! , Dorothy , पारुल , किरण राजपुरोहित नितिला , नीलम , ज्योत्स्ना पाण्डेयजैसीमहिला ब्लागर्स नितांत सक्रिय हैं और अपने अपने क्षेत्र मे बहुत अच्छा लिख रही हैं ।

चिट्ठाचर्चापर चर्चा करने वाली ब्लॉग जगत की प्रमुख महिला चर्चाकारों में सुश्री नीलिमा, सुजाता, डा0 कविता वाचकनवी और संगीता स्वरुप गीतहैं जिनके द्वारा निरंतरता के साथ विगत २-३-४ वर्षों से पूरी तन्मयता के साथ चिट्ठा चर्चा की जा रही है । इसके अलावा एक और महिला चर्चाकार हैं वन्दना जिनके द्वारा चर्चा मंच पर लगातार अच्छे -अच्छे चिट्ठों से परिचय कराया जा रहा है । इन सभी महिलाओं ने हिंदी ब्लोगिंग में उल्लेखनीय योगदान दिया है ।

.......अभी जारी है

जानिए अपने प्रारंभिक ब्लोगरों को....

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गतांक से आगे बढ़ते हुए -

साझा संवाद, साझी विरासत, साझी धरोहर, साझा मंच आप जो मान लीजिये हिंदी ब्लॉग जगत की एक कैफियत यह भी है । विगत तीन कड़ियों में आपने अवश्य ही महसूस किया होगा कि हम इस आलेख के माध्यम से यही बातें पूरी दृढ़ता के साथ आपसे साझा करते आ रहे हैं , कुछ यादों, कुछ इबारतों और कुछ तस्वीरों के मार्फ़त । स्मृतियाँ सदैव सुखद ही होती हैं , वह चाहे जैसी भी हो ।

कहते हैं इतिहास के गर्भ में हमेशा भविष्य के पाँव होते हैं । नींव के पत्थर न हो तो अट्टालिकाएं कहाँ होंगी भला ? यह बात भी हमें मथती ही है । इसी बात के मद्देनज़र हम लगातार आपके साथ गुजरे वक़्त की यादों को साझा कर रहे हैं । तो आईये अपनी साझी विरासत को साझा करने के क्रम में आपसे रूबरू कराते हैं कुछ प्रारंभिक ब्लोगरों से -


पूर्णिमा वर्मन ( वर्ष-२००२ )
वेबसाईट:http://www.anubhuti-hindi.org/
पूर्णिमा वर्मन की साइट शुरू हुये ९ साल हो गये। इस लिहाज से उनकी सक्रियता २००२ से मानी जानी चाहिये http://www.nirantar.org/0505-vishesh
इसके अलावा उनका अपना ब्लॉग भी है।
परिचय: जन्म : २७ जून १९५५ शिक्षा : संस्कृत साहित्य में स्नातकोत्तर उपाधि, स्वातंत्र्योत्तर संस्कृत साहित्य पर शोध, पत्रकारिता और वेब डिज़ायनिंग में डिप्लोमा। कार्यक्षेत्र : पीलीभीत (उत्तर प्रदेश, भारत) की सुंदर घाटियों जन्मी पूर्णिमा वर्मन को प्रकृति प्रेम और कला के प्रति बचपन से अनुराग रहा। मिर्ज़ापुर और इलाहाबाद में निवास के दौरान इसमें साहित्य और संस्कृति का रंग आ मिला। पत्रकारिता जीवन का पहला लगाव था जो आजतक साथ है। खाली समय में जलरंगों, रंगमंच, संगीत और स्वाध्याय से दोस्ती। संप्रति : पिछले बीस-पचीस सालों में लेखन, संपादन, स्वतंत्र पत्रकारिता, अध्यापन, कलाकार, ग्राफ़िक डिज़ायनिंग और जाल प्रकाशन के अनेक रास्तों से गुज़रते हुए फिलहाल संयुक्त अरब इमारात के शारजाह नगर में साहित्यिक जाल पत्रिकाओं 'अभिव्यक्ति' और 'अनुभूति' के संपादन, हिन्दी विकीपीडया में योगदान देने और कलाकर्म में व्यस्त।


विनय जैन( वर्ष-२००३)
इनके प्रारंभिक ब्लॉग है :
http://hindi.blogspot.com/
परिचय:हिन्दी चिट्ठा जगत के वासी यहीं के एक और बाशिंदे, हिंदी ब्लॉग वाले विनय जैन से जरूर वाक़िफ होंगे। देखा जाए तो यह हिन्दी का पहला समूह ब्लॉग है, विनय के अलावा आलोक भी इस चिट्ठे पर अपना योगदान देते हैं। विनय हिन्दी भाषा के अखंड उपासक हैं और लो प्रोफाईल रखने में यकीन रखते हैं। विनय ने अक्टूबर 2002 में "हिंदी ब्लॉग" की शुरुआत की थी, उस समय हिन्दी चिट्ठाकारी के बारे में कम ही लोग जानते होंगे, विनय को याद है कि आलोक का ही पहला ऐसा चिट्ठा था जो पूर्णतः हिन्दी में लिखा जाता था। हालाँकि पहला हिन्दी चिट्ठा शायद विनय ने ही लिखा था पर नौ दो ग्यारह को ही वे हिन्दी का प्रथम सम्पूर्ण हिन्दी ब्लॉग मानते हैं। चिट्ठे के अलावा विनय गीतायन तथा मनबोल से भी संबद्ध हैं। गूगल के हिन्दी रूप के अनुवाद कार्य से भी विनय जुड़े रहे हैं।

दीना मेहता ( वर्ष-२००३)
इनके प्रारंभिक ब्लॉग है :http://www.dinamehta.com/
परिचय: दीना मुम्बई स्थित गुणात्मक शोध परामर्शदाता हैं। उन्हें 16 वर्ष का कार्यानुभव है। सामाजिक मीडीया और तकनलाजी में उनका शोध तब प्रारंभ हुआ जब 2003 में उन्होंने अपने ब्लॉग कि स्थापना की। एक शोधकर्ता और खोजी के रूप में दीना की सामाजिक तंत्र सेवाएँ, औज़ार तथा तकनीकों में विशेष रुचि है। इस से आते बदलाव कि परख के लिए वे दुनिया भर के लोगों के साथ बातचीत में मुबतला हैं। दीना वर्ल्ड चेनजिंग और द साउथ-ईस्ट एशिया अर्थक्वेक एंड त्सुनामीज़ ब्लॉग के लिए भी लिखती हैं , किन्तु हिंदी में नहीं अंग्रेजी में ! इस लिहाज से इन्हें हिंदी का ब्लोगर तो नहीं माना जा सकता मगर निरंतर आदि पत्रिकाओं में इनके हिंदी लेख प्रकाशित है इसीलिए यहाँ उल्लेख किया गया ।


देबाशीष चक्रवर्ती ( वर्ष-२००३-२००४ )

इनके प्रारंभिक ब्लॉग है :http://nuktachini.blogspot.com/
जिसे बाद में http://www.debashish.com/पर स्थानांतरित कर दिया गया ।
परिचय: पुणे स्थित एक सॉफ्टवेयर सलाहकार देबाशीष चक्रवर्ती हिन्दी के शुरुवाती ब्लॉगरों में से एक हैं। वे इंटरनेट पर Geocities के दिनों से सक्रिय रहे हैं, उन्होंने अक्टूबर 2002 में अपना अंग्रेज़ी ब्लॉग नल प्वाइंटर और नवंबर 2003 में हिन्दी चिट्ठा नुक्ताचीनी आरंभ किया। देबाशीष DMOZ पर संपादक रहे हैं। उन्होंने हिन्दी व भारतीय भाषाओं के ब्लॉग पर एक जालस्थल चिट्ठा विश्व भी शुरु किया था, यह हिन्दी व भाषाई ब्लॉग्स का सबसे पहला एग्रीगेटर था। उन्होंने वर्डप्रेस, इंडिक जूमला तथा आई जूमला जैसे अनेक अनुप्रयोगों के हिन्दीकरण में योगदान दिया है। 2005 में उन्होंने इस पत्रिका (जिसे पूर्व में निरंतर के नाम से जाना जाता था) का प्रकाशन अन्य साथी चिट्ठाकारों के साथ आरंभ किया। देबाशीष ने इंडीब्लॉगीज नामक वार्षिक ब्लॉग पुरुस्कारों की स्थापना भी की है। उन्हें बुनो कहानी तथा अनुगूंज जैसे सामुदायिक प्रयासों को शुरु करने का भी श्रेय जाता है। संप्रति ब्लॉग लेखन के अलावा हिन्दी पॉडकास्ट पॉडभारती पर सक्रिय हैं और यदाकदा अंग्रेज़ी व हिन्दी विकिपीडिया पर योगदान देते रहते हैं।


अनूप शुक्ला (२००३-२००४ )

इनके प्रारंभिक ब्लॉग है : http://fursatiya.blogspot.com/जिसे बाद में इनके द्वारा
http://hindini.com/fursatiyaपर स्थानांतरित कर दिया गया ।
परिचय:जन्म: 16 सितंबर, 1963. शिक्षा: बी.ई़.(मेकेनिकल), एम ट़ेक (मशीन डिज़ाइन). संप्रति: भारत सरकार रक्षा मंत्रालय के अंतर्गत आयुध निर्माणी में राजपत्रित अधिकारी। इंटरनेट पर नियमित लेखन। आपका हिन्दी चिट्ठा फुरसतिया खासा लोकप्रिय है। अनूप निरंतर पत्रिका के मुख्य संपादक रहे हैं और चिट्ठा चर्चा करते रहते हैं।

रविशंकर श्रीवास्तव(२००३-२००४ )
इनके प्रारंभिक ब्लॉग है :
http://raviratlami.blogspot.com/
परिचय:रविशंकर श्रीवास्तव नामचीन हिन्दी चिट्ठाकार, तकनीकी सलाहकार व तकनीकी अनुवादक हैं। आप मध्य प्रदेश शासन में टेक्नोक्रेट रह चुके हैं। आपने लिनक्स तंत्रांशों के हिन्दी अनुवादों के लिए भागीरथी प्रयास किए हैं। आपने गनोम, केडीई, एक्सएफसीई, डेबियन इंस्टालर, ओपन ऑफ़िस मदद इत्यादि सैकड़ों प्रकल्पों का हिन्दी अनुवाद स्वयंसेवी आधार पर किया है। वर्ष 2007-09 के लिए आप माइक्रोसॉफ़्ट मोस्ट वेल्यूएबल प्रोफ़ेशनल से पुरस्कृत हैं तथा केडीई हिन्दी टोली के रूप में प्रतिष्ठित राष्ट्रीय फॉस.इन 2008 से पुरस्कृत हैं। सराय द्वारा FLOSS फेलोशिप के तहत केडीई के छत्तीसगढ़ी स्थानीयकरण के महती कार्य के लिये, जिसके अंतर्गत उन्होंने 1 लाख से भी अधिक वाक्यांशों का छत्तीसगढ़ी में अनुवाद किया, रवि को 2009 के प्रतिष्ठित मंथन पुरस्कार द्वारा सम्मानित किया गया।

अतानु दे (वर्ष-२००४)


इनके प्रारंभिक ब्लॉग है :
अतानु डे का ब्लॉग दिशा २००४ की इंडीब्लॉगीज़ प्रतोयोगिता में बेस्ट इंडीब्लॉग के पुरस्कार से नवाज़ा गया है। अतानु मैकेनिकल इंजीनियर हैं और कंप्यूटर साईंस में स्नात्तकोत्तर। तकरीबन 6 साल उन्होंने सिलिकॉन वैली में ह्यूलेट पैकार्ड के लिये उत्पाद विपणन का कार्य किया। पाँच साल तक भारत, अमरीका और यूरोप की खाक छानी और फिर यह एहसास हुआ कि अर्थशास्त्र के बारे में तो कुछ जानते ही नहीं। तो उन्होंने बर्कले स्थित यूनिवर्सिटी आफ कैलिफॉर्निया से अर्थशास्त्र पढ़ा और भारतीय दूरसंचार क्षेत्र पर अपना शोधप्रबंध पूरा किया। अपने खाली समय में अतानु शास्त्रीय संगीत सुनते हैं, विपासना ध्यान लगाते हैं, भौतिक विज्ञान पढ़ते हैं, बौद्ध धर्म पर व्याख्यान देते हैं और अपने ब्लॉग पर लिखते हैं। उनकी कवितायें भी प्रकाशित हो चुकी हैं,किन्तु हिंदी में नहीं अंग्रेजी में ! इस लिहाज से इन्हें हिंदी का ब्लोगर तो नहीं माना जा सकता मगर निरंतर आदि पत्रिकाओं में इनके हिंदी लेख प्रकाशित है इसीलिए यहाँ उल्लेख किया गया ।


जीतेंद्र चौधरी ( वर्ष-२००४)
इनके प्रारंभिक ब्लॉग है :http://merapanna.blogspot.com/जिसे बाद में इनके द्वारा
http://www.jitu.info/merapanna/पर स्थानांतरित कर दिया गया ।
परिचय:जीतेंद्र चौधरी कुवैत में रहते हैं और लोकप्रिय हिंदी ब्‍लॉगर हैं। जीतू सॉफ्टवेयर और तकनीकी मार्केटिंग से जुड़े हैं लेकिन उनके 'मेरा पन्‍ना' ब्‍लॉग पर कंप्‍यूटर की तकनीकी जानकारी से लेकर भारत के गांव तक की बातें पढ़ने को मिल जाती है। इसके अलावा जीतू हिंदी चिट्ठों के एग्रीगेटर नारद के संचालक हैं।


अतुल अरोरा (वर्ष-२००४ )
इनका प्रारंभिक ब्लॉग है :http://rojnamcha.aroradirect.com/जिसे बाद में इनके द्वारा -
http://lifeinahovlane.blogspot.com/पर स्थानांतरित कर दिया गया ।
परिचय:जन्म: 7 मई 1970¸ कानपुर में। शिक्षा: पीपीएन कॉलेज कानपुर से बीएससी, एचबीटीआई से मास्टर ऑफ कंप्यूटर एप्लिकेशन। कार्यक्षेत्र: फिलाडेल्फिया में एक कंप्यूटर प्रोग्रामर की हैसियत से कार्यरत। सिनेमा¸ भ्रमण एवं फोटोग्राफी में रुचि। शौकिया तौर पर एक ब्लॉग रोजनामचा लिखना शुरू किया¸ जिसमें हल्के–फुल्के विषयों से लेकर राजनीति जैसे गंभीर विषयों पर निजी विचार व्यक्त कर छपास की निजी पीड़ा को बुझाया है। अमेरिका प्रवास में हुए अनुभवों में हास्यमिश्रण कर उन्हें एक छोटी पुस्तक का रूप देने की कोशिश है 'लाइफ इन ए एचओवी लेन' में। इनका हिन्दी चिट्ठा है रोजनामचा जो वर्ष 2004 में इंडीब्लॉगीज़ पुरस्कार से नवाजा़ जा चुका है।


ई-स्वामी (वर्ष-२००४ )
इनका प्रारंभिक ब्लॉग है :http://eswami.blogspot.com/जिसे बाद में इनके द्वारा -
http://hindini.com/hindiniपर स्थानांतरित कर दिया गया ।
परिचय:ई-स्वामी दरअसल इनका छद्मनाम है और इनके चिट्ठे का नाम भी! इन्दौर, मध्यप्रदेश में जन्मे, पले-बढे। कुछ समय दिल्ली में रहे, फ़िर अमरीका में बस गये। सू़चना-विज्ञान में स्नातक और स्नातकोत्तर शिक्षा प्राप्त।


पंकज नरूला (वर्ष-२००४)
इनका प्रारंभिक ब्लॉग है :
http://pnarula.com/
परिचय:मिर्ची सेठ पंकज नरूला की चिट्ठाकारी के प्रति प्रतिबद्धतता का उदाहरण इस बात से भी दिया जा सकता है कि उन्होंने ब्लॉगर पर अपना चिट्ठा प्रारंभ करने के पश्चात जल्दी ही अपनी निजी होस्टिंग की ओर रूख कर लिया। पंकज हिन्दी चिट्ठाजगत से कई अनूठे प्रयासों के प्रणेता रहे हैं, जिनमें चिट्ठाकारों की अपनी चौपाल अक्षरग्राम, सार्वजनिक विकि सर्वज्ञ, ब्लॉग एग्रीगेटर नारद इत्यादि। जब हिन्दी ब्लॉगज़ीन निरंतर की होस्टिंग की बात आई तो पंकज ने सहर्ष इसकी होस्टिंग अपने जालस्थल पर करने का जिम्मा उठाया था। अम्बाला में जन्मे पंकज चंडीगढ़ स्थित पंजाब इंजीनियरिंग कॉलेज से विद्युत अभियांत्रिकि में स्नातक हैं। पिछले कुछ वर्षों से वे सैन होज़े में सैप कंसलटिंग में कार्यरत हैं। ब्लॉग लेखन के ख्यात माध्यम मूवेबल टाईप एवं वर्डप्रैस का हिन्दी में स्थानीयकरण सम्पूर्ण करने के साथ साथ वे हिन्दी से जुड़े तकनीकी मुद्दों पर अपनी राय और भागीदारी देते रहते हैं। पंकज अपने चिट्ठों मिर्ची सेठ औऱ बीटा थॉट्स के ज़रिए अपनी बात कहते हैं। भाषा के सौन्दर्य एवं लेखन विन्यास में रुचि रखने वाले पंकज हिन्दी में अपनी बात करने को माँ से बात करने के समान ही मानते हैं। उनके लेखन का लहज़ा हल्का फुलका और मज़ाहिया होता है और यही बात पाठकों को भाती भी है।

संजय बेंगाणी( वर्ष-२००५ )
इनका प्रारंभिक ब्लॉग है :
www.tarakash.com/joglikhi
परिचय:वर्तमान में ये भारत के अहमादाबाद (कर्णावती) शहर से मीडिया कम्पनी चला रहे हैं , हिन्दी के प्रति मोह राष्ट्रवादी विचारधारा की छाया में पनपा. इन्हें जिस काम में सबसे ज्यादा आनन्द मिलता है वे है अभिकल्पना और वेब-अनुप्रयोगों का हिन्दीकरण. ये रेखाचित्र भी बना लेते हैं और थोड़ा-बहुत लिखने-पढ़ने में भी रूची है.

शशि सिंह ( वर्ष-२००५ )
इनका प्रारंभिक ब्लॉग है :
http://shashisingh.in/
परिचय:शशि सिंह की लेखनी ने टेलीविजन पर मायावी दुनिया गढ़ने से लेकर, पत्रकारिता में दुनिया की हकीकत बयां करने और फिर चिट्ठाकारी तक का सफर तय किया है। पत्रकारिता की मुख्यधारा छूट चुकी है लेकिन न तो मीडिया से नाता टूटा है और न ही खुद को पत्रकार कहना छोड़ा है। अब खुद को न्यू मीडिया के खांचे में पाते हैं, संप्रति मुम्बई में एक बहुराष्ट्रीय टेलीकॉम कंपनी में प्रबंधक हैं। यहां उन पर मोबाइल पर वेल्यू एडैड सर्विसेज़ के लिए उपयोगी बॉलीवुड व क्षेत्रीय भाषाओं की सामग्री की पहचान और विकास की जिम्मेदारी है। शशि की कर्मभूमि मुम्बई भले हो लेकिन जड़े झारखंड के कोयला खदानों से होती हुई बिहार में सरयू नदी के तीर तक जाती है। भोजपुरी, नागपुरी व हिंदी के अलावा उन्हें पसंद हैं बच्चे। घर में पत्नी व पुत्र वेदांत के अलावा माता पिता व दो छोटे भाई हैं।

जगदीश भाटिया ( वर्ष-२००५ )

इनका प्रारंभिक ब्लॉग है :http://aaina.jagdishbhatia.com/
परिचय:दिल्ली के जगदीश भाटिया हिन्दी के पुराने चिट्ठाकारों में शुमार हैं. अपने चिट्ठे आईना में हास्य, विचार, अर्थशास्त्र, समाज और राजनीति पर लिखते हैं.


अर्जुन स्वरूप ( वर्ष-२००५ )
इनके ब्लॉग अस्तित्व में नहीं है, किन्तु प्रोफाईल अस्तित्व में है :http://www.blogger.com/profile/4037548परिचय:अर्जुन स्वरूप रिचमंड, अमरीका स्थित बिज़नेस अनालिस्ट हैं। विविध विषयों पर इंडियन इकानॉमी ब्लॉग जैसे स्थापित मंचों पर नियमित लिखते रहते हैं।


अशोक कुमार पाण्डेय ( वर्ष-२००५ )

इनका प्रारंभिक ब्लॉग है :http://khetibaari.blogspot.com/
परिचय:अशोक कुमार पाण्डेय बिहार के कैमूर जिले में एक कृषक हैं। गांव के विद्यालयों में आरंभिक शिक्षा के बाद उच्च शिक्षा पटना व दिल्ली से पूर्ण की। पहले पत्रकारिता से जुड़े, फिर किसानी से। अपने हिन्दी चिट्ठे खेती बाड़ी में वे गांवों व किसानों से संबंधित विषयों पर लिखते हैं।

रमण कौल ( वर्ष-२००५ )
इनका प्रारंभिक ब्लॉग है :
http://kaulonline.com/uninagari/
परिचय:जन्म: 14 जून 1962 को बांडीपुर, कश्मीर में। शिक्षा: कश्मीर विश्वविद्यालय से मैकेनिकल इंजीनियरिंग में स्नातक। जॉन्स हॉफ्किन्स यूनिवर्सिटी, बाल्टीमोर में स्नातकोत्तर छात्र। इंटरनेट पर हिंदी का प्रयोग बढ़ाने के प्रयत्नों में कार्यशील। हिंदी के अतिरिक्त अंग्रेज़ी और मातृभाषा कश्मीरी में चिठ्ठाकारी करते हैं। अपने हिन्दी चिट्ठे 'इधर उधर की' पर विविध विषयों पर लिखते रहते हैं। हिंदी संबंधित विभिन्न चर्चा–समूहों, टीम–ब्लॉग, विकी और बुनो–कहानी जैसे प्रकल्पों में सक्रिय। 'यूनीनागरी' नामक इनके बनाये हिन्दी आनलाईन टाईपराईटर से जाल पर अनेकों ने हिन्दी लिखना सीखा है व सीख रहे हैं। संप्रति मेरीलैंड, अमरीका में रेलवे उपकरण अभिकल्प इंजीनियर।


राकेश खंडेलवाल ( वर्ष-२००५ )
इनका प्रारंभिक ब्लॉग है :http://geetkalash.blogspot.com/
जन्म १८ मई १९५३ को भरतपुर ( राजस्थान ) में हुआ और प्राथमिक शिक्षा भी भरतपुर में ही हुई। इन्हें घर में उपलब्ध कल्याण के सभी पुराण और विशेषांकों से पढ़ने का व्यसन प्रारंभ से ही लग गया था। भरतपुर की हिन्दी साहित्य समिति में उपलब्ध हज़ारों पुस्तकों ने दिशा निर्देशन दिया और लगभग १२-१३ वर्ष की उम्र में इन्होंने पहली कविता लिखी। भरतपुर की हिन्दी साहित्य समिति हर मास के अंतिम शनिवार को एक कवि सम्मेलन का आयोजन करती थी। वहीं से कविता लिखने का शौक बढ़ता चला गया और आज तक जारी है। इनकी "अमावस का चाँद" शीर्षक से एक पुस्तक भी प्रकाशित हुई है।

प्रत्यक्षा सिन्हा ( वर्ष-२००५ )
इनका प्रारंभिक ब्लॉग है :
http://pratyaksha.blogspot.com/
परिचय:जन्म: 26 अक्तूबर 1963 को गया, भारत में। सम्प्रति: प्रबंधक वित्त, पॉवरग्रिड आफ इंडिया लिमिटेड, गुड़गांव में कार्यरत। प्रत्यक्षा ने 2006 में लेखन शुरु कया, अनेक प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में उनकी कहानियाँ प्रकाशित हुई हैं। कहानियों के एक संकलन "जंगल का जादू तिल तिल" को 2007 में भारतीय ज्ञानपीठ ने प्रकाशित किया है।

डॉ जगदीश व्योम ( वर्ष-२००५ )

इनका प्रारंभिक ब्लॉग है :http://www.jagdishvyom.blogspot.com/
परिचय:जन्म: 1 मई 1960, शंभूनगला, फर्रुखाबाद, उ.प्र. शिक्षा: एम.ए.हिंदी साहित्य में, एम.एड., पीएचडी शोधकार्य: लखनऊ विश्वविद्यालय से 'कनउजी लोकगाथाओं का सर्वेक्षण और विश्लेषण' पर। भारत की लगभग सभी पत्र पत्रिकाओं में शोध लेख, कहानी, बालकहानी, हाइकु, नवगीत आदि का अनवरत प्रकाशन। आकाशवाणी दिल्ली, मथुरा, सूरतगढ़, ग्वालियर, लखनऊ, भोपाल आदि केंद्रों से कविता, कहानी, वार्ताओं का प्रसारण। शोधग्रंथ 'कनउजी लोकगाथाओं का सर्वेक्षण और विश्लेषण' के लिए 'प्रकाशिनी हिंदी निधि,कन्नौज' द्वारा सम्मानित। 'नन्हा बलिदानी' बाल उपन्यास के लिए पांच पुरस्कार। संप्रति केंद्रीय विद्यालय एस.पी.एम, होशंगाबाद, म.प्र. में पी.जी.टी. हिंदी पद पर कार्यरत। प्रकाशित कृतियां: काव्य संग्रह:– इंद्रधनुष,भोर के स्वर। शोध ग्रंथ:– कन्नौजी लोकगाथाओं का सर्वेक्षण और विश्लेषण, कन्नौजी लाकोक्ति और मुहावरा कोश। बाल उपन्यास:– नन्हा बलिदानी, डब्बू की डिबिया बाल कहानी संग्रह:– सगुनी का सपना संपादित कहानी संग्रह:– आज़ादी के आस–पास, कहानियों का कुनबा संपादन– हाइकु दर्पण, बाल प्रतिबिंब


अफ़लातून देसाई ( वर्ष-२००६)

इनके प्रमुख ब्लॉग है :http://samatavadi.wordpress.com/
परिचय:वाराणसी निवासी अफ़लातून देसाई समाजवादी जनपरिषद की उत्तर प्रदेश इकाई के अध्यक्ष व लोकप्रिय हिन्दी चिट्ठाकार हैं।


उपरोक्त जिनके प्रारंभिक ब्लॉग में डोमेन का पता उल्लिखित है वे अर्थात पंकज नरूला, शशिसिंह, रमन कौल। सभी ब्लॉगरों ने अपनी शुरुआत blogspot से या wordpress से की। इसके बाद अपने डोमेन पर गये। शशि सिंह ने इंडीब्लॉगीस इनाम भी जीता। साथ ही वर्ष-२००४ में ठेलुहा ब्लॉग भी शुरु हुआ था , जिसका पता है-http://www.theluwa.blogspot.com/

.....अभी जारी है

कुछ प्रारंभिक ब्लोगरों की विवादास्पद टिप्पणियाँ

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........गतांक से आगे

आज मैं ऐसे कुछ प्रारंभिक और चर्चित ब्लोगरों से आपको मिलवाने जा रहा हूँ , जो याहू पर अथवा अन्य समूह पर तो पूर्व से जुड़े हुए थे किन्तु गूगल की ब्लोगर सेवा अथवा अन्य सेवा पर बाद में सक्रिय हुए , यानी कि किसी न किसी रूप में जिनके वर्ष अथवा अन्य जानकारियों में विरोधाभास की स्थिति है , किन्तु उनके योगदान को यह हिंदी ब्लॉगजगत कभी नहीं भुला सकता .....!

भारतीय नागरिक - Indian Citizen (वर्ष -२००५ )
इनका पहला ब्लाग था naagrik.blogspot.comजिस पर पहली पोस्ट एक मई, २००५ पर लिखी गयी थी। बाद में इन्होने incitizen.blogspot.comपर लिखना प्रारम्भ किया। गूगल द्वारा मालवेयर पाने पर इसे ब्लाक करने के कारण इन्होने इसे indzen.blogspot.comपर शिफ्ट कर दिया है.


पी एस पावला (वर्ष -२००५ )
इनका प्रमुख ब्लॉग है :
http://bspabla.blogspot.com/

इनकी पहली पोस्ट प्रकाशित हुई थी वर्ष 2005 के सितम्बर माह में । केवल एक पोस्ट के बाद इस वर्ष कोई दूसरा पोस्ट नहीं आया । इन्हें कुछ पता नहीं था, ब्लॉग क्या होता है, इसकी उपयोगिता क्या है, कैसे लिखा जाए। सीखते सीखते आगे बढे । उस समय यूनीकोड से भी परिचय नहीं था, तो विभिन्न अक्षरों में लिखे का snapshot लेकर यहीं चित्र के रूप में चिपका कर खुश हो लेते थे । लगभग डेढ़ वर्ष में ही खुमार उतर गया क्योंकि स्वभाववश: इतनी ज़ल्दी-ज़ल्दी पोस्ट प्रकाशित करता था कि गूगल बाबा ने परेशान होकर तीन बार इन्हें स्पैमर मानते हुए चेतावनी दे डाली और खाता बंद करने की धमकी भी दे डाली। उनका एक प्रारंभिक ब्लॉग यह भी है जिसमें यह उल्लिखित है कि इन्होनें ब्लॉग लेखन का कार्य वर्ष-२००५ में शुरू किया, किन्तु इसमें कहीं भी हिंदी का प्रयोग नहीं है .....
http://web.archive.org/web/20061104141743/www.blogger.com/
परिचय :भिलाई इस्पात सयंत्र में कार्यरत ।

डा कविताबाचक्नवी (वर्ष -२००५ )
इनका प्रारंभिक ब्लॉग है :
याहू की बंद हो चुकी ब्लॉग सर्विस (याहू ३६० ब्लॉग सेवा ) में ये सबसे पहले शामिल हुई । सन २००६ के उत्तर मध्य से इनका `अथ' नाम का वहाँ ब्लॉग था ...याहू ने २००७ के अंत में अपनी उस सेवा (याहू ३६० ब्लॉग सेवा ) को बंद करने की घोषणा कर दी थी, तभी याहू मेष भी आया था. उस पर भी इन्होनें अपना ब्लॉग कुछ समय संचालित किया था. पश्च्चात उस सेवा के भी बंद हो जाने के उपरांत ब्लॉग को स्पेसेज़ लाईव (माईक्रोसोफ्ट की ब्लॉग सर्विस) पर अपना ब्लॉग स्थानांतरित किया (KVACHAKNAVEE.SPACES.LIVE.COM ) पर अभी भी यह ज़िंदा है...!"

श्री समीर लाल 'समीर' (वर्ष -२००५ -२००६ )
इनका प्रमुख ब्लॉग है :
http://udantashtari.blogspot.com/
परिचय : ये हिंदी चिट्ठाजगत के सर्वाधिक समर्पित,लोकप्रिय और सक्रिय हस्ताक्षर हैं । नए चिट्ठाकारों के लिए प्रेरणास्त्रोत श्री समीर लाल जी की लोकप्रियता का पैमाना यह है कि हर नया चिट्ठाकार इन्हें अपनी प्रेरणा का प्रकाश पुंज महसूस करता है। ब्लोगोत्सव-२०१० के दौरान साक्षात्कार में पूछे गए एक प्रश्न के उत्तर में इन्होनें कहा है कि - इन्होनेंब्लॉग लेखन मार्च २००६ से शुरु किया, किन्तु शुरूआती दौर में ये हिन्दी में कुछ कविताएँ लिखने का प्रयास किया करते थे और याहू पर ईकविता ग्रुप से २००५ में जुड़े ।वहाँ हिन्दी कविता वालों का जमावड़ा था और वहीं से हिन्दी ब्लॉग के बारे में इन्हें जानकारी हुई , जब मार्च २००६ में अपना ब्लॉग बनाया ।ये पेशे से कनाडा में चार्टड एकाउन्टेन्ट के पद पर कार्यरत हैं । परिवार में पत्नी साधना के अलावा पुत्र अनुपम और अनुभव, दोनों कम्प्यूटर ईंजिनियर हैं ।


शास्त्री जे सी फिलिप (वर्ष -२००४ -२००५ )
इनका प्रमुख ब्लॉग है :
http://sarathi.info/
इनका स्वयं का यह कहना है कि (ब्लोगोत्सव-२०१० के दौरान साक्षात्कार में पूछे गए प्रश्न के उत्तर में ) जब ये पांचवीं कक्षा में पढ़ते थे तब से ब्लोगिंग कर रहे हैं , अब ऐसे में इनके प्रमुख ब्लॉग के वर्ष को ही आधार मानकर चला जा रहा है ।
परिचय :शास्त्रीजे सी फिलिप एक समर्पित लेखक, अनुसंधानकर्ता, एवं हिन्दी-सेवी हैं. उन्होंने भौतिकी, देशीय औषधिशास्त्र, और ईसा के दर्शन शास्त्र में अलग अलग विश्व्वविद्यालयो से डाक्टरेट किया है. आजकल वे पुरातत्व के वैज्ञानिक पहलुओं पर अपने अगले डाक्टरेट के लिये गहन अनुसंधान कर रहे हैं.शास्त्रीजी का बचपन मध्य प्रदेश के ग्वालियर मे बीता था, जहां उन्होंने कई स्वतंत्रता सेनानियों से शिक्षा एवं प्रेरणा पाई थी. इस कारण उन्होंने अपने जीवन में राजभाषा हिन्दी की साधना और सेवा करने का प्रण बचपन में ही कर लिया था।


रचना
इनका प्रारंभिक ब्लॉग है :
http://mypoemsmyemotions.blogspot.com/2006/10/doo-pahlu.html

रचना जी के द्वारा टिप्पणी के माध्यम से पहले यह बताया गया कि "वे मई २००७ से ब्लॉग पर लिख रही हैं और २००८ से नारी ब्लॉग जो पहला ब्लॉग समूह हैं जहां नारियां अपनी बात कहती हैं को सक्रिय रूप से चला रही हैं । "

बाद में इनके द्वारा एक ब्लॉग का लिंक दिया गया जिसमें २००६ में पहली पोस्ट लिखी गयी है ! जब उन्हें स्वयं नहीं पता कि वि कब से हिंदी ब्लोगिंग में है तो हम आप पूरे दावे के साथ कैसे बता सकते हैं ? इस सन्दर्भ में पावला जी कि टिप्पणी आई है कि " आप लिखते हैं कि रचना मई २००७ से ब्लॉग पर लिख रही हैं और उनका प्रोफ़ाईल लिंक दिखाता है कि ब्लॉगर पर अगस्त २०१० से हैं तो सोचना पड़ता है कि क्या कितना सही है? "

अब ये स्वयं बताएं कि इनके किस वर्ष को प्रमाणिक माना जाएँ ?

.........अभी जारी है


हिंदी ब्लोगिंग की ताकत का जबरदस्त एहसास हुआ २००८ में

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वर्ष -2००८ में हिन्दी चिट्ठा जगत के लिए सबसे बड़ी बात यह रही कि इस दौरान अनेक सार्थक और विषयपरक ब्लॉग की शाब्दिक ताकत का अंदाजा हुआ । अनेक ब्लोगर ऐसे थे जिन्होनें अपने चंदीली मीनार से बाहर निकलकर जीवन के कर्कश उद्घोष को महत्व दिया लेखन के दौरान , तो कुछ ने भावनाओं के प्रवाह को । कुछ ब्लोगर की स्थिति तो भावना के उस झूलते बट बृक्ष के समान रही जिसकी जड़ें ठोस जमीन में होने के बजाय अतिशय भावुकता के धरातल पर टिकी हुयी नजर आयी ।
उस वर्ष हमारे देश के लिए जो सबसे त्रासद घटना के रूप में दृष्टिगोचर हुआ , वह था मुंबई पर हुयी आतंकी हमला । इस हमला ने पूरे विश्व बिरादरी को झकझोर कर रख दिया एकवारगी । भला हमारे ब्लोगर भाई इससे अछूते कैसे रह सकते थे । कई चिट्ठाकारों के द्वारा जहाँ इस विभत्स घटना की घोर निंदा की गयी , वहीं पाकिस्तान को इसके लिए खरी-खोटी भी सुनाई गयी ।


कनाडा के भारतीय ब्लोगर समीर लाल ने उड़न तस्तरीमें अपने कविताई अंदाज़ में जहाँ कुछ इस तरह वयां किया " समझ नहीं पा रहा हूँ कि इस वक्त मैं शोक व्यक्त करुँ या शहीदों को सलाम करुँ या खुद पर ही इल्जाम धरुँ....!" वहीं अनंत शब्दयोगके एक पोस्ट में दीपक भारत दीप पाकिस्तान की पोल खोलते हुए कहा , कि-"पाकिस्तान का पूरा प्रशासन तंत्र अपराधियों के सहारे पर टिका है। वहां की सेना और खुफिया अधिकारियों के साथ वहां के अमीरों को दुनियां भर के आतंकियों से आर्थिक फायदे होते हैं। एक तरह से वह उनके माईबाप हैं। यही कारण है कि भारत ने तो 20 आतंकी सौंपने के लिये सात दिन का समय दिया था पर उन्होंने एक दिन में ही कह दिया कि वह उनको नहीं सौंपेंगे।

नारी ब्लॉग पर रचना के द्वारा जब एक पोस्ट के दौरान इन बक्ताव्यों कि "आज टिपण्णी नहीं साथ चाहिये । इस चित्र को अपने ब्लॉग पोस्ट मे डाले और साथ दे । एक दिन हम सब सिर्फ़ और सिर्फ़ हिन्दी ब्लॉग पर अपना सम्मिलित आक्रोश व्यक्त करे । " के माध्यम से अभियान चलाने की बात की गयी , जिसमें रचना का सांकेतिक शोक और आक्रोश परिलक्षित हुआ ..इसी पोस्ट के अंतर्गत अपनी सारगर्भित प्रतिक्रया व्यक्त करते हुए डा अमर कुमारने कहा कि "लीक पर वो चले जिनके कदम दुर्बल और हारे है" स्वप्नदर्शी को सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की ये पंक्तिया अपने इस ब्लॉग के लिये बहुत ही उपयुक्त लगती हैं यह समय विरोध दर्ज़ करने का है, न कि विलाप व शोक का.. " डा अरविन्द मिश्र ने कहा "हमारा शोक विरोध भी लिए है -कुछ लोगों के लिए हर मौका आकादमीय बहस का हो जाता है !" वहीँ दिनेश राय द्विवेदी जी के तेवर कुछ तीखे रहे , उन्होंने कहा कि "नहीं लगाएंगे यह चित्र, हम अपने ब्लाग में। यह शोक की नहीं, अपने अंदर की आग को सुलगाने का वक्त है। " द्विवेदी जी कि टिप्पणी से सहमति व्यक्त करते हुए सुरेश चिपलूनकरने कहा कि "द्विवेदी जी से सहमत, किस बात का शोक, दिल में आग और गुस्सा भरना जरूरी है, शोक करने वाले फ़िर कभी ठीक से खड़े नहीं हो पाते, हाथोंहाथ हिसाब करने वाले ही याद रखे जाते हैं… कोई जरूरत नहीं है हमें शोक के सिम्बल की… "

इसी की प्रतिक्रया के क्रम मेंसारथीपर एक पोस्ट प्रकाशित की गयी जिसमें दिनेश राय द्विवेदी का कहना था कि "बम्बई में जो कुछ हुआ वह भारतमां के हर बच्चे के लिये व्यथा की बात है !राष्ट्रद्रोहियों को चुन चुन कर खतम करने का समय आ गया है!!शायद एक बार और कुछ क्रांतिकारियों को जन्म लेना पडेगा !!!शोक!शोक!शोक!
किस बात का शोक?
कि हम मजबूत न थे
कि हम सतर्क न थे
कि हम सैंकड़ों वर्ष के
अपने अनुभव के बाद भी
एक दूसरे को नीचा और
खुद को श्रेष्ठ साबित करने के
नशे में चूर थे।
कि शत्रु ने सेंध लगाई और
हमारे घरों में घुस कर उन्हें
तहस नहस कर डाला।

अब भी
हम जागें
हो जाएँ भारतीय
न हिन्दू, न मुसलमां
न ईसाई
मजबूत बनें
सतर्क रहें
कि कोई
हमारी ओर
आँख न तरेरे।"


वहीं ज्ञान दत्त पाण्डेय का मानसिक हलचलमें श्रीमती रीता पाण्डेय जी कहती हैं की "टेलीवीजन के सामने बैठी थी। चैनल वाले बता रहे थे कि लोगों की भीड़ सड़कों पर उमड़ आई है। लोग गुस्से में हैं। लोग मोमबत्तियां जला रहे हैं। चैनल वाले उनसे कुछ न कुछ पूछ रहे थे। उनसे एक सवाल मुझे भी पूछने का मन हुआ – भैया तुम लोगों में से कितने लोग घर से निकल कर घायलों का हालचाल पूछने को गये थे? "

कविताई अंदाज़ में अपनी भावनाओं को कुछ कठोर शब्दों में वयां किया कवि योगेन्द्र मौदगिलने कुछ इस प्रकार "बच्चा -बच्चा आज जगह ले अपने स्वाभिमान को , उठो हिंद के बियर सपूतों , पहचानो पहचान को,हिंसासे ही ध्वस्त करो , हिंसा की इस दूकान को , रणचंडी की भेंट चढ़ा दो पापी पाकिस्तान को ...!" वहीं निनाद गाथामें अभिनव कहा , कि "किसको बुरा कहें हम आख़िर किसको भला कहेंगे,जितनी भी पीड़ा दोगे तुम सब चुपचाप सहेंगे,डर जायेंगे दो दिन को बस दो दिन घबरायेंगे,अपना केवल यही ठिकाना हम तो यहीं रहेंगे,तुम कश्मीर चाहते हो तो ले लो मेरे भाई,नाम राम का तुम्हें अवध में देगा नहीं दिखाई....!"हिन्दी ब्लोगिंग की देनमें एक पोस्ट के दौरान रचना कहा , कि-"हर मरने वालाकिसी न किसी करकुछ न कुछ जरुर थाइस देश कर था या उस देश का थापर आम इंसान थाशीश उसके लिये भी झुकाओयाद उसको भी करोहादसा और घटनामत उसकी मौत को बनाओ...!"विचार-मंथन—एक नये युग का शंखनादमें सौरभ कहा , कि-"कुरुक्षेत्र की रणभूमि के बीच खड़े होकर तो सिर्फ अर्जुन ने शोक किया था, पर आज देश के करोड़ों लोगों की तरह मैं भी मैदान के बीचो-बीच अकेला खड़ा हुआ हूँ—नितांत अकेला, शोकाकुल और ग़ुस्से से भरपूर। मेरे परिवार के 130 से ज्यादा सदस्य आज नहीं रहे. जी हाँ, ठीक सुना आपने, मेरे परिवार के सदस्य नहीं रहे. मौत हुई है मेरे घर में और मेरे परिवार को मारने वाले मेरे घर के सामने है, हँसते हुए, ठहाके लगाते हुए और अपनी कामयाबी का जश्न बनाते हुए. और मैं.... !" एक आम आदमीयानी ऐ कॉमन मन ने बहुत ही सुंदर प्रश्न को उठाया , कि "कोई न कोई तो सांठ-गाँठ है इन मुस्लिम नेताओं, धार्मिक गुरुओं तथा धर्मनिरपेक्षियों (सूडो) के बीच....!"मेरी ख़बरमें ॐ प्रकाश अगरवाल ने कहा , कि "हमारे पढ़े-लिखे वोटर पप्पुओं के कारण फटीचर किस्म के नेता चुने जा रहे हैं .....!"
कुछ अनकहीमें श्रुति ने कहा , कि - "कहाँ है राज ठाकरे । मुंबई जल रही है , जाहिर है नेताओं की कमीज पर अब दाग काफी गहरे हो चुके हैं । " वहीं इयता पर कुछ अलग स्वर देखने को मिला , मगर सन्दर्भ था मुंबई का हमला हीं जिसमें उन्होंने कहा कि "इस दौरान शराब की बिक्री में ७० फीसदी की कमी आयी । मयखाने खाली पड़े थे और शराबी डर के भाग लिए थे । नरीमन पॉइंट पर दफ्तर बंद है । किनारे पर टकराती सागर की लहरों के पास प्रेमी जोड़े नही हैं । सागर का किनारा वीरान हो गया है । बेस्ट की बसों में कोई भीड़ नही है ...!"
इस सब से कुछ अलग हटकर दिल एक पुराना सा म्यूज़ियमहैपर मुंबई धमाकों में शहीद हुए जवानों की तसवीरें पेश की गयी , जो अपने आप में अनूठा था । वहीं हिन्दी ब्लॉग टिप्सपर ताज होटल का विडियो लगाया गया, जहाँ ताज की पुरानी तसवीरें देखी जा सकती थी ।

...............अभी जारी है ...........

वर्ष-२००८ हिंदी ब्लोगिंग के लिए कई मायनों में महत्वपूर्ण रहा

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....... गतांक से आगे .....

हम बात कर रहे हैं मुम्बई हमले के बाद हिंदी ब्लॉग की भूमिका के बारे में , चलिए आगे बढ़ते हैं -

जनवरी-२००८ में हिंदी ब्लॉगजगत में एक गंभीर बहस को जन्म देने वाला ब्लॉग आया
"मेरी आवाज़ "शिकागो निवासी श्री राम त्यागी के इस ब्लॉग ने बड़ा ही महत्वपूर्ण मुद्दा उठाया, कि -मुंबई के कुछ ही शहीदों को सलाम क्यूं ??इसमें उनका कहना था कि "ये बात सच है की आप सबके दिमाग में भी यही सवाल बार बार आता होगा की क्यूं हर रोज केवल चुनिन्दा पुलिस वालो को ही बार बार शहीद बताया जा रहा है, सिर्फ़ इसलिए की वो उच्च पदों पर आसीन पदाधिकारी थे या फिर इसलिए की वो तथाकथिस शहरी वर्ग से आते थे, क्यों महानगरीय ठप्पे वाले लोग जैसे हेमंत जी, सालसकर जी को ही हम अशोक चक्र या वीरता चक्र देने की बात कर रहे है ? क्या वो पुलिस वाले जो तीसरे विस्वयुद्ध की बंदूको से लड़ रहे थे या फिर अपने डंडे से ही कुछ कमाल दिखा रहे थे, शहीदी का तमगा नही लगा सकते ?"

..इसी विचार, इसी पृष्ठभूमि पर रंजना [रंजू भाटिया] ने अपने ब्लॉग
" कुछ मेरी कलम से "पर बहुत प्यारी कविता पोस्ट की इस वर्ष, जिसे काफी लोगों ने सराहा । कविता की भूमिका में उन्होंने कहा कि -"२६ /११ को ..जो हुआ वह किसी से सहन नही हो रहा है..क्यों नही सहन हो रहा है यह ? बम ब्लास्ट तो हर दूसरे महीने में जगह जगह जहाँ तहां होते रहते हैं ..लोग भी मरते रहते हैं ,पर इस बार का होना शायद सीमा को लाँघ गया .....या जगा कर हमें एहसास करवा गया कि हम भी जिंदा है ...और यह बता गया कि हम एक हैं .अलग अलग होते हुए भी ..आज भी आँखों से मेजर संदीप .हेमंत करकरे और कई उन लोगों के चेहरे दिल पर एक घाव दे जाते हैं ..यह कुछ चेहरे हम निरंतर देख रहे हैं ..पर इतने दिनों की ख़बरों में अब धीरे धीरे बहुत कुछ सामने आया है ..वह लोग जो अपनी शाम का शायद आखिरी खाना खाने इन जगह गएँ जहाँ यह उनके लिए" लास्ट सपर "बन गया ...वह मासूम लोग जो स्टेशन से अपने घर या कहीं जाने को निकले थे पर वह उनका आखिरी सफर बन गया ..उनका नाम कहीं दर्ज नही हुआ है .... !" अर्थात-

"एक लौ मोमबत्ती की
उन के नाम भी .....
जिन्होंने..
अपने किए विस्फोटों से
अनजाने में ही सही
पर हमको ...
एक होने का मतलब बतलाया

एक लौ मोमबत्ती की..
उन लाशों के नाम....
जिनका आंकडा कहीं दर्ज़ नही हुआ
और न लिया गया उनका नाम
किसी शहादत में....
और ................... "

मुंबई हमलों से संवंधित पोस्ट के माध्यम से वर्ष के आखरी चरणों में एक महिला ब्लोगर माला के द्वारा विषय परक ब्लॉग लाया गया , जिसका नाम है
मेरा भारत महानजसके पहले पोस्ट में माला कहती है कि -"हमारी व्यापक प्रगति का आधार स्तम्भ है हमारी मुंबई । हमेशा से ही हमारी प्रगतिहमारे पड़ोसियों के लिए ईर्ष्या का विषय रहा है । उन्होंने सोचा क्यों न इनकी आर्थिक स्थिति को कमजोड कर दिया जाए , मगर पूरे विश्व में हमारी ताकत की एक अलग पहचान है , क्योंकि हमारा भारत महान है । "


चलिए अब मुंबई हमलों से उबरकर आगे बढ़ते हैं और नजर दौडाते हैं भारतीय संस्कृति की आत्मा यानी लोकरंग की तरफ़ । कहा गया है, कि लोकरंग भारतीय संस्कृति की आत्मा है , जिससे मिली है हमारे देश को वैश्विक सांस्कृतिक पहचान । ऐसा ही एक ब्लॉग है
लोकरंग जो पूरे वर्ष तक लगातार अपनी महान विरासत को बचाता - संभालता रहा । यह ब्लॉग लोकरंग की एक ऐसी छोटी सी दुनिया से हमें परिचय कराता रहा, जिसे जानने-परखने के बाद यकीं मानिए मेरे होठों से फूट पड़े ये शब्द, कि " वाह! क्या ब्लॉग है .......!"

वर्ष-२००८ में इस
ब्लॉग में जो कुछ भी प्रस्तुत किया गया , वह हमारी लोक संस्कृति को आयामित कराने के लिए काफी है । चाहे झारखंड और पश्चिम बंगाल के बौर्डर से लगाने वाले जिला दुमका के मलूटी गाँव की चर्चा रही हो अथवा उडीसा के आदिवासी गाँवों की या फ़िर उत्तर भारत के ख़ास प्रचलन डोमकछ की ....सभी कुछ बेहद उम्दा दिखा इस ब्लॉग में ।

कहा गया है, कि जीवन एक नाट्य मंच है और हम सभी उसके पात्र । इसलिए जीवन के प्रत्येक पहलूओं का मजा लेना हीं जीवन की सार्थकता है । इन्ही सब बातों को दर्शाता हुआ एक चिट्ठा सक्रिय रहा इस वर्ष - कुछ अलग सा। कहने का अभिप्राय यह है, कि लोकरंग का गंभीर विश्लेषण हो यह जरूरी नही , मजा भी लेना चाहिए ।

रायपुर के इस ब्लोगर की नज़रों से जब आप दुनिया को देखने का प्रयास करेंगे , तो यह कहने पर मजबूर हो जायेंगे कि- " सचमुच मजा ही मजा है इस ब्लोगर की प्रस्तुति में ....!"
वर्ष-२००८ में एक पोस्ट के दौरान ब्लोगर कहता है, कि - " अगर वाल्मीकि युग में पशु संरक्षण बोर्ड होता तो क्या राम अपनी सेना में बानरों को रख पाते, युद्ध लड़ पाते ?" और भी बहुत कुछ है इस ब्लॉग में। सचमुच इस ब्लॉग में लोकरंग है मगर श्रद्धा, मजे और जानकारियों के साथ कुछ अलग सा ....!

मेरी कविता की एक पंक्ति है - " शब्द-शब्द अनमोल परिंदे, सुंदर बोली बोल परिंदे...!"शब्द ब्रह्म है , शब्द सिन्धु अथाह, शब्द नही तो जीवन नही .......आईये शब्द के एक ऐसे ही सर्जक की बात करें नाम है-अजीत बडनेकर , जिनका ब्लॉग है - शब्दों का सफर। अजीत कहते हैं कि- "शब्द की व्युत्पति को लेकर भाषा विज्ञानियों का नजरिया अलग-अलग होता है । मैं भाषा विज्ञानी नही हूँ , लेकिन जब उत्पति की तलाश में निकालें तो शब्दों का एक दिलचस्प सफर नज़र आता है । "अजीत की विनम्रता ही उनकी विशेषता है ।

शब्दों का सफर की प्रस्तुति देखकर यह महसूस होता है की अजीत के पास शब्द है और इसी शब्द के माध्यम से वह दुनिया को देखने का विनम्र प्रयास करते हैं . यही प्रयास उनके ब्लॉग को गरिमा प्रदान करता है . सचमुच यह ब्लॉग नही शब्दों का अद्भुत संग्राहालय है, असाधारण प्रभामंडल है इसका और इसमें गजब का सम्मोहन भी है ....! इस ब्लॉग ने भी कई महत्वपूर्ण पहलूओं को आयामित कर वर्ष-२००८ में खूब धमाल मचाया ।

वैसे लोकरंग को जीवंत रखते हुए वर्ष-२००८ में अपनी सार्थक उपस्थिति दर्ज कराने वाले चिट्ठों की श्रेणी में एक और नाम है-ठुमरी , जिसपर आने के बाद महसूस होता है की हमारे पास सचमुच एक विशाल सांस्कृतिक पहचान है और वह है गीतों की परम्परा । इसी परम्परा को जीवंत करता हुआ दिखाई देता है यह ब्लॉग। अपने आप में अद्वितीय और अनूठा ।

कहा गया है, की भारत गावों का देश है, जहाँ की दो-तिहाई आवादी आज भी गावों में निवास करते है । गाँव नही तो हमारी पहचान नही , गाँव नही तो हमारा अस्तित्व नही , क्योंकि गाँव में ही जीवंत है हमारी सभ्यता और संस्कृति का व्यापक हिस्सा । तो आईये लोकरंग- लोकसंस्कृति के बाद चलते हैं एक ऐसे ब्लॉग पर जो हमारी ग्रामीण संस्कृति का आईना है ….नाम है खेत खलियान। इस ब्लॉग ने भी वर्ष-2008 में अपने कुछ महत्वपूर्ण पोस्ट के माध्यम से अच्छी सक्रियता दिखाई ।

खेती के हर पहलू पर बारीक नज़र है यहाँ । वर्ष-२००८ में पहली बार जाब इस ब्लॉग पर मेरी नज़र पडी उतसाहितमैं काफी हो गया था , कि यार ऐसी जानकारी हिंदी ब्लॉग में । इसमें चलती- फिरती बातें नही , जो भी है खेती से जुड़े तमाम तरह के दस्तावेज।

खेत-खलियान की सैर कराता यह ब्लॉग एक ओर जहाँ खेत-खलियान की सैर कराता है , वहीं मध्यप्रदेश के किसानों की आवाज़ बनकर उभरता भी दिखाई देता है । सिर्फ़ मध्यप्रदेश ही नही इसमें मैंने पंजाब के मालवा इलाके में कीट नाशकों के दुष्प्रभाव की पोल खोलते पोस्ट भी पढ़े हैं। कुल मिलाकर यहाँ बातें “ गेंहू , धान और किसान की है , यानी पूरे हिन्दुस्तान की है…॥!”

वैसे खलियान से जुड़े हुए एक और ब्लॉग पर नज़र गयी उस वर्ष , जिसके ब्लोगर हैं कुमार धीरज ,हालांकि ब्लॉग का नाम खलियान जरूर है , मगर ब्लोगर की नज़रें खेत- खलियान पर कम , राजनीतिक गतिविधियों पर ज्यादा रही !वैसे इस ब्लॉग पर हर प्रकार के सामयिक पोस्ट देखे गए , लेखनी में गज़ब की धार देखी गयी और हर विषय पर लिखते हुए ब्लोगर ने एक गंभीर विमर्श को जन्म देने का विनम्र प्रयास किया ।

इनके ब्लॉग से गुजरते हुए सबसे पहले मेरी नज़र एक पोस्ट ओडीसा और कंधमाल के आंसूपर गयी और इस ब्लोगर की प्रतिभा के सम्मोहन में मैं आबद्ध होता चला गया ।

खेत- खलियान के बाद आईये चलते हैं बनस्पतियों की ओर ….! पूरी दृढ़ता के साथ बनस्पतियों से जुडी जानकारियों का पिटारा लिए रायपुर के पंकज अवधिया अंध विशवास के ख़िलाफ़ मोर्चा खोले हुए नज़र आये इस वर्ष । विज्ञान की बातों को बहस का मुद्दा बनाने वाले अवधिया का ब्लॉग है मेरी प्रतिक्रया, जिसका नारा है अंध विशवास के साथ मेरी जंग।

पंकज की जानकारियां दिलचस्प है । पढ़कर एक आम पाठक निश्चित रूप से हैरान हो जायेगा कि जंगलों में पानी, रोशनी के लिए पेड़-पौधों में कड़ी स्पर्धा होती है । मैदान जितने के लिए वे ख़ास किस्म के रसायन भी छोड़ते हैं ताकि प्रतोयोगी की बढ़त रूक जाए। वे बिमारियों के लिए पारंपरिक दबाओं का दस्तावेज भी बना रहे हैं। साईप्रस, कोदो और बहूटी मकौड़ा आदि के माध्यम से अनेक असाध्य वीमारियों पर की भी बातें करते हैं जो ब्लोगर की सबसे बड़ी विशेषता है।

सचमुच मेरी प्रतिक्रया एक ऐसा ब्लॉग है जो हमें उस दुनिया की जानकारी देता है जिसके बारे में हम अक्सर गंभीर नही होते। कृषि वैज्ञानिक पंकज अवधिया हमें अनेक खतरों से बचाते हुए दिखाई देते हैं। ख़ास बात यह है की उनका हर लेख एक किस्सा लगता है,किसी विज्ञान पत्रिका का भारी-भरकम लेख नही….अपने आप में अनूठा है यह ब्लॉग !

ग्रामीण पृष्ठभूमि पर आधारित एक और ब्लॉग पर मेरी नज़र गयी इस वर्ष नाम हैबिदेसिया जो एक कम्युनिटी ब्लॉग है और इसके ब्लोगर हैं पांडे कपिल, जो भोजपुरी साहित्य के प्रखर हस्ताक्षर भी हैं, साथ ही इस समूह में शामिल हैं प्रेम प्रकाश , बी. एन. तिवारी और निराला ।

है तो इस ब्लॉग में गाँव से जुड़े तमाम पहलू मगर एक पोस्ट ने मेरा ध्यान बरबस अपनी और खिंच लिया था वह है नदिया के पार और पच्चीस साल । १९८२ में आयी थी यह फ़िल्म जिसे मैंने दर्जनों बार देखी होगी उस समय मैं बिहार के सीतामढी में रहता था और उस क्षेत्र में नदिया के पार की बहुत धूम थी , पहली बार मेरे पिताजी ने मुझसे कहा था रवीन्द्र चलो आज हम सपरिवार इस फ़िल्म को देखेंगे …..फ़िर उसके बाद अपने स्कूली छात्रो के साथ इस फ़िल्म को मैंने कई बार देखी … आज भी जब इस फ़िल्म के ऑडियो कैसेट सुनता हूँ तो गूंजा और चंदन की यादें ताजा हो आती है । ब्लोगर ने इस फ़िल्म के २५ साल पूरे होने पर गूंजा यानी साधना सिंह के वेहतरीन साक्षात्कार लिए हैं ।

बहुत कुछ है विदेसिया पर, जो क्लिक करते ही दृष्टिगोचर होने लगती है । सचमुच लोकरंग के चिट्ठों में एक आकर्षक चिट्ठा यह भी है। अगर कहा जाए की लोक संस्कृति को जीवंत रखने में विदेसिया की महत्वपूर्ण भुमिका है तो न किसी को शक होना चाहिए और न अतिशयोक्ति ही …!

वैसे एक और ब्लॉग है दालान ,नॉएडा निवासी रंजन ऋतुराज सिंह जी द्वारा मुखिया जी के नाम से लिखित चिट्ठाअपने कुछ सार्थक पोस्ट से वर्ष-२००८ में पाठकों को खूब चौंकाया । इसे देखकर ऐसा महसूस होता है कि यह ग्रामीण परिवेश से जुडी हुयी बातों का गुलदस्ता होगा , मगर है विपरीत इसमें पूरे वर्ष भर ग्रामीण परिवेश की बातें कम देखी गयी , इधर – उधर यानी फिल्मी बातें ज्यादा देखी गयी । मुखिया जी का यह ब्लॉग अपने कई पोस्ट में गंभीर विमर्श को जन्म देता दिखाई देता है ।

वर्ष के आखरी कई पोस्ट में उनके द्वारा अमिताभ और रेखा के प्रेम संबंधों से कई भावात्मक बातों को उद्धृत करता हुआ पोस्टमहबूब कैसा हो ?कई खंडों में प्रकाशित किया गया है, जो मुझे बहुत पसंद आया …….शायद आपको भी पसंद आया हो वह आलेख और उससे जुडी तसवीरें …..कुल मिलाकर यह ब्लॉग सुंदर और गुणवत्ता से परिपूर्ण नज़र आया !


नोएडा के मुखिया जी के ब्लॉग दालान की चर्चा के बाद आईये चलते हैं बाबा विश्वनाथ की नगरी वाराणसी । वाराणसी वैसे पूर्वांचल का एक महत्वपूर्ण शहर है , जहा का परिवेश आधा ग्रामीण तो आधा शहरी है । मैं इस शहर में लगभग पाँच वर्ष मैंने भी गुजारे हैं । खैर चलिए यहाँ के एक अति महत्वपूर्ण ब्लॉग की चर्चा करते हैं, नाम है सांई ब्लॉग। हिन्दी में विज्ञान पर लोकप्रिय और अरविन्द मिश्रा के निजी लेखों का संग्राहालय है यह ब्लॉग, जो पूरी दृढ़ता के साथ आस्था और विज्ञान के सबालों के बीच लड़ता दिखाई देता है . इस सन्दर्भ में ब्लोगर का कहना है, की उन्होंने जेनेटिक्स की दुनिया की नवीनतम खोज जीनोग्राफी के जांच का फायदा उठाया है।

एक पोस्ट में ब्लोगर मंगल ग्रह पर भेजे गए फिनिक्स की कथा मिथकों के सहारे कहते हुए दिलचस्पी पैदा करते हैं . कई प्रकार के अजीबो-गरीब और कौतुहल भरी बातों से परिचय कराता हुआ यह ब्लॉग अपने आप में अनूठा है । सुंदर भी है और इसकी प्रस्तुति सारगर्भित भी ।

अपने ब्लॉग के बारे में अरविन्द मिश्रा बताते हैं, की “ डिजिटल दुनिया एक हकीकत है और यह ब्लॉग उस हकीकत की एक मिशाल है …..!” वर्ष-२००८ में यह ब्लॉग विज्ञान से जुड़े विषयों को परोसने के कारण मुख्यधारा में दिखा !


……..अभी जारी है……../

वर्ष-२००८ में ग़ज़लों की बयार खूब बही हिंदी ब्लॉग जगत में ....

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......गतांक से आगे

“यूँ न रह-रह के हमें तरसायिये, आईये, आ जाईये , आजायिये ,फ़िर वही दानिश्ता ठोकर खाईये, फ़िर मेरे आगोश में गिर जाईये,मेरी दुनिया मुन्तजिर है आपकी , अपनी दुनिया छोड़ कर आजायिये…।!”

यही ग़ज़ल है , जिसे हम गुनगुनाते हुए आज की चर्चा की शुरूआत करने जा रहे हैं, जीवन के कोलाहल से दूर ग़ज़लों की दुनिया में समा जाने को विवश करता रहा वर्ष-२००८ में एक ब्लॉग सुखनसाज़। सुखनसाज़ का पन्ना खुलते ही खिलने लगती थी मेहदी हसन की जादूई आवाज़ । वह आवाज़ जिसे सुनने के लिए बेचैन रहते हैं मेरे आपके कान। वर्ष-२००८ में मैं जाब भी इस ब्लॉग पर आया मेरे होठों से अपने-आप फूट पड़ते थे ये शब्द- माशाल्लाह !……क्या ब्लॉग है …।


इसब्लॉग पर अहमद फ़राज़ से लेकर बेगम अख्तर तक की दुनिया आबाद है । मैं तो यही कहूंगा कि यदि आप अभी तक न आए हों तो इस ब्लॉग पर एक बार आईये, आ जाईये, आजायिये…।वैसे तो बहुत सारे ब्लॉग हैं जहाँ पहुँच कर आप ग़ज़ल गुनगुनाने को बेताब हो जायेंगे, हमारे इस आलेख की अपनी एक सीमा है और उसी सीमा में आबद्ध होकर हमें अपनी बात कहनी है , वर्ष के सारे सक्रिय चिट्ठों की चर्चा तो नही कर सकता मगर कुछ ब्लॉग जो उस वर्ष अपनी सार्थक गतिविधियों के कारण पाठकों को आकर्षित करने में सफल रहा उसकी चर्चा न करुँ तो बेंमानी होगा ।


इसी प्रकार इस वर्ष गजलों मुक्तकों और कविताओं का एक नायाब गुलदश्ता मुझे दिखा वह था महक, जो अपनी महक से वातावरण को काव्यमय बनाने की दिशा में लगातार सक्रिय भूमिका अदा करता रहा । यहाँ आपको ग़ज़लों के स्वर सुनाई नही देंगे , मगर स्वरचित मुक्तकों, ग़ज़लों , कविताओं तथा विचारों की भावात्मक अनुभूति जरूर महसूस करेंगे, यह मेरा विश्वास है ।इस ब्लॉग पर प्रकाशित एक ग़ज़ल के कुछ शेर पढिये और कहिये कैसा महसूस किया आपने-“यूही किसी को सताना कभी अच्छा होता है , प्यार में खुद तड़पना कभी अच्छा होता है रिश्तों की नज़दिकोया बनाए रखने के लिए ,दूरियों का उन में आना कभी अच्छा होता है ”


ग़ज़लों एक और गुलदश्ता है अर्श , जिसकी पञ्च लाईन है “ जिंदगी मेरे घर आना जिंदगी “ अच्छी अभिव्यक्ति और सुंदर प्रस्तुति के साथ अपनी ग़ज़लों से ह्रदय के पोर-पोर बेधने में ये पूरे वर्ष भर कामयाब रहे इनकी ग़ज़लों के एक-दो शेर देखें- “ अब रोशनी कहाँ है मेरे हिस्से, लव भी जदा-जदा है मेरे हिस्से , गर संभल सका तो चल लूंगा – पर रास्ता कहाँ है मेरे हिस्से ....!”इस ब्लॉग को मेरी ढेरों शुभकामनाएं !

इस तरह के ब्लॉग की लंबी फेहरीश्त है हिन्दी चिट्ठाजगत पर, सबकी चर्चा करना संभव नही । फ़िर भी जिस ब्लॉग ने मुझे ज्यादा प्रभावित किया उसकी चर्चा के बिना आगे बढ़ पाना भी मेरे लिये संभव नही है । चलिए इसी श्रेणी के कुछ और उम्दा ब्लॉग पर नज़र डालते हैं जो वर्ष-२००८ में सर्वाधिक सक्रिय रहे -


ब्लॉग की इस महफ़िल में अनेक सुखनवर हैं, कोई राही है तो कोई रहवर है….आईये ऐसे हे इक ब्लॉग से आपका तारूफ करवाता हूँ , नाम है युगविमर्श। बहुत सारे सुखनवर मिलेंगे आपको इस ब्लॉग पर ।

दूसरा ब्लॉग है अरूणाकाश,गाजिआबाद की अरुणा राय की एक-दो पंक्तियाँ देखिये और पूछिए अपने दिल से की तुम इतने प्यारे क्यों हो ? अरुणा ख़ुद कहती है, की –“ प्यार करने का खूबां हम पर रखते हैं गुनाह उनसे भी तो पूछिए , तुम इतने प्यारे क्यों हुए….!”यह ब्लॉग भावनाओं की धरातल पर उपजी हर उस ग़ज़ल से रूबरू कराती है , जो इस ब्लॉग की सबसे बड़ी विशेषता रही , मगर अफशोश यह ब्लॉग किन्ही कारणों से आज हिन्दी चिट्ठाजगत में अक्तूबर -२००८ के बाद अस्तित्व में नही है । कुछ मजबूरियां रही होंगी ...... !


एक और ब्लॉग है महाकाव्य । तलत महमूद को पसंद कराने वाले कर्णाटक के ब्लोगर महेन मेहता का यह ब्लॉग शब्दों में महाकाव्य ढूँढता नज़र आता है । इस ब्लॉग का सम्मोहन स्पष्ट रूप से महसूस किया जा सकता है। एक क्लिक कीजिये और डूब जाईये ग़ज़लों की दुनिया में । आपको मिलेंगे यहाँ फरीदा खानम और बेगम अख्तर की आवाज़ का जादू , वहीं दुनिया की दूसरी भाषाओं से जुड़े आवाज़ के जादूगर । कातिल शिफाई की ग़ज़ल को सुनते हुए कोई भी व्यक्ति भीतर तक स्पंदित हो सकता है । अगर अब तक न आए हों तो इस ब्लॉग पर एक बार अवश्य पधारें , मुझे यकीन है फ़िर आप इसी के होकर रह जायेंगे – चलो अच्छा हुआ काम आगई दीवानगी अपनी , बरना हम जमाने भर को समझाने कहाँ जाते ……।

यदि आप शेरो- शायरी के शौकीन हैं तो कोलकाता के अपने इसमीतसे मिलना मत भूलिए , ये आपको अपने शेर से केवल गुदगुदाएँगे ही नही , वल्कि दीवानगी की हद तक भी ले जायेंगे । एक बार जाकर तो देखिये इस ब्लॉग पर फ़िर आप कहेंगे यार प्रभात ! तुमने तो मुझे दीवाना बना दिया । मेरा मानना है कि-


"किसी दरिया , किसी मझदार से नफरत नहीं करता , सही तैराक हो तो धार से नफरत नहीं करता ,यक़ीनन शायरी की इल्म जिसके पास होती वह -किसी नुक्कड़ , किसी किरदार से नफरत नहीं करता।"

"आज लहू का कतरा कतरा स्याई बना है,और ये जख्मी दिल ही खत की लिखाई बना है. " ये पंक्तियाँ हैं सीमा गुप्ता की , जिनका ब्लॉग है "MY PASSION"सीमा अपनी अभिव्यक्ति को ग़ज़ल में पिरोती हुयी कहती हैं कि -"चांदनी कहाँ मिलती है, वो भी अंधेरों मे समाई है, रोशनी के लिए हमने ख़ुद अपनी ही ऑंखें जलाई हैं।"


इसी श्रेणी के एक और महत्वपूर्ण ब्लॉग है - "कुछ मेरी कलम से "इस ब्लॉग के ब्लोगर के द्वारा जिस पञ्च लाइन का उल्लेख किया गया है वह इस प्रकार है- "जब करनी होती ख़ुद से बाते तो में कुछ लफ्ज़ यूँ दिल के कह लेती हूँ ....!" रंजना यानी रंजू भाटिया कहती हैं , कि -"ज़रा थम थम के रफ़्ता रफ़्ता चल ज़िंदगी कि यह समा या फ़िज़ा बदल ना जाएअभी तो आई है मेरे दर पर ख़ुशी कही यह तेरी तेज़ रफ़्तार से डर ना जाए!


दूसरा ब्लॉग है -"पारुल…चाँद पुखराज का"इस ब्लॉग पर अभिव्यक्तियाँ अंगराई लेती है और छोड़ जाती है संवेदनाओं का नया प्रभामंडल पाठकों के लिए , ब्लोगर ने अपने परिचय में गुलजार की ये सुंदर पंक्तियाँ प्रस्तुत की है -"कुछ भी क़ायम नही है,कुछ भी नही…रात दिन गिर रहे हैं चौसर पर…औंधी-सीधी-सी कौड़ियों की तरह…हाथ लगते हैं माह-ओ साल मगर …उँगलियों से फिसलते रहते है…धूप-छाँव की दौड़ है सारी……कुछ भी क़ायम नही है,कुछ भी नही………………और जो क़ायम है,बस इक मैं हूँ………मै जो पल पल बदलता रहता हूँ !"


इसी श्रेणी का एक और ब्लॉग पर मेरी नज़रें गयी और ठहर गयी अनायास ही , फ़िर तो उसकी चरचा के लिए मन बेताब हो उठा । नाम है "डॉ. चन्द्रकुमार जैन "जी हाँ यही ब्लॉग है और यही ब्लोगर भी । मुक्तकों और ग़ज़लों का एक ऐसा ब्लॉग जिसे बड़े प्यार और मनुहार से प्रस्तुत किया गया है । इस श्रेणी की मेरी सबसे पसंदीदा ब्लॉग है यह । इनकी ग़ज़ल की कुछ पंक्तियाँ देखिये - "हर सुमन में सुरभि का वास नहीं होता,हर दीपक का मनहर प्रकाश नहीं होता। हर किसी को प्राण अर्पित किए जा सकते नहीं,हर जीवन में मुस्काता मधुमास नहीं होता।।"


आईये एक और ब्लॉग से आपका परिचय करवाता हूँ , नाम है -"क्षणिकाएं ", ब्लोगर कहती हैं , कि -"मन की कलम, ख़्वाबों के पन्ने ,उम्मीदों की स्याही , समय मेरे पास रख जाता है, तब मैं लिखती हूँ ..... !"


कोलकाता के मीत की चरचा हो और और दिल्ली के दिलवाले मीत की चरचा न हो ऐसा कैसे हो सकता है , तो आईये दिल्ली के मीत से मिलते हैं । ब्लोगर कहते हैं- "बचपन मामा के यहाँ गुज़ारा... बड़ा होकर पायलेट बनना चाहता था... लेकिन नसीब में शायद आसमान की ऊँचाइयाँ नहीं लिखी थी... जब भी किसी प्लेन की आवाज कानो में गूंजती तुंरत दौड़ के बाहर जाता था... प्लेन को देखने के लिए... खैर! कब मुझे लिखने का शौक हुआ मालूम नहीं... बस जब भी कभी हाथ में पेंसिल आ जाती थी, तो कागज पे चित्रकारी करता था और जब पेन आ जाता था, तो लिख देता था कोई गीत...!"

मेरे पसंदीदा शायर ब्लोगर में से एक हैं " परम जीत बाली " जिनका ब्लॉग है "दिशाएँ " । जब भी मौका मिलता है इस ब्लॉग पर आ जाता हूँ , क्योकि इस ब्लॉग पर मिलता अभिव्यक्ति के सृजन का सुख ।

दूसरा मेरा पसंदीदा ब्लॉग है इस श्रेणी का वह है -"प्रहार "। इस ब्लॉग पर भी आपको ग़ज़ल की सुंदर भावाभिव्यक्तियाँ मिलेंगी , पूरी शान्ति, सुख, संतुष्टि की गारंटी के साथ।

ग़ज़लों की इस दुनिया में एक और नाम है डा अनुराग , जिनका ब्लॉग है "दिल की बात ''बड़े सहज ढंग से ये अपनी अभिव्यक्तियों में धार देते हुए मासूम अदाओं के साथ परोस देते हैं पाठकों के। यही इस ब्लोगर की विशेषता है । अपने ब्लॉग पर ब्लोगर स्वीकार करता है, कि -"रोज़ कई ख़्याल दिल की दहलीज़ से गुज़रते है,कुछ आस पास बिखरे रहते है,कुछ दिल की तहो मे भीतर तक ज़िंदा रहते है,साँस लेते रहते है,कोई ख़ूबसूरत लम्हा फिर उन्हे कई दिनों की ऑक्सीजन दे जाता है। कभी-कभी उन लम्हो को जिलाये रखने के लिए धूप दिखा देता हूँ,कुछ को लफ़्ज़ो की शक़ल मे कागज़ॉ पर उतार देता हूँ। "

श्री पंकज सुबीर जीसुबीर संवाद सेवामें पाठकों को इस वर्ष लगातार ग़ज़ल सिखाते नज़र आये , ग़ज़लके विभिन्न पहलूओं पर उनका पक्ष नि:संदेह प्रशंसनीय है । इसी कड़ी मेंहिंद युग्मभी पीछे नही है । ग़ज़ल के लिए इससे वेहतर पहल और क्या हो सकती है ।


मैंने अपने एक आलेख में जनवरी -२००८ मेंपरिकल्पनापर ग़ज़ल की विकास-यात्रा शीर्षक से ग़ज़ल के इतिहास और वर्त्तमान पर प्राकाश डाला है, जिसे आप यहाँपढ़ सकते हैं ।


हिन्दी का एक और वेहद महत्वपूर्ण ब्लॉग है
“ रचनाकार “। यह वरिष्ठ चिट्ठाकार और सृजन शिल्पी श्री रवि रतलामी जी का ब्लॉग है , यह केवल ब्लॉग नही साहित्य का चलता- फिरता इन्सायिक्लोपिदिया है ,जिसके अंतर्गत ये कोशिश होती है की आज के प्रतिष्ठित कवियों , गज़लकारों के साथ-साथ नवोदित कवियों,गज़लकारों की कविताओं और ग़ज़लों को नया आयाम देते हुए उन्हें इस ब्लॉग के माध्यम से पाठकों से रू-ब -रू कराया जाए । यह ब्लॉग मैं नियमित पढ़ता हूँ और मेरा यह मानना है की इसे उन सभी को पढ़ना चाहिए जो सृजन से जुड़े हैं ।



इसी
प्रकार
“ अभिव्यक्ति “और “साहित्यकुंज”भी अनेक गज़लकारों और कवियों का रैन वसेरा बना रहा पूरे वर्ष भर । ये दोनों पत्रिकाएं एक प्रकार से साहित्य का संबाहक है और साहित्यिक गतिविधियों को प्राण वायु देते हुए हिन्दी की सेवा में पूरी जागरूकता के साथ सक्रिय है । इन दोनों पत्रिकाओं को मेरी कोटीश: शुभकामनाएं …दुष्यंत कुमार की इन पंक्तियों के साथ कि “……हो कहीं भी आग फ़िर भी आग जलानी चाहिए …।”


इसीदिशा में एक लघु, किंतु महत्वपूर्ण पहल किया है भाई नीरव ने अपनी ब्लॉग पत्रिका “वाटिका “और "गवाक्ष "के माध्यम से । यह ब्लॉग भी साहित्य की विभिन्न विधाओं में प्रकाशित सुंदर और सारगर्भित लेखन का नायाब गुलदस्ता है , विल्कुल उसी तरह जैसे देखन में छोटन लगे घाव करे गंभीर ।

वर्ष-२००७ में नेट पर एक और साहित्यिक पत्रिका “ सृजनगाथा “पर भी मेरी नज़र गयी और उसमें अपनी ग़ज़ल देखाकर मैं चौंक गया एकबारगी । इन्होने देश के महत्वोपूर्ण गज़लकारों की ग़ज़लों का संकलन प्रकाशित था जो कई दृष्टि से वेहद महत्वपूर्ण था । तब से मैं इस पत्रिका का नियमित पाठक हूँ ।


सुबीर संवाद सेवा , हिन्दी युग्म, रचनाकार, अभिव्यक्ति, साहित्यकुंज और सृजनगाथा साहित्य को नयी दिशा देने हेतु सतत क्रियाशील ब्लॉग की श्रेणी में अत्यन्त महत्वपूर्ण है। इन्हे यदि हिन्दी ब्लॉग साहित्य का सप्त ऋषि कहा जाए तो न अतिशयोक्ति होनी चाहिए और न शक की गुंजायश ही। इन सातों ब्लॉग पत्रिकाओं को मेरी हार्दिक शुभकामनाएं इन पंक्तियों के साथ , कि -“….इस शहर में इक नाहर की बात हो, फ़िर वही पिछले पहर की बात हो , ये रात सन्नाटा बुनेगी इसलिए, कुछ सुबह कुछ दोपहर की बात हो ……।!”

कुछऔर महत्वपूर्ण ब्लॉग है , जिस पर वर्ष -२००८ में यदा- कदा गंभीर गज़लें देखने को मिली , उन में से महत्वपूर्ण है “ उड़न तश्तरी “जिस पर इस दौरान उम्दा गज़लें पढ़ने को मिली है। एक बानगी देखिये-"चाँद गर रुसवा हो जाये तो फिर क्या होगा, रात थक कर सो जाये तो फिर क्या होगा।यूँ मैं लबों पर, मुस्कान लिए फिरता हूँआँख ही मेरी रो जाये तो फिर क्या होगा. "


कुछऔर ब्लॉग पर अच्छी ग़ज़लों का दस्तक देखिये और कहिये - ……वाह जनाब वाह...क्या शेर है…क्या ग़ज़ल है……!

ये ब्लॉग हैं" महावीर" " नीरज ""विचारों की जमीं""सफर " " इक शायर अंजाना सा…" "भावनायें... "आदि ।

ग़ज़ल की चर्चा को यहीं विराम देते हैं और चलते हैं हास्य की दुनिया में , जहाँ हमारी प्रतीक्षा में खड़े हैं कई ब्लोगर , सराबोर कराने के लिए हास्य से हमारे दामन को । हास्य पर हम करेंगे चर्चा विस्तार से , लेकिन अगले पोस्ट में ……….!


.........अभी जारी है…....../

ताऊ डोट इन ने खूब मचाया धमाल....

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वर्ष -२००८ में हास्य-व्यंग्य रचनाओं के माध्यम से जिन चिट्ठों ने खूब धमाल मचाया , वह हैं -

इस वर्ष हिंदी ब्लोगिंग में एक ऐसे ब्लॉग की शुरुआत हुई , जिसने हास्य-व्यंग्य की अनोखी रसधाराएं प्रवाहित करने में सफलता प्राप्त की.....नाम है " ताऊ डोट इन "इस ब्लॉग ने अपने पहले वर्ष में ही सक्रियता-सफलता और सरसता का जो कीर्तिमान स्थापित किया है वह शायद अबतक किसी भी ब्लॉग को प्राप्त नहीं हुआ होगा । अपनीअलग हरियाणवी शैली और प्रस्तुति के कारण यह हिंदी ब्लॉगजगत में रातो-रात मशहूर हो गया है । इस वर्ष इसके एक पोस्ट " ताऊ और पहलवान " ने खूब धमाल मचाया जबकि यह इस ब्लॉग की प्रारंभिक रचनाओं में से एक है ! इस ब्लॉग की सर्वाधिक रचनाएँ चिट्ठाकारों को केंद्र में रखकर प्रस्तुत की जाती रही और कोई भी ब्लोगर इनके व्यंग्य बाण से आहत होकर न मुस्कुराया हो , ऐसा नहीं हुआ ....यानी यह ब्लॉग वर्ष के सर्वाधिक चर्चित ब्लॉग की कतार में अपना स्थान बनाने में सफल हुआ ।

हिंदी जोक्स -हिन्दी के चुटकुले, यह चिट्ठा प्रारूप में हैं। तीखी नज़र -इस ब्लॉग पर हास्य-व्यंग्य की क्षणिकाएं लगातार देखने को मिली ।जैसे " लगा रहा आतंक की जो भारत में आग , गायें उसके साथ हम कैसे किरकिट राग , कैसे किरकिट राग, बताए दुनिया हमको , भरा न अब तक घाव भुलाएं कैसे गम कोदिव्यदृष्टि जिस घर में होता मातम भाईनहीं भूल कर कभी बजाता वह शहनाई ....!"

बामुलाहिजा यह ब्लॉग कार्टून के माध्यम से आज के सामाजिक , राजनैतिक कुसंगातियों पर पूरे वर्ष भर व्यंग्य करता रहा । कार्टूनिष्ट हैं कीर्तिश भट्ट । current CARTOONSताज़ा राजनैतिक घटनाक्रमों पर आधारित कार्टून का एक और महत्वपूर्ण चिट्ठा । कार्टूनिस्ट हैं -चंद्रशेखर हाडा जयपुर ।

मजेदार हिंदी एस एम एसचटपटे और मजेदार चुटकुलों अथवा हास्य क्षणिकाओं का अनूठा संकलन । चिट्ठे सम्बंधित कार्टूनहिन्दी चिट्ठाजगत में हो रही गतिविधियाँ कार्टून रूप में पेश करने की कोशिश है ।

चक्रधर का चकल्लस यह ब्लॉग हिन्दी के श्रेष्ठ हास्य-व्यंग्य कवि अशोक चक्रधर का है , जिसमें उनके द्वारा सृजित कविता और व्यंग्य प्रकाशित होते है , अपने इस ब्लॉग के सन्दर्भ में श्री अशोक चक्रधर कहते हैं - " इस चक्रधर के मस्तिष्क के ब्रह्म-लोक में एक हैं बौड़म जी। माफ करिए, बौड़म जी भी एक नहीं हैं, अनेक रूप हैं उनके। सब मिलकर चकल्लस करते हैं। कभी जीवन-जगत की समीक्षाई हो जाती है तो कभी कविताई हो जाती है। जीवंत चकल्लस, घर के बेलन से लेकर विश्व हिन्दी सम्मेलन तक, किसी के जीवन-मरण से लेकर उसके संस्मरण तक, कुछ न कुछ मिलेगा। कभी-कभी कुछ विदुषी नारियां अनाड़ी चक्रधर से सवाल करती हैं, उनके जवाब भी इस चकल्लस में )मिल सकते हैं। यह चकल्लस आपको रस देगी, चाहें तो आप भी इसमें कूद पड़िए।"

SAMACHAR AAJ TAKइस ब्लॉग पर आज की ताज़ा खबरें परोसी जाती है मगर मनोरंजक ढंग से और यही इस ब्लॉग की विशेषता है । अज़ब अनोखी दुनिया के ब्लोगर शुभम आर्य कहते हैं कि -" अज़ब अनोखी इस दुनिया में घटनाओं को बस्तुत: रिकोर्ड्स कर पाना किसी चमत्कार से कम नही है । आप सभी को हिन्दी ब्लोगिंग जगत में इस प्रकार की विचित्र चित्रावली एवं बहुत सी रोचक बातों से परिचित कराने की कोशिश करूंगा । अंगरेजी जगत में यह काफी दिनों से विद्यमान है, किंतु हिन्दी पाठकों के लिए शायद यह प्रारंभिक प्रयासों में से एक होगा ....!" वैसे काफी दिलचस्प है यह अज़ब अनोखी दुनिया ।

आईये अब मिलते हैं की बोर्ड के खटरागी से यानी अविनाश वाचस्पतिसे जिनके ब्लॉग पर हास्य-व्यंग्य और अन्य साहित्यिक समाचार पढ़ सकते हैं । यूँ ही निट्ठल्ला.....ताज़ा परिस्थितियों पर व्यंग्य इस ब्लॉग की सबसे बड़ी विशेषता है और इसका प्रस्तुतीकरण अपने आप में अनोखा , अंदाज़ ज़रा हट के , आप भी पढिये और डूब जाईये व्यंग्य के सरोबर में ।

डूबेजीयह ब्लॉग जबलपुर के ब्लोगर श्री राजेश कुमार डूबे जी का है , ब्लोगर के लिए कार्टून एक विधा से बढ़कर, व्यंग्य के सारथी के समान , एक सामाजिक आन्दोलन है ।

दीपक भारतदीप की शब्दज्ञान- पत्रिकापर भी कभी-कभार अच्छी और संतुलित हास्य कवितायें देखने को मिल जाती है , यह ब्लॉग सुंदर और सारगर्भित और स्तरीय है । hasya-vyangयह ब्लॉग सुरेश चंद्र गुप्ता जी का है , जो अपने ब्लॉग के बारे में कहते हैं, कि-"हम आज ऐसे समाज में रहते हैं जो बहुत तेजी से बदल रहा है और हम सबके लिए नए तनावों की स्रष्टि कर रहा है। पर साथ ही साथ समाज में घट रही बहुत सी घटनाएं हमारे चेहरे पर मुस्कान ले आती हैं। हमारे तनाव, भले ही कुछ समय के लिए, कम हो जाते हैं। हर घटना का एक हास्य-व्यंग का पहलू भी होता है। इस ब्लाग में हम उसी पहलू को उजागर करने का प्रयत्न करेंगे। " सचमुच इस ब्लॉग पर ब्लोगर हास्य-व्यंग्य के साथ न्याय करता हुआ दीखता है ।

निरंतरयह ब्लॉग जबलपुर के महेंद्र मिश्रा का है , इस पर भी आप व्यंग्य के तीक्ष्ण प्रहार को महसूस कर सकते हैं । अनुभूति कलशब्लॉग पर आपको मिलेंगे डा राम द्विवेदी की हास्य-व्यंग्य कविताओं से आप रू-ब रू होंगे । इसी प्रकार योगेन्द्र मौदगिल और अविनाश वाचस्पति के सयुक्त संयोजन में प्रकाशित चिट्ठा है हास्य कवि दरबारजिस पर आपको मिलेंगे हास्य-व्यंग्य कविताएं, कथाएं, गीत-गज़लें, चुटकुले-लतीफे, मंचीय टोटके, संस्मरण, सलाह व संयोजन।
...........अभी जारी है ..../

चिट्ठा चर्चा ब्लोगिंग को एक नयी दिशा देने में सफल हुआ है

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.........गतांक से आगे .....

वर्ष-२००८में चिट्ठा चर्चा के ३  वर्ष पूरे हुए, यह एक सुखद पहलू रहा हिंदी ब्लोगिंग के लिए, क्योंकि जनवरी-२००५  में ज़ब इसकी शुरुआत हुई थी, तब उस समय हिन्दी ब्लॉगजगत मे गिने चुने ब्लॉगर ही हुआ करते थे। उस समय हिन्दी ब्लॉगिंग को आगे बढाने और उसका प्रचार प्रसार करने पर पूरा जोर था, इसलिए चिट्ठा चर्चा ब्लोगिंग को एक नयी दिशा देने में सफल हुआ । अनूप शुक्ल, जीतू आदि जो ब्लोगर इससे जुड़े थे कोई भी मंच और कोई भी अवसर, हिन्दी ब्लॉगिंग को प्रचारित प्रसारित करने के लिए नही छोड़ते थे। जीतूके अनुसार -"अक्सर भाई लोग अंग्रेजी ब्लॉगों पर हिन्दी मे टिप्पणियां कर आया करते थे, जिसे कुछ अंग्रेजी ब्लॉग वाले अपनी तौहीन समझकर हटा दिया करते थे, लेकिन कुछ अच्छे ब्लॉगर भी होते थे, उन टिप्पणियों को अपने ब्लॉग पर लगाए रखते थे, इस तरह से लोगों को पता चलता था कि हिन्दी में भी ब्लॉगिंग हुआ करती है।"


पुरानी यादों के बारे में जीतूकहते हैं कि -"बात शुरु हुई थी ब्लॉग मेला से। यजद ने अपने ब्लॉग पर ब्लॉग मेला आयोजित किया था, जिसमे हम लोगों ने भी शिरकत की थी। इस तरह से हम लोगों अंग्रेजी ब्लॉग वालों के साथ सब कुछ सही चल रहा था। फिर बारी आयी मैडमैन के ब्लॉग मेले की, जिसमे हम लोगों ने शिरकत की थी, वहाँ पर मैडमैन ने हिन्दी चिट्ठों की समीक्षा करने से साफ़ साफ़ मना कर दिया। ऊपर से एक जनाब, जो अपने को सत्यवीर कहते थे ने हिन्दी को एक क्षेत्रीय भाषा कह दिया और सुझाव दिया कि आप लोग अपना अलग से मंच तलाशो। बस फिर क्या था, इस पर मुझे, अतुल, देबाशीष और इंद्र अवस्थी को ताव आ गया, हम लोगों ने उनको अंग्रेजी मे ही पानी पी पी कर कोसा। काफी कहासुनी हुई, मेरे विचार से अंग्रेजी-हिन्दी ब्लॉगिंग का वो सबसे बड़ा फड्डा था। नतीजा ये हुआ कि मैडमैन ने अपनी उस पोस्ट पर कमेन्ट ही बन्द कर दी ।

उनकी नजर मे मसला वंही समाप्त हो गया, लेकिन हमारे दिलों मे एक कसक रह गयी थी। जिसका नतीजा चिट्ठा चर्चा की नीव के रुप मे सामने आया। चूंकि चिट्ठे कम थे, इसलिए मासिक चर्चा हुआ करती थी, फिर ब्लॉग बढने के साथ साथ इसको पंद्रह दिनो, सप्ताह मे और अब तो रोज (कई कई बार तो दिन मे कई कई बार) ही चिट्ठा चर्चा होती है। काफी दिनो तक चिट्ठा चर्चा, चिट्ठा विश्व के साथ जुड़ी रही, फिर चिट्ठा विश्व मे कुछ समस्याएं आयी, तब नारद का उदयहुआ, धीरे धीरे और भी एग्रीगेटर आएं। लेकिन चिट्ठा चर्चालगातार जारी रही।"


०४ अक्तूबर २००८ को चिट्ठा चर्चा पर प्रकाशित अपने आलेख" चिट्ठाचर्चा: आज तक का सफ़र "में अनूप शुक्लकहते हैं कि -"शुरू के दिनों में हम चर्चा एक माह में एक बार करते थे। फ़िर शायद पन्द्रह दिन में करते थे। सब मिलकर चर्चा करते थे। देबाशीष, अतुल, जीतेंद्र और मैं। आप शुरुआत के चिट्ठे देखें तो आपको हिदी ब्लाग जगत के साथ भारतीय ब्लाग जगत की तमाम बेहतरीन पोस्टें देखने को मिल जायेंगी।" इसकी पूरी कहानी आप अनूप शुक्ल की जुबानीयहाँ पढ़ सकते हैं । इस आलेख के माध्यम से अनूप शुक्ल ने कई कड़वी-मीठी यादों को संजोया है । उनके इस आलेख में हिन्दी ब्लागरी के इतिहास की एक खिड़की दिखाई दी।

इस आलेख पर अपनी सारगर्भित टिप्पणी देते हुए सतीश सक्सेनाने कहाकि -"मेरा यह विश्वास है कि अच्छे लेखन को किसी सहारे की आवश्यकता नही है और किसी भी लेखन से चिटठा लेखक की मानसिकता साफ़ पता चल जाती है ! पाठकों पर छोड़ दें कि कौन कैसा लिख रहा है, आज जिस तरह नए उदीयमान लेखकों की प्रतिभा सामने आ रही है, यह एक शुभ संकेत है कि एक दूसरे पर कीचड़ फेक कर, अपने को श्रेष्ठ साबित करने में लगे, पुराने लिक्खाड़, जो बेहद घटिया लिख कर भी अपने आपको हिन्दी ब्लाग का करता धरता समझते हैं, के दिन आ गए हैं कि पाठक उन्हें दर किनारा कर दे । "



हिंदी ब्लोगिंग को प्रारंभिक दिशा देने वाले इस चिट्ठा चर्चा के बादआईये दुनिया की भीड़ के बीच अपना वजूद तलाशता और तराशता एक आम आदमी से मिलते हैं जिसकी इंसान बनने की कोशिश जारी है..जिन्दगी के बहुत सारे उतार चढावों को देखते हुए कब बचपना छूटा और वयस्कता की देहलीज़ पर कदम रखा इन्हें पता ही नहीं चला, अंगरेजी साहित्य में प्रतिष्ठा के बाद पत्रकारिता में डिप्लोमा..फिर विधि की शिक्षा...न्यायमंदिर ..तीस हजारी में फिलहाल कार्यरत...सफ़र जारी है...लिखना , पढ़ना शौक था..कब आदत बनी पता नहीं चला..अब हालात जूनून की हद तक पहुँचते जा रहे हैं... आप समझ गए होंगे मैं किसकी बात कर रहा हूँ , जी हाँ अजय कुमार झा की, जिन्होंने वर्ष-२००७ में " झा जी कहिन"लेकर आये ।
इस ब्लॉग पर इनके द्वारा प्रारंभ से ही चुटीली चिट्ठा चर्चा की जाती रही है , यह ब्लॉग छोटी-छोटी चर्चाओं के साथ वर्ष-२००८ में पूरे एक वर्ष का सफ़र तय कर लिया है और इस पर चर्चा लगातार जारी है ।


इसके अलावा जबलपुर के महेंद्र मिश्र भीकभी-कभार अपने ब्लॉग समय चक्रपर छोटी-छोटी चिट्ठा चर्चा करते हुए नज़र आते रहे हैं ।
इस वर्ष सारथीपर भी कुछ महत्वपूर्ण चिट्ठों की व्यापक और मूल्यपरक चर्चा हुई , शास्त्री जे सी फिलिपने चिट्ठों को कई वर्गों में अर्थात 1. विचारोत्तेजक चिट्ठे
2. विश्लेषणात्मक चिट्ठे
3. प्रेरणादायक चिट्ठे
4. संगणक-तकनीकी चिट्ठे
5. विषयकेंद्रित/विषयाधारित चिट्ठे
6. युवा तुर्कों के चिट्ठे
7. काव्य (जिन पर मुख्यतया काव्य प्रकाशित होता है)
8. स्त्रीरत्नों के चिट्ठे
9. चिट्ठे जो उभर सकते हैं
10. कम सक्रिय चिट्ठे
11. अन्य

बांटकर हिंदी के कई महत्वपूर्ण चिट्ठों यथा ज्ञानदत्त पांडे का मानसिक हलचल, दीपक बाबू कहिन , भारतीयम , परिकल्पना, महाशक्ति, सुनो भाई साधो, किसानों के लिए , शब्दों का सफ़र , साई ब्लॉगआदि की व्यापक चर्चा हुई । उनकी चर्चा पांच खण्डों की रही जिसके लिंक इसप्रकार है -
मेरी पसंद के चिट्ठे-१ मेरी पसंद के चिट्ठे-२मेरी पसंद के चिट्ठे-३ मेरी पसंद के चिट्ठे-४मेरी पसंद के चिट्ठे-५ मेरी पसंद के चिट्ठे-६

हिंदी चिट्ठों की विश्लेषण श्रृंखला की शुरुआतपरिकल्पना पर वर्ष-२००७में हुई थी , वर्ष-२००८ में यह विश्लेषण परिकल्पना पर ११ भागों में प्रकाशित हुआ , जिसका लिंक इसप्रकार है -
वर्ष-२००८ : हिंदी चिट्ठा हलचल -१


इसके अलावा कतिपय ब्लॉग जिनकी संख्या काफी है ने भी अपने - अपने ढंग से अपने चहेते ब्लॉग का लिंक देकर उत्साह्बर्द्धन किया इस वर्ष ।

यहाँ एक ब्लॉग का जिक्र प्रासंगिक है, कि वर्ष के आखिरी महीनों में एक ब्लॉग का प्रादुर्भाव हुआ , संजय ग्रोबरके इस ब्लॉग का नाम है - संवाद घरयानी चर्चा घर । इस घर में ब्लॉग की तो चर्चा नहीं होती , किन्तु जिसकी चर्चा होती है वह कई मायनों में महत्वपूर्ण है . इस पर चर्चा होती है समसामयिक मुद्दों की , समसामयिक जरूरतों की , समाज की, समाज के ज्वलंत मुद्दों की यानी विचारों के आदान-प्रदान को चर्चा के माध्यम से गंभीर विमर्श में तब्दील करने का महत्वपूर्ण कार्य किया है इस ब्लॉग ने !
........जारी है .......

आप जो चाहेंगे मिलेगा इस कबाड़खाने में ।

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......गतांक से आगे ....

वर्ष-२००८ में मैं कुछ ऐसे ब्लोग्स से रूबरू हुआ जिनमें विचारों की दृढ़ता स्पष्ट दिखाई दे रही थी । मुझे उन चिट्ठों की सबसे ख़ास बात जो समझ में आयी वह है पूरी साफगोई के साथ अपनी बात रखने की कला । ब्लॉग चाहे छोटा हो अथवा बड़ा , किसी भी पोस्ट ने मेरे मन-मस्तिस्क को झकझोरा, उसकी चर्चा आज मैं करने जा रहा हूँ -

आज सबसे पहले हम चर्चा करेंगे विचारों की दृढ़ता को वयां करता एक ब्लॉग
“समतावादी जन परिषद्का । इस ब्लॉग पर इस वर्ष कनाडा के माडवार्लो का एक लेख प्रकाशित हुआ । वार्लो कनाडा में पानी के निजीकरण के ख़िलाफ़ आन्दोलन चलाती है। उस आलेख में यह उल्लेख है की वर्ष- २०२५ में विश्व की आवादी आज से २.६ अरब अधिक हो जायेगी । इस आवादी के दो-तिहाई लोगों के समक्ष पानी का गंभीर संकट होगा तथा एक-तिहाई के समक्ष पूर्ण अभाव की स्थिति होगी । इस ब्लॉग की सबसे बड़ी विशेषता यह है ,कि वर्ष-२००८ में यह ब्लॉग विचारों और पूर्वानुमान की सार्थकता को आयामित करता रहा । वैसे यह ब्लॉग समतावादी जन परिषद् भारत के चुनाव आयोग में पंजीकृत है और इसमें आम-जन की आवाज़ स्पष्ट परिलक्षित होता है। जिन्हें राजनीतिक विचारधारा से कुछ भी लेना देना नही है, वे भी इस ब्लॉग से मिली जानकारियों का मजा ले सकते हैं ।ब्लॉग अपने हर आलेख में जीवन का कर्कश उद्घोष करता दिखाई देता है , वह भी पूरी निर्भीकता के साथ । यही इस ब्लॉग की विशेषता है ।

दूसरा ब्लॉग जिसकी चर्चा मैं आज करने जा रहा हूँ , वह है –
“ इंडियन बाईस्कोप डॉट कॉम “ब्लोगर दिनेश का बाईस्कोप देखिये और महसूस कीजिये हिन्दी सिनेमा की सुनहरी स्मृतियाँ ! सिनेमा के शूक्ष्म पहलुओं से रू-ब-रू कराता है यह ब्लॉग। ब्लोगर दिनेश का कहना है, की –“ सिनेमा के प्रति सबसे पहले अनुराग कब जन्मा , नही कह सकता , पर जितनी स्मृतियाँ वास्तविक जीवन की है , उतनी ही सिनेमाई छवियों की भी है । बरेली के दिनेश बेंगलूरू में काम करते बक्त भी इस ब्लॉग के माध्यम से अपने शहर, समाज और सिनेमा के रिश्तों में गूंथे हैं। "

दिनेश अपने एक लेख में यह लिखते हैं, की “ कई बार मन में यह सवाल कौंधता है की भीतर और बाहर की अराजकता को एक सिस्टम दे सकूं , एक दिशा दे सकूं- वह कौन सा रास्ता है . मन ही मन बुद्ध से लेकर चग्वेरा तक को खंगाल डालता हूँ ……!”

सबसे बड़ी बात है इस ब्लॉग की पठनीयता और संप्रेशानियता जो इस ब्लॉग को एक अलग मुकाम देती है । सिनेमाई वार्तालाप के क्रम में ब्लोगर की आंचलिक छवि और संस्मरण की छौंक उत्कृष्टता का एहसास कराती है। निष्पक्ष और दृढ़ता के साथ अपनी सुंदर प्रस्तुति और अच्छी तस्वीरों के माध्यम से यह ब्लॉग पाठकों से आँख- मिचौली करता दिखाई देता है।

वर्ष-२००८ में एक अत्यन्त महत्वपूर्ण ब्लॉग से मैं मुखातिब हुआ । भीखू महात्रे, मुम्बई का किंग अर्थात
मनोज बाजपेयीभी पधार चुके हैं ब्लॉग की दुनिया में । मनोज बाजपेयी के बारे में मैं क्या कहूं आप से , इस प्रयोगधर्मी अभिनेता को कौन नही जानता , पूरा विश्व जानता है ।

मनोज ने अपने ब्लॉग पर जो भी आलेख लिखे हैं , वह जीवन का कड़वा सच दिखाई देता है। मनोज अपने बारे में लिखते हैं, की “ मुझे याद है एक नाटक- जो मैंने कई साल पहले दिल्ली रंगमंच पर किया था . इसमें मैं अकेला अभिनेता था . इस नाटक में मैं इक रिटायर्ड स्टेशन मास्टर की भुमिका की थी , जो अपने बेटे और बहू द्वारा प्रताडितहै ….!” ऐसे बहुत सारे अविस्मरनीय क्षण महसूस कराने को मिलेंगे आपको इस ब्लॉग पर ।

मनोज ने अपने पहले ही आलेख में बड़ी दिल चस्प संस्मरण सुनाते हैं की कैसे बिहार के सीमावर्ती क्षेत्र के रहने वाले एक अभिनेता के घर पहली बार टेप आया। मनोज कहते हैं, की बाबूजी बीर गंज से पानासोनिक का टेप रिकॉर्डर ले आए थे । ब्लोगर कहते हैं की बिहार के कई लोगों के घर टेप रिकॉर्डर नेपाल के बीरगंज से ही आया। इस संस्मरण को जब मनोज सुनाते हैं तो जिस्म में अजीब सी सिहरन महसूस होती है।

और भी कई मार्मिक और दिलचस्प संस्मरण आपको पढ़ने को मिलेंगे इस ब्लॉग पर। बस एक वार क्लिक कीजिये और चले जाईये मनोज के संग विचारों और संस्मरणों की दुनिया में।


आज की इस चर्चा में जिस चौथे ब्लॉग की मैं चर्चा करने जा रहा हूँ , वह है
-“ कबाड़खाना “
किसी विचारक ने कहा है, कि जो बस्तुओं के पीछे भागता है, वह अकेला होता है और जो व्यक्तियों के पीछे भागता है उसके साथ पूरी दुनिया होती है.इस बात को जब हम महसूस करना छोड़ देते है , वही से कबाड़वाद पृष्ठभूमि बनने लगती है. बस इसी को महसूस कराता हुआ यह ब्लॉग है कबाड़खाना ।

अशोक पांडे का यह ब्लॉग भारत का आम उपभोक्ता को आईना दिखाने का काम करता है और यही ब्लॉग की सबसे बड़ी विशेषता है। प्रकृति को उत्पादन और उपभोग की मार से बचाने का माध्यम है यह कबाड़खाना ।

रवीश कुमारइस ब्लॉग के बारे में कहते हैं, कि –“ पेप्पोर रद्दी पेप्पोर चिल्लाते- चिल्लाते अशोक पांडे का यह ब्लॉग कबाड़वाद फैला रहा है। इस ब्लॉग पर जो भी आता है , उसका कबाड़ीवाला कहकर स्वागत किया जाता है। विरेन डंगवाल हों या उदय प्रकाश, ये सब कबाड़ीवाले हैं। “ इस कबाड़ में आपको मिलेंगे रागयमन में गंगा स्तुति सुनाते हुए पंडित छन्नू लाल मिश्रा , वहीं बेरोजगारी पर कविता लिखते सुंदर चंद ठाकुर ……और भी बहुत कुछ …आईये और देखिये इस कबाड़ में आपके लायक क्या है ?
मेरा दावा है, की आप जो चाहेंगे मिलेगा इस कबाड़खाने में ।

अब हम जिस ब्लॉग की चर्चा करने जा रहे हैं उसका नाम है
“ प्राइमरी का मास्टर “जी हाँ मास्टर साहब हैं उत्तर प्रदेश के फतेहपुर के प्रवीण त्रिवेदी , जो अपने ब्लॉग के बारे में बड़े हीं साफ़ ढंग से कहते हैं , कि- “प्राईमरी स्कूल में कार्य कर रहे अध्यापकों से जुडी समस्यायों और छवियों को लेकर अंतर्द्वंद का ही परिणाम है मेरा यह ब्लॉग…!”

हमारी शिक्षा व्यवस्था की नींब और हमारे व्यापक सामाजिक सरोकारों को नया आयाम देने हेतु सुदृढ़ आधार रहा है प्राईमरी स्कूल । बस इसी बात को प्रमाणित करने की वेचैनी दिखती है उत्तर प्रदेश के इस छोटे से शहर के इस ब्लोगर में। शिक्षा के विभिन्न आयामों से गुजरते हुए यह ब्लॉग कभी- कभी सार्थक वहस को भी जन्म देता दिखाई देता है। प्रवीण कहते हैं, कि प्राईमरी के मास्टर की सबसे बड़ी समस्या है वह ख़ुद को अपडेट नही रख पाता , वहीं जनमानस को चाहिए की प्राईमरी मास्टर के प्रति अपने पूर्वाग्रहों को अपने मन से हटा दें…।

प्राईमरी का यह मास्टर अपने ब्लॉग पर अनेक दिलचस्प बातें करता हुआ दिखाई देता है , जैसे एक जगह प्रवीण कहते हैं ,कि कई स्कूल मिलकर अपने शिक्षकों का भी मूल्यांकन करें … ।

यह ब्लॉग वर्ष-२००८ में लगातार पोस्ट-दर-पोस्ट मुखर होता गया और इसके पाठक वहस- दर- वहस इस ब्लॉग का हिस्सा बनते चले गए ।

कमोवेश इसी पृष्ठभूमि का परिस्कृत रूप है एक ब्लॉग , जिसका नाम है-“एक हिंदुस्तानी की डायरी“

उस ब्लॉग पर जहाँ एक शिक्षक की वेचैनी परिलक्षित होती है, वहीं इस ब्लॉग पर एक वेचैन हिन्दुस्तानी की वैचारिकछटपटाहट परिलक्षित होती है । यह वेचैन हिन्दुस्तानी कभी इकसठ साल पुराने मुद्दे को उठाता है तो कभी मायावती और पेप्सिको प्रमुख इंदिरा नुई के बीच की समानताओं को । इस ब्लॉग की सबसे बड़ी खासियत है ब्लोगर की दृढ़ता । ब्लोगर कभी ग्लोबलायिजेसन के अंतर्विरोधों को सामने लाने की कोशिश करता है तो कभी विदेशी व्यापार के असर को रेखांकित करते हुए इसके सकारात्मक पहलुओं की विवेचना भी ।

यह एक गंभीर ब्लॉग है और इस पर अनेकों गंभीर विषयों को बड़े सहज ढंग से उठाया गया है ।

शिक्षा और समाज के बाद आईये चलते हैं भारतीय लोकतंत्र के तीसरे स्तंभ न्यायपालिका की और। जी हाँ न्याय के विभिन्न पहलुओं से रू-ब-रू कराने वाला ब्लॉग है
“अदालत “

अदालती कार्यवाही और फैसलों का समग्र प्रभामंडल है यह ब्लॉग। हम फैसलों को व्यक्तिगत हार- जीत के रूप में देखते हैं , जबकि इनका मकसद होता है सामाजिक व्यापकता। एक तरफ़ जहाँ लोकेश कर्णाटक हाई कोर्ट के फैसले का जिक्र करते हुए बिकलान्गता के पैमाने की चर्चा करते हैं , वहीं दूसरी तरफ़ अदालतों की भाषा शैली पर भी प्रश्न चिन्ह लगाते हुए अपने विचारों को पूरी दृढ़ता के साथ रखने में कामयाब होते दिखते हैं ।

कहीं-कहीं ब्लोगर तो किसी बेजान से मुकदमें से सामाजिक प्रसंग ढूंढता हुआ दीखता है, तो कहीं भूत-प्रेत के मुकदमों से सनसनी पैदा करता हुआ। कुल मिलाकर यह ब्लॉग काफी दिलचस्प है।

समयबद्ध भविष्यवाणी के साथ अनिश्चय से निश्चय की ओर कदम बढाती ज्योतिष की नई शाखा है एक ब्लॉग , जिसका नाम है
गत्यात्मक ज्योतिषब्लोगर हैं बोकारो झारखंड की संगीता पुरी।

ज्योतिष एक ऐसा विषय है जिस पर लोगों के विचारों में काफी मतभेद देखने को मिलता , कोई इसे अंध विशवास तो कोई विज्ञान की संज्ञा देते हैं । विचारों पर कार्यों का प्रभुत्व बनाने वाले कुछ लोग जो इसे अंध विश्वास की संज्ञा देते हैं वही किसी अनजाने भय से ग्रस्त होते ही ज्योतिषीय सलाह लेने से पीछे नही हटते । खैर विचारों का यह द्वंद चलता रहेगा , मगर कुल मिलाकर यह चिट्ठा ज्योतिषीय सलाहकार के रूप में अपनी पहचान बनाने में सफल रहा है ।


भीतर झांकने का जो हमारा दर्शन है वह पिछले संस्कारों को जानने तथा परिष्कृत करने के लिए है । जीवन चक्र की अनुभूति करने वाला एक ब्लॉग है
सच्चा शरणमब्लोगर हैं उत्तर प्रदेश के छोटे से शहर सकल डीहा के हिमांशु । यह ब्लॉग हमें हमारे भीतर की यात्रा कराता है।

यह ब्लॉग कर्म और अकर्म के बीच झुलाते मानवीय भावनाओं के अंतर्विरोधों को आयामित करता हुआ दिखाई देता है । हमारेजीवन का आधार है मन। मन है तो इच्छा है । इच्छा है तो गतिविधि है , लक्ष्य है, कार्य कलाप है , जीवन है । मन क्या है ? इसका स्वरूप , इसका कार्य , इसका वातावरण कैसे तैयार होता है ? जानना हो तो इस ब्लॉग पर एक बार अवश्य आईये …..

एक कविता की यह पंक्तियाँ है, कि-" अनजाने में फ़िर भी अनजान नही /दबे पाँव आहट मन- मस्तिस्क को रौंदती आगे बढ़ी/घोर निद्रा , फ़िर अधजगे में वह सपना मन में उठे आवेग को शायद सुलाने का प्रयत्न किया / उसकी ही याद में फ़िर एक बार तंद्रा भंग हुयी और भूल गया कि मैं कौन हूँ ?" इन प्रश्नों का हल ढूँढना हो तो आ जाईये
स्वप्न लोकपर । ब्लोगर हैं विवेक सिंह ।

ब्लोगर अपनी अत्यन्त सूक्ष्म-अनुभूतिओ के माध्यम से ले जायेगा एक सपनों की दुनिया में , जहाँ पहुँच कर कोई भी पाठक चौंक जायेगा एकवारगी । अत्यन्त ही सुंदर है विवेक सिंह की अनुभूतियों से रचा- बसा यह ब्लॉग।

मेरी जानकारी में कई तकनीकी चिट्ठे हैं जो वर्ष-२००८ में धमाल मचाते रहे मगर सबकी चर्चा करना संभव नही । तो आईये कुछ चिट्ठों पर प्रकाशित तकनीकी पोस्ट जो मुझे अत्यन्त उपयोगी लगी उसी की चर्चा करते हैं -

पहला चिट्ठा है "Raviratlami Ka Hindi Blog "इस ब्लॉग पर ०१ अक्तूबर को एक पोस्ट प्रकाशित हुयी " ये फीड क्या है ? ये फीड ? और,आपके चिट्ठे की पूरी फीड क्यों जरूरी है ?" दूसरा चिट्ठा है उन्मुक्तजिसपर १५ दिसम्बर को प्रकाशित "फ्रेमिंग भी ठीक नही .... । " इसी प्रकार छुट-पुटपर १३ दिसंबर को प्रकाशित "ओ एस-२/ जिंदा रहना चाहता है ... । "॥दस्तक॥पर२२ अक्तूबर को प्रकाशित " चिट्ठे पर फाईल अप लोड कीजिये "। सुनो भाई साधो...........पर २७ अगस्त को कई भागों में प्रकाशित "ब्लॉग पेज को कैसे सजाएं ...... । "अंकुर गुप्ता का हिन्दी ब्लागपर २४ अगस्त को प्रकाशित "अब उबंतू इंस्टाल बिना किसी दिक्कत के " । kunnublog - Means Total Entertainmentपर १३ नवम्बर को प्रकाशित "ओपेरा मोबाईल को कंप्यूटर बनाता है और हिन्दी फिल्म देखे और ब्लागींग कंप्यूटर की तरह कर सकते हैं ..... ।" Prathamपर ०५ नवम्बर को प्रकाशित " File Sharing आपके Mobile से ही । हिन्दी ब्लॉग टिप्सपर ३० अक्तूबर को प्रकाशित "सबसे आसान आरकाइव (सभी प्रविष्ठियां दिखाएं) "diGit Blogहिन्दी पर १६ अक्तूबर को प्रकाशित "एचटीसी टच एचडी की एक नई फीचर…।"Control Panelकंट्रोल पैनलपर २८ अगस्त को प्रकाशित "How to improve Apple iPhones Battery life?"e-मददपर २६ अगस्त को प्रकाशित "कोई फ्री में वेबसाइट (डोमेन) दे तो थोड़ा सावधान रहें ।"नौ दो ग्यारहपर १९ अगस्त को प्रकाशित "गूगल पर बीजिंग २००८"समोसा बर्गर पर २८ अगस्त को प्रकाशित "अपने कंप्यूटर पर वर्डप्रेस इंस्टाल तकनीकी दस्तकपर ०९ अगस्त को प्रकाशित "आप का काम आसान बनाये.. " आदि प्रशंसनीय कही जा सकती है ।

वर्ष-२००८ में उपरोक्त चिट्ठों के अतिरिक्त और चिट्ठे भी थे , जिसपर अच्छी-अच्छी जानकारियां प्राप्त होती रही , वे महत्वपूर्ण ब्लॉग हैं -मानसिक हलचल...... /सारथी... /hindiblogosphere .../टेक पत्रिका.../ Blogs Pundit... /हि.मस्टडाउनलोड्स डॉटकॉम... /Vyakhaya... /दुनिया मेरी नज़र से - world from my eyes!!... /घोस्ट बस्टर का ब्लॉग... /ज्ञान दर्पण... /Cool Links वैब जुगाड़... /अक्षरग्राम... /लिंकित मन... /मेरी शेखावाटी...आदि चिट्ठों पर भी समय-समय पर सारगर्भित तकनीकी पोस्ट देखने को लगातार मिले हैं ।


समय की प्रतिबद्धता के कारण बहुत सारे तकनीकी ब्लॉग की चर्चा नही की जा सकी है , मगर यह कदापि न सोचा जाए कि उनके ब्लॉग पर सार्थक पोस्ट नही परोसी जाती । अगले और अन्तिम भाग में हम आपको बताएँगे कि कौन-कौन से ब्लोगर वर्ष- २००८ में नए ब्लोगर हेतु प्रेरणास्त्रोत रहे और किस ब्लोगर का योगदान हिन्दी ब्लॉग जगत में नई क्रान्ति लाने की दिशा में महत्वपूर्ण माना जा सकता है ...!

वर्ष-२००८ के अग्रणी ब्लोगर

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........गतांक से आगे ....

हिंदी ब्लोगिंग के समूचे परिदृश्य के बिहंगावलोकन के क्रम में मैंने वर्ष-२००३ से वर्ष-२००८ तक के सक्रिय और महत्वपूर्ण ब्लॉग का उल्लेख कर चुके हैं , संभव है कुछ और महत्वपूर्ण ब्लॉग शेष रह गए हों , जिनकी चर्चा न की जा सकी हो । अब आज के इस अंक में हम आपको ले चलते हैं कुछ ऐसे ब्लोगर के पास जो अपने-अपने फन में माहिर है ।

ऐसे प्रेरणाप्रद

चिट्ठाकारों की चर्चा करें , उससे पहले हम कुछ विशेष चिट्ठों की चर्चा करने जा रहे हैं जिनका जिक्र अबतक नहीं हो पाया किन्तु वे विशेष सम्मान के हकदार थे । पहला ब्लॉग है -तस्लीम

यह विज्ञान पर आधारित कम्युनिटी ब्लॉग है । इस ब्लॉग के कर्ताधर्ता हैं लखनऊ के जाकिर अली रजनीश । तस्लीम कोई उर्दू का शब्द नही अपितु स्थानीय मुद्दों पर जागरूकता फैलाने वाले वैज्ञानिकों की टीम के अंगरेजी नाम का संक्षिप्त रूप है । इसका मकसद है आप अपने आस-पास की प्रकृति और विज्ञान को कितना समझते हैं ।

इस ब्लॉग पर जितने सुंदर और सारगर्भित विचार देखने को मिले हैं उतनी ही सुंदर तस्वीर भी डाले जाते रहे हैं । तस्वीरों के जरिय बाकायदा विज्ञान पहेली चलती है। स्थानीय मुद्दों पर आधारित ब्लॉग की श्रेणी में यह ब्लॉग यकीनन श्रेष्ठ है। वर्ष – २००८ में इस ब्लॉग पर जो महत्वपूर्ण पोस्ट मुझे देखने को मिली , वह थी लखनऊ की गंदी हो रही गोमती नदी को लेकर चिंता दिखाई पड़ती है तथा उसकी सफाई के लिए जनता के स्तर पर हो रही कोशिशों के प्रति उत्साह भी ।


आईये अब एक ऐसे विशिष्ट ब्लॉग की ओर रूख करते हैं , जो न्यायिक गतिविधियों पर केन्द्रित है ...यह सर्वविदित है कि हमारा
न्याय और न्याय की धाराएं इतनी पेचीदा हो गयी है , कि अदालत का नाम सुनकर व्यक्ति एकबार काँप जाता है जरूर क्योंकि बहुत कठिन है इन्साफ पाने की डगर । हमारा मकसद यहाँ न तो न्यायपालिका पर ऊंगली उठाने का है और न ही किसी की अवमानना का । पर यह कड़वा सच है की हमारी प्रक्रिया इतनी जटिल हो गयी है की इन्साफ का मूलमंत्र उसमें कहीं खोकर रह गया है। आदमी को सही समय पर सही न्याय चाहकर भी नही मिल पाता। ऐसे में अगर कोई नि:स्वार्थ भाव से आपको क़ानून की पेचीदिगियों से रू-ब-रू कराये और क़ानून की धाराओं के अंतर्गत सही मार्ग दर्शन दे तो समझिये सोने पे सुहागा । ऐसा ही इक ब्लॉग है – तीसरा खम्बा.ब्लोगर हैं कोटा राजस्थान के दिनेश राय द्विवेदी ।

इस वर्ष एक और महत्वपूर्ण ब्लॉग का आगमन हुआ -सत्यार्थ मित्र , जिसने देखते ही देखते हिंदी ब्लॉग जगत में अपनी सार्थक उपस्थिति से सबका मन मोह लिया । सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी के निजी लेखों से भरा-पडा यह ब्लॉग अपने आप में अनूठा है । अनूठा का अभिप्राय है कि इसके आलेख संस्कृतियों और संस्मरण के ईर्द-गिर्द चक्कर काटते नज़र आते हैं । हिंदी का यह पहला ब्लॉग है जिसकी समस्त सामग्रियों को पुस्तक का रूप देकर संग्रहनीय बनाया गया है ।

आज तपेदिक हो गया है सच को , कल्पनाएँ लूली- लंगडी हो गयी है और बार- बार मर्यादा की गलियारों में घूमते हुए लोग जब सामना करते हैं अपनी गलतियों का तो कहते हैं शायद विधाता को यही मंजूर है ….!

ऐसे में जब हमारे बीच का कोई ब्लोगर सच उजागर करने की दिशा में कार्य कर रहा हो तो उसका स्वागत किया जाना चाहिए । इस श्रेणी के पांच सामुदायिक ब्लॉग इस वर्ष ज्यादा सक्रिय दिखे – नारी,दाल रोटी चावलचोखेरवाली ,
भडासब्लॉग, भड़ासऔर मुहल्ला

इन सब में से दाल रोटी चबल,नारी और चोखेरवालीब्लॉग इसी वर्ष शुरू हुआ , किन्तु पहले ही वर्ष में इसकी दृढ़ता और सक्रियता ने सबको अचंभित कर दिया ।यहाँ महिला की उपलब्धि भी हैं , महिला की कमजोरी भी और समाज के रुढ़िवादि संस्कारों का नारी पर असर कितना और क्यों ? यहाँ पर संवाद भी हैं समाज के दूसरे वर्गों से । संवाद सब वर्गों के लिये खुला हैं । कमेन्ट दे कर हमारी सोच को विस्तार भी दे और सही भी करे क्योकि हम वहीलिख रहे हैं जो हम को मिला हैं या बहुत ने भोगा हैं । किसी को लगता हैं हम ग़लत हैं तो हमे जरुर बताये कई बार प्रश्न किया जा रहा हैं कि अगर आप को अलग लाइन नहीं चाहिये तो अलग ब्लॉग क्यूँ ?? इसका उत्तर हैं कि " नारी "ब्लॉग एक कम्युनिटी ब्लॉग हैं जिस की सदस्या नारी हैं जो ब्लॉग लिखती हैं । ये केवल एक सम्मिलित प्रयास हैं अपनी बात को समाज तक पहुचाने का.....!नारी ब्लॉग पर केवल महिला ब्लॉगर लिखती हैं और चोखेर बाली ब्लॉग पर कोई भी ब्लोगर लिख सकता हैं ।इस क्षेणी के और भी ब्लॉग हैं पर साँझा ब्लॉग केवल यही हैं हिंदी ब्लोगिंग मे जो आज भी सक्रिये हैं


हिन्दी को समृध्द करने में हमारी क्षेत्रीय भाषाओं की महत्वपूर्ण भूमिका रही है , इसलिए हिन्दी ब्लॉग की चर्चा के क्रम में क्षेत्रीय भाषाओं के महत्वपूण ब्लॉग की चर्चा न की जाए तो बेमानी होगा । क्षेत्रीय भाषाओं में कई चिट्ठे सक्रिय हैं और सब एक पर एक । उसी भीड़ से मैंने दो मोती निकाले हैं जो वर्ष-२००८ में अत्यधिक सक्रीय थे । पहला है
भोजपुर नगरियाऔर मिथिला मिहिर


पहला है भोजपुरी में और दूसरा है मैथिलि में । भोजपुरी के ब्लॉग पर ब्लोगर प्रभाकर पांडे देवरिया से लेकर कुशीनगर तक की कथाओं का जिक्र करते है और मिथिला मिहिर पर मैथिलि भाषा की दुर्लभ रचनाएँ आपको मिलेंगी ।

वर्ष-२००८ में हिन्दी चिट्ठा क्रान्ति के अग्रदूत और नए चिट्ठाकारों के लिए प्रेरणा के प्रकाश पुंज रहे ये ब्लोगर –

( नामों का उल्लेख वरीयताक्रम में नही है , अपितु वर्णानुक्रम में है )

(१) शब्दावली में अग्रणी - श्री अजित वाडनेकर (२) सकारात्मक टिपण्णी में अग्रणी - श्री अनूप शुक्ल (३) साफ़गोई में अग्रणी - श्री डॉ अमर कुमार (४) विज्ञान में अग्रणी - श्री अरविन्द मिश्रा (५) व्यंग्य में अग्रणी - श्री अविनाश वाचस्पति (६) हास्य में अग्रणी - श्री अशोक चक्रधर (७) तकनीकी पोस्ट में अग्रणी - उन्मुक्त (८) सामुदायिक गतिविधियों में अग्रणी -श्री जाकिर अली रजनीश (९)कानूनी सलाह में अग्रणी - दिनेश राय द्विवेदी (१०) सिनेमा संवंधित फीचर में अग्रणी- श्री दिनेश श्रीनेत (११) चिंतन में अग्रणी - दीपक भारतदीप (१२) विनम्र शैली में अग्रणी - श्री नीरज गोस्वामी (१३) क्षेत्रीय भाषा भोजपुरी में अग्रणी-श्री प्रभाकर पांडे (१४) सकारात्मक प्रतिक्रया में अग्रणी- श्री पंकज अवधिया (१५) सकारात्मक सोच में अग्रणी -श्री महेंद्र मिश्रा(१६) तकनीकी सृजन में अग्रणी- श्री रवि रतलामी (१७) शिक्षा- दीक्षा में अग्रणी -श्री शास्त्री जे सी फिलिप (१८) ज्योतिष में अग्रणी- श्रीमती संगीता पुरी (१९) प्रशंसा -प्रसिद्धि में अग्रणी- श्री समीर लाल (२०) सामयिक सोच -विचार में अग्रणी- श्री ज्ञान दत्त पांडे ........नारी आधरित मुद्दों मे नीलिमा , सुजाता और रचना तथा (२१) गीतात्मकता में अग्रणी रहे राकेश खण्डॆलवाल.........!

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हिन्दी ब्लोगिंग की दृष्टि से सार्थक रहा वर्ष-२००९

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..आज जिसप्रकार हिंदी ब्लोगर साधन और सूचना की न्यूनता के बावजूद समाज और देश के हित में एक व्यापक जन चेतना को विकसित करने में सफल हो रहे हैं वह कम संतोष की बात नही है । हिन्दी को अंतर्राष्ट्रीय स्वरुप देने में हर उस ब्लोगर की महत्वपूर्ण भुमिका है जो बेहतर प्रस्तुतीकरण, गंभीर चिंतन, सम सामयिक विषयों पर सूक्ष्मदृष्टि, सृजनात्मकता, समाज की कुसंगतियों पर प्रहार और साहित्यिक- सांस्कृतिक गतिविधियों के माध्यम से अपनी बात रखने में सफल हो रहे हैं। ब्लॉग लेखन और वाचन के लिए सबसे सुखद पहलू तो यह है कि हिन्दी में बेहतर ब्लॉग लेखन की शुरुआत हो चुकी है जो हम सभी के लिए शुभ संकेत का द्योतक है । वैसे वर्ष-२००९ हिंदी ब्लोगिंग के लिए व्यापक विस्तार और बृहद प्रभामंडल विकसित करने का महत्वपूर्ण वर्ष रहा है । आईये वर्ष -२००९ के महत्वपूर्ण ब्लॉग और ब्लोगर पर एक नज़र डालते हैं ।

हिंदी ब्लॉग विश्लेषण -२००९ की शुरुआत एक ऐसे ब्लॉग से करते हैं जो हिंदी साहित्य का संवाहक है और हिंदी को समृद्ध करने की दिशा में दृढ़ता के साथ सक्रिय है .वैसे तो इसका हर पोस्ट अपने आप में एक महत्वपूर्ण दस्तावेज़ होता है , किन्तु शुरुआत करनी है इसलिए २० जून -२००९ के एक पोस्ट से करते हैं। हिंदी युग्म के साज़ -वो-आवाज़ के सुनो कहानी श्रंखला के अर्न्तगत प्रकाशित हिंदी के मूर्धन्य कथाकार मुंशी प्रेमचंद की कहानी इस्तीफा से ....! "मुंशी प्रेमचंद की कहानी "इस्तीफा"को स्वर दिया है पिट्सवर्ग अमेरिका के प्रवासी भारतीय अनुराग शर्मा ने।
शपथ-इस्तीफा के बाद राजनीति का तीसरा महत्वपूर्ण पहलू पुतला दहन , पुतला दहन का सीधा-सीधा मतलब है जिन्दा व्यक्तियों की अंत्येष्ठी । पहले इस प्रकार का कृत्य सांस्कृतिक और धार्मिक आयोजनों तक सीमित था । बुराई पर अच्छाई के प्रतीक के रूप में रावण-दहन की परम्परा थी , कालांतर में राजनीतिक और प्रशासनिक व्यक्तियों के द्वारा किए गए ग़लत कार्यों के विरोध में जनता द्वारा किए जाने वाले विरोध के रूप में हुआ । पुतला-दहन धीरे - धीरे अपनी सीमाओं को लांघता चला गया । आज नेताओं के अलावा महेंद्र सिंह धौनी से लेकर सलमान खान तक के पुतले जलते हैं । मगर छ्त्तीसगढ़ के दुर्ग जिले में एक बाप ने अपनी जिंदा बेटी का पुतला जलाकर पुतला - दहन की परम्परा को राजनीतिक से पारिवारिक कर दिया और इसका बहुत ही मार्मिक विश्लेषण किया है शरद कोकास ने अपने ब्लॉग पास-पड़ोस पर दिनांक २४.०७.२००९ को प्रेम के दुश्मन शीर्षक से ।
शपथ , इस्तीफा , पुतला दहन के बाद आईये रुख करते हैं राजनीति के चौथे महत्वपूर्ण पहलू "मुद्दे " की ओर....

जी हाँ ! कहा जाता है कि मुद्दों के बिना राजनीति तवायफ का वह गज़रा है , जिसे शाम को पहनो और सुबह में उतार दो । अगर भारत का इतिहास देखें तो कई मौकों और मुद्दों पर हमने ख़ुद को विश्व में दृढ़ता से पेश किया है । लेकिन अब हम भूख, मंहगाई , बेरोजगारी जैसे मुद्दों से लड़ रहे हैं । अज़कल मुद्दे भी महत्वकांक्षी हो गए हैं । अब देखिये न ! पानी के दो मुद्दे होते हैं , एक पानी की कमी और दूसरा पानी कि अधिकता । पहले वाले मुद्दे का पानी हैंडपंप में नही आता, कुओं से गायब हो जाता है , नदियों में सिमट जाता है और यदि टैंकर में लदकर किसी मुहल्ले में पहुँच भी जाए तो एक-एक बाल्टी की लिए तलवारें खिंच जाती हैं । दूसरे वाले मुद्दे इससे ज्यादा भयावह है । यह संपूर्ण रूप से एक बड़ी समस्या है । जब भी ऐसी समस्या उत्पन्न होती है , समाज जार-जार होकर रोता है , क्योंकि उनकी अरबों रुपये की मेहनत की कमाई पानी बहा ले जाता है । सैकड़ों लोग , हजारों मवेशी अकाल मौत की मुंह में चले जाते हैं और शो का पटाक्षेप संदेश की साथ होता है - अगले साल फ़िर मिलेंगे !

ऐसे तमाम मुद्दों से रूबरू होने के लिए आपको मेरे साथ चलना होगा बिहार जहाँ के श्री सत्येन्द्र प्रताप ने अपने ब्लॉग जिंदगी के रंग पर दिनांक ०७.०८.२००९ को अपने आलेख .... कोसी की अजब कहानी में ऐसी तमाम समस्यायों का जिक्र किया है जिसको पढ़ने के बाद बरबस आपके मुंह से ये शब्द निकल जायेंगे कि क्या सचमुच हमारे देश में ऐसी भी जगह है जहाँ के लोग पानी की अधिकता से भी मरते हैं और पानी न होने के कारण भी । ऐसा नही कि श्री सत्येन्द्र अपने ब्लॉग पर केवल स्थानीय मुद्दे ही उठाते है , अपितु राष्ट्रिय मुद्दों को भी बड़ी विनम्रता से रखने में उन्हें महारत हासिल है । दिनांक ०४.०६.२००९ के अपने एक और महत्वपूर्ण पोस्ट यह कैसा दलित सम्मान? में श्री सत्येन्द्र ने दलित होने और दलित न होने से जुड़े तमाम पहलुओ को सामने रखा है दलित महिला नेत्री मीरा कुमार के बहाने । जिंदगी के रंग में रंगने हेतु एक बार अवश्य जाईये ब्लॉग जिंदगी के रंग पर .....

मुद्दों पर आधारित ब्लॉग की चर्चा के क्रम में जिस चिट्ठे की चर्चा करना आवश्यक प्रतीत हो रहा है वह है- " आदिवासी जगत " और ब्लॉगर हैं -श्री हरि राम मीणा । यह ब्लॉग आदिवासी समाज को लेकर फ़ैली भ्रांतियों के निराकरण और उनके कठोर यथार्थ को तलाशने का विनम्र प्रयास है । दिनांक २२.०५.२००९ को प्रकाशित अपने आलेख आदिवासी संस्कृति-वर्तमान चुनौतियों का उपलब्ध मोर्चा में श्री मीणा आदिवासी समाज के ज्ञान भंडार को डिजिटल शब्दों के साथ साईबर संसार में फैलाना चाहते हैं ।......अब आईये उस ब्लॉग की ओर रुख करते हैं जो एक ऐसे ब्लोगर की यादों को अपने आगोश में समेटे हुए है जिसकी कानपुर से कुबैत तक की यात्रा में कहीं भी माटी की गंध महसूस की जा सकती है । अपने ब्लॉग मेरा पन्ना में कानपुर के जीतू भाई कुवैत जाकर भी कानपुर को ही जीते हैं।वतन से दूर, वतन की बातें, एक हिन्दुस्तानी की जुबां से…अपनी बोली में.... !दिनांक ०९.०९.२००९ को इस ब्लॉग के पाँच साल पूरे हो गए। इंटरनेट के चालीस साल होने के इस महीने में हिंदी के एक ब्लॉग का पांच साल हो जाना कम बड़ी बात नहीं है।

...............वर्ष-२००९ में जो कुछ भी हुआ उसे हिंदी चिट्ठाजगत ने किसी भी माध्यम की तुलना में बेहतर ढंग से प्रस्तुत करने की पूरी कोशिश की है। चाहे बाढ़ हो या सुखा या फ़िर मुम्बई के आतंकवादी हमलों के बाद की परिस्थितियाँ, चाहे नक्श्ल्वाद हो या अन्य आपराधिक घटनाएँ , चाहे पिछला लोकसभा चुनाव हो अथवा हुए कई राज्यों के विधानसभा चुनाव या साम्प्रदायिकता, चाहे फिल्में हों या संगीत, चाहे साहित्य हो या कोई अन्य मुद्दा, तमाम ब्लॉग्स पर इनकी बेहतर प्रस्तुति हुयी है।

कुछ ब्लॉग ऐसे है जिनकी चर्चा कई ब्लॉग विश्लेषकों के माध्यम से विगत वर्ष २००८ में भी हुयी थी और आशा की गई थी की वर्ष २००९ में इनकी चमक बरक़रार रहेगी । ब्लॉग चर्चा के अनुसार सिनेमा पर आधारित तीन ब्लॉग वर्ष २००८ में शीर्ष पर थे । एक तरफ़ तो प्रमोद सिंह के ब्लॉग सिलेमा सिलेमा पर सारगर्भित टिप्पणियाँ पढ़ने को मिलीं थी वहीं दिनेश श्रीनेत ने इंडियन बाइस्कोप के जरिये निहायत ही निजी कोनों से और भावपूर्ण अंदाज से सिनेमा को देखने की एक बेहतर कोशिश की थी । तीसरे ब्लॉग के रूप में महेन के चित्रपट ब्लॉग पर सिनेमा को लेकर अच्छी सामग्री पढ़ने को मिली थी । हालाँकि समयाभाव के कारण परिकल्पना पर केवल एक ब्लॉग इंडियन बाईस्कोप की ही चर्चा हो पाई थी । यह अत्यन्त सुखद है की उपरोक्त तीनों ब्लोग्स वर्ष २००९ में भी अपनी चमक और अपना प्रभाव बनाये रखने में सफल रहे हैं ।


इसीप्रकार जहाँ तक राजनीति को लेकर ब्लॉग का सवाल है तो अफलातून के ब्लॉग समाजवादी जनपरिषद, नसीरुद्दीन के ढाई आखर, अनिल रघुराज के एक हिन्दुस्तानी की डायरी, अनिल यादव के हारमोनियम, प्रमोदसिंह के अजदक और हाशिया का जिक्र किया जाना चाहिए। ये सारे ब्लोग्स वर्ष २००८ में भी शीर्ष पर थे और वर्ष २००९ में भी शीर्ष पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराने में सफल हुए हैं ।

वर्ष २००८ में संगीत को लेकर टूटी हुई, बिखरी हुई आवाज, सुरपेटी, श्रोता बिरादरी, कबाड़खाना, ठुमरी, पारूल चाँद पुखराज का चर्चित हुए थे , जिनपर सुगम संगीत से लेकर क्लासिकल संगीत को सुना जा सकता था , पिछले वर्ष रंजना भाटिया का अमृता प्रीतम को समर्पित ब्लॉग ने भी ध्यान खींचा था और जहाँ तक खेल का सवाल है, एनपी सिंह का ब्लॉग खेल जिंदगी है पिछले वर्ष शीर्ष पर था। पिछले वर्ष वास्तु, ज्योतिष, फोटोग्राफी जैसे विषयों पर भी कई ब्लॉग शुरू हुए थे और आशा की गई थी कि ब्लॉग की दुनिया में २००९ ज्यादा तेवर और तैयारी के साथ सामने आएगा। यह कम संतोष की बात नही कि इस वर्ष भी उपरोक्त सभी ब्लोग्स सक्रीय ही नही रहे अपितु ब्लॉग जगत में एक प्रखर स्तंभ की मानिंद दृढ़ दिखे । निश्चित रुप से आनेवाले समय में भी इनके दृढ़ता और चमक बरकरार रहेगी यह मेरा विश्वास है ।


यदि साहित्यिक लघु पत्रिका की चर्चा की जाए तो पिछले वर्ष की तुलना में इस वर्ष ज्यादा धारदार दिखी मोहल्ला । अविनाश का मोहल्ला कॉलम में चुने ब्लॉगों पर मासिक टिप्पणी करते हैं और उनकी संतुलित समीक्षा भी करते हैं। इसीप्रकार वर्ष २००८ की तरह वर्ष २००९ भी अनुराग वत्स के ब्लॉग ने एक सुविचारित पत्रिका के रूप में अपने ब्लॉग को आगे बढ़ाया हैं।

आपको यह जानकर सुखद आश्चर्य होगा की भारतीय सिनेमा में जीवित किवदंती बन चुके बिग बी श्री अमिताभ बच्चन जल्द ही अपना हिंदी में ब्लॉग शुरू करेंगे। यह घोषणा उन्होंने १४ सितम्बर को हिन्दी दिवस के अवसर पर की है । उन्होंने कहा है कि-" यह बात सही नहीं है कि मैं सिर्फ अंग्रेजी भाषा के प्रशंसकों के लिए लिखता हूं।"अमिताभ ने अपने ब्लॉग पर खुलासा किया है कि "वह जल्दी ही हिंदी और अन्य भाषाओं में ब्लॉग लिखने की चेष्टा करेंगे, ताकि हिंदी भाषी प्रशंसकों को सुविधा हो।" जबकि मनोज बाजपेयी पहले से ही हिन्दी में ब्लॉग लेखन से जुड़े हैं ।
पिछले वर्ष ग्रामीण संस्कृति को आयामित कराने का महत्वपूर्ण कार्य किया था खेत खलियान ने , वहीं विज्ञान की बातों को बहस का मुद्दा बनाने सफल हुए थे पंकज अवधिया अपने ब्लॉग मेरी प्रतिक्रया में । हिन्दी में विज्ञान पर लोकप्रिय और अरविन्द मिश्रा के निजी लेखों के संग्राहालय के रूप में पिछले वर्ष चर्चा हुयी थी सांई ब्लॉग की ,गजलों मुक्तकों और कविताओं का नायाब गुलदश्ता महक की ,ग़ज़लों एक और गुलदश्ता है अर्श की, युगविमर्श की , महाकाव्य की, कोलकाता के मीत की , "डॉ. चन्द्रकुमार जैन " की, दिल्ली के मीत की, "दिशाएँ "की, श्री पंकज सुबीर जी के सुबीर संवाद सेवा की, वरिष्ठ चिट्ठाकार और सृजन शिल्पी श्री रवि रतलामी जी का ब्लॉग “ रचनाकार “ की, वृहद् व्यक्तित्व के मालिक और सुप्रसिद्ध चिट्ठाकार श्री समीर भाई के ब्लॉग “ उड़न तश्तरी “ की, " महावीर" " नीरज " "विचारों की जमीं" "सफर " " इक शायर अंजाना सा…" "भावनायें... " आदि की।


इसी क्रम में हास्य के एक अति महत्वपूर्ण ब्लॉग "ठहाका " हिंदी जोक्स तीखी नज़र current CARTOONS बामुलाहिजा चिट्ठे सम्बंधित चक्रधर का चकल्लस और बोर्ड के खटरागी यानी अविनाश वाचस्पति तथा दीपक भारतदीप की शब्दज्ञान- पत्रिका आदि की । वर्ष २००८ के चर्चित ब्लॉग की सूची में और भी कई महत्वपूर्ण ब्लॉग जैसे जबलपुर के महेंद्र मिश्रा के निरंतर अशोक पांडे का -“ कबाड़खाना “ , डा राम द्विवेदी की अनुभूति कलश , योगेन्द्र मौदगिल और अविनाश वाचस्पति के सयुक्त संयोजन में प्रकाशित चिट्ठा हास्य कवि दरबार , उत्तर प्रदेश के फतेहपुर के प्रवीण त्रिवेदी का “ प्राइमरी का मास्टर “ , लोकेश जी का “अदालत “ , बोकारो झारखंड की संगीता पुरी का गत्यात्मक ज्योतिष , उत्तर प्रदेश के छोटे से शहर सकल डीहा के हिमांशु का सच्चा शरणम , विवेक सिंह का स्वप्न लोक , शास्त्री जे सी फ़िलिप का हिन्दी भाषा का सङ्गणकों पर उचित व सुगम प्रयोग से सम्बन्धित सारथी , ज्ञानदत्त पाण्डेय की मानसिक हलचल और दिनेशराय द्विवेदी का तीसरा खंबा आदि की चर्चा वर्ष -२००८ में परिकल्पना पर प्रमुखता के साथ हुयी थी और हिंदी ब्लॉगजगत के लिए यह अत्यंत ही सुखद पहलू है , की ये सारे ब्लॉग वर्ष-२००९ में भी अपनी चमक बनाये रखने में सफल रहे हैं . ...!

वर्ष -२००८ में २६/११ की घटना को लेकर हिन्दी ब्लॉग जगत काफ़ी गंभीर रहा । आतंकवादी घटना की घोर भर्त्सना हुयी और यह उस वर्ष का सबसे बड़ा मुद्दा बना , मगर इस वर्ष यानि २००९ में जिस घटना को लेकर सबसे ज्यादा बबाल हुआ वह है समलैंगिकता के पक्ष में दिल्ली हाई कोर्ट का फैसला ।पहली बार हिन्दुस्तान ने समलैंगिकता के मुद्दे पर सार्वजनिक रूप से बहस किया है। हिन्दी ब्लॉग जगत ने भी इसके पक्ष विपक्ष में बयान दिए और देश में समलैंगिकता पर बहस एकबारगी सतह पर आ गई ।

किसी ने कहा कि लैंगिक आधार पर किसी भी तरह के भेदभाव का स्थान आधुनिक नागरिक समाज में नही है , पर लैंगिक मर्यादाओं के भी अपने तकाजे रहे हैं और इसका निर्वाह भी हर देश कल में होता रहा है तो किसी ने कहा कि भारतीय दंड विधान की धारा -३७७ जैसे दकियानूसी कानून की आड़ में भारत के सम लैंगिक और ट्रांसजेंदर लोगों को अकारण अपराधी माना जाता रहा है, लेकिन दिल्ली उच्च न्यायालय ने किसी भी प्रकार के यौन और जेंडर रुझानों से ऊपर उठकर सभी नागरिकों के अधिकार को मान्यता देने का ऐतिहासिक कार्य किया है तो किसी ने कहा की यह विड्न्बना ही कहा जायेगा की अंग्रेजों द्वारा १८६० में बनाया गया यह कानून ख़ुद इंगलैंड के कानूनी किताबों में से सालो पहले मिट चुका ,लेकिन भारत में यह उनके जाने के बाद भी दसकों तक कायम है....आदि ।


रेखा की दुनिया ने अपने ०९ जुलाई २००९ के अंक में समलैगिकता की जोरदार वकालत करते हुए लिखा है जिस देश में कामसूत्र की रचना हुयी आज उसी धरती पर वात्स्यायन के बन्शज काम संवंधी अभिरुचि को बेकाम ठहराने पर लगे हैं ......!" घ्रृणा के इस दोहरे मापदंड पर उनका गुस्सा देखने लायक है इस आलेख में ।


महाशक्ति के दिनांक २९.०७.२००९ के आलेखका शीर्षक है समलैंगिंक बनो पर अजीब रिश्‍ते को विवाह का नाम न दो, विवाह को गाली मत दो । परमेन्द्र प्रताप सिंह कहते हैं की वह दृश्‍य बड़ा भयावह होगा जब लोग केवल आप्रकृतिक सेक्स के लिये समलैगिंक विवाह करेगे, अर्थात संतान की इच्‍छा विवाह का आधार नही होगा। अपने ब्लॉग पर अंशुमाल रस्तोगी कहते हैं कि अब धर्मगुरु तय करेंगे कि हमें क्या करना चाहिए और क्या नहीं।


नया जमाना के १६ अगस्त २००९ के पोस्ट वात्‍स्‍यायन,मि‍शेल फूको और कामुकता (2) के अनुसार समलैंगिकों की एक पत्रिका को दिए साक्षात्कार में फूको ने कहा 'कामुकता' को 'दो पुरूषों के प्रेम' के साथ जोड़ना समस्यामूलक और आपत्तिजनक है। ''अन्य को जब हम यह एक छूट देते हैं कि समलैंगिता को शुध्दत: तात्कालिक आनंद के रूप में पेश किया जाए, दो युवक गली में मिलते हैं, एक- दूसरे को आंखों से रिझाते हैं, एक-दूसरे के हाथ एक-दूसरे के गुप्तांग में कुछ मिनट के लिए दिए रहते हैं। इससे समलैंगिकता की साफ सुथरी छवि नष्ट हो जाती है।


दस्तक ने अपने ११ July २००९ के पोस्ट में टी.वी चैनलों का उमडता गे प्रेम... पर चिंता व्यक्त की है । कहा है कि २ जुलाई का दिन दिल्ली हाई कोर्ट का वह आदेश पूरा मीडिया जगत के शब्दों में कहें तो खेलनें वाला मु्द्दा दे गया । जी हॉ हम बात कर रहें हैं हाई कोर्ट के उस आदेश का जिसमें देश में अपनें मर्जी से समलैगिंक संबंध को मंजूरी दे दी गयी थी । ठीक हॉ भाई समलैंगिको मंजूरी मिली। उनको राहत मिला । पर उनका क्या जिनका चैन हराम हो गया । आखिर जो गे नहीं उनकी तो शामत आ गई । इधर चैनल वालों को ऐसा मसाला मिल गया जिसकों कोई भी चैनल नें छोड़ना उमदा नहीं समझा । उधर इस चक्कर और दूसरें मुद्दे जरूर छूट गए ।


दिलीप के दलान से July १० , २००९ को एक घटना का जिक्र आया की घर की घंटी बजी साथ साथ बहुत लोगों की । अंदर से गुड्डी दौड़ती हुई झट से दरवाजा खोली । बाहर खड़े भैया ने गुड्डी से कहा गुड्डी ये तुम्हारी भाभी हैं । गुड्डी के चेहरें पर खुशी के जगह बारह बज गए और वह फिर दोबारा जितनी तेजी से दौड़ती हुई आयी थी उतनी तेजी से वापस दौड़ती हुई मॉ के पास गयी । और मॉ से बोली मॉ भैया ... आपके लिए भैया लेके आए हैं । परिकल्पना पर भी मंगलवार, २८ जुलाई २००९ को ऐसी ही एक घटना का जिक्र था जिसका शीर्षक था -शर्मा जी के घर आने वाली है मूंछों वाली वहू ...बहूभोज में आप भी आमंत्रित हैं .


बात कुछ ऐसी है के ७ जुलाई २००९ के एक पोस्ट यहां आसानी से पूरी होती है समलैगिक साथी की तलाश में यह रहस्योद्घाटन किया गया है की क्लबों, बार, रेस्टोरेंट व डिस्कोथेक में होती है साप्ताहिक पार्टियां।पिछले 10 वर्ष से लगातार बढ़ रही है समलैंगिक प्रवृति । पिछले छह वर्ष में बढ़ा है समलैंगिकता का चलन । समलैगिकों में 16 से 30 वर्ष आयु वर्ग के लोगों की संख्या अधिकदक्षिणी दिल्ली व पश्चिमी दिल्ली में होती हैं । यह प्रवृतिअप्राकृतिक संबधों को गलत नहीं मानते समलैंगिक।उनके लिए प्यार का अहसास भी अलग है और यौन संतुष्टि की परिभाषा भी अलग है। समलिंगी साथी के आकर्षण का सामीप्य ही उन्हें चरम सुख प्रदान करता है तभी तो चढ़ती उम्र में वह एक ऐसी हमराही की तलाश करते हैं जो तलाश उन्हें आम आदमी से कुछ अलग करती है।


इस सन्दर्भ में भड़ास के तेवर कुछ ज्यादा तीखे दिखे जिसमें उसने स्पष्ट कहा की समलैंगिकता स्वीकार्य नही बल्कि उपचार्य है । मोहल्‍ला का समलेंगिकता पर क़ानून की मोहर से प्रकाशित शीर्षक में कहा गया है की नैतिकता ये कहती है कि यौन संबंधों का उद्देश्य संतानोत्पत्ति है, लेकिन समलेंगिक या ओरल इंटरकोर्स में यह असंभव है। वहीं ब्लॉग खेती-बाड़ी के दिनांक ०५ जुलाई २००९ के एक पोस्ट में समलैंगिकता के सवाल पर बीबीसी हिन्‍दी ब्‍लॉग पर राजेश प्रियदर्शी की एक बहुत ही यथार्थ टिप्‍पणी आयी है, जो थोड़ा असहज करनेवाला है....लेकिन समलैंगिक मान्‍यताओं वाले समाज में इन दृश्‍यों से आप बच कैसे सकते हैं?

हमारे देश में इस वक्त दो अति-महत्वपूर्ण किंतु ज्वलंत मुद्दे हैं - पहला नक्सलवाद का विकृत चेहरा और दूसरा मंहगाई का खुला तांडव । आज के इस क्रम की शुरुआत भी हम नक्सलवाद और मंहगाई से ही करने जा रहे हैं ।फ़िर हम बात करेंगे मजदूरों के हक के लिए कलम उठाने वाले ब्लॉग , प्राचीन सभ्यताओं के बहाने कई प्रकार के विमर्श को जन्म देने वाले ब्लॉग और न्यायलय से जुड़े मुद्दों को प्रस्तुत करने वाले ब्लॉग की ....!

आम जन के दिनांक २३.०६.२००९ के अपने पोस्ट नक्सली कौन? में संदीप द्विवेदी कहते हैं,कि " गरीबी के अपनी ज़िन्दगी काट रहे लोग क्यों सरकार के ख़िलाफ़ बन्दूक थाम लेते है....इसे समझने के लिए आपको उनकी तरह बन कर सोचना होगा.....सरकार गरीबी और बेरोज़गारी खतम करने कि पुरी कोशिश कर रही है लेकिन ये दिनों दिन और भयानक होती जा रही है.....इसका कारण हम आप सभी जानते है....रोजाना छत्तीसगढ़ और झारखण्ड के अर्द्धसैनिक बलों के जवान नक्सली के हांथों मरे जाते है......और जो बच जाते है वो मलेरिया या लू कि चपेटे में आ कर अपने प्राण त्याग देते हैं.....क्या अब सरकार नक्सालियों का खत्म लिट्टे की तरह करेगी.....लेकिन इतना याद रखना होगा कि लिट्टे ने अपने साथ १ लाख लोगो कि बलि ले ली.....क्या सरकार इसके लिए तैयार है.....नक्सलियों के साथ आर पार कि लड़ाई से बेहतर है कि हम अपनी घरेलू समस्या को घर में बातचीत से ही सुलझा ले....वरना एक दिन ये समस्या बहुत गंभीर हो जायेगी.....!"


वहीं मंहगाई के सन्दर्भ में हवा पानी पर प्रकाशित एक कविता पर निगाहें जाकर टिक जाती है जिसमे कहा गया है कि "हमनें इस जग में बहुतों सेजीतने का दावा कियापर बहुत कोशिशों के बाद भीहम मँहगाई से जीत नहीं पाये। " वहीं कानपुर के सर्वेश दुबे अपने ब्लॉग मन की बातें पर फरमाते हैं -" कुछ समय बाद किलो में,वस्तुएं खरीदना स्वप्न हो जायेगा , १० ग्राम घी खरीदने के लिए भी बैंक सस्ते दर पर कर्ज उपलब्ध कराएगा ....!" नमस्कार में प्रो.सी.बी.श्रीवास्तव की कविता छपी है जिसमें कहा गया है कि-"मुश्किल में हर एक साँस है , हर चेहरा चिंतित उदास हैवे ही क्या निर्धन निर्बल जो , वो भी धन जिनका कि दास हैफैले दावानल से जैसे , झुलस रही सारी अमराई !घटती जाती सुख सुविधायें , बढ़ती जाती है मँहगाई !!"


आमजन से मेरा अभिप्राय उन मजदूरों से है जो रोज कुआँ खोदता है और रोज पानी पीता है । मजदूरों कि चिंता और कोई करे या न करे मगर हमारे बिच एक ब्लॉग है जो मजदूरों के हक़ और हकूक के लिए पूरी दृढ़ता के साथ विगुल बजा रहा है । जी हाँ वह ब्लॉग है बिगुल । यह ब्लॉग अपने आप को नई समाजवादी क्रान्ति का उद्घोषक मानता है और एक अखबार कि मानिंद मजदूर आंदोलनों की खबरे छापता है । यह ब्लॉग तमाम मजदूर आंदोलनों की खबरों से भरा-पडा है । चाहे वह गोरखपुर में चल रहे मजदूर आन्दोलन की ख़बर हो अथवा गुरगांव या फ़िर लुधियाना का मामला पूरी दृढ़ता के साथ परोसा गया है ।


आईये अब चलते हैं एक ऐसे ब्लॉग पर जहाँ होती है प्राचीन सभ्यताओं की वकालत । जहाँ बताया गया है कि प्रारंभ में अदि मानव ने संसार को कैसे देखा होगा ? गीजा का विशाल पिरामिड २० साल में एक लाख लोगों के श्रम से क्यों बना ? फिलिपीन के नए लोकसभा भवन के सामने मनु की मूर्ति क्यों स्थापित कि गई है ? ऐसे तमाम रहस्यों कि जानकारी आपको मिलेगी इस ब्लॉग मेरी कलम से पर ।


इस ब्लॉग के दिनांक ०५.०४.२००९ के प्रकाशित आलेख -यूरोप में गणतंत्र या फिर प्रजातंत्र ने मुझे बरबस आकर्षित किया और मैं इस ब्लॉग को पढ़ने के लिए विवश हो गया । इस आलेख में बताया गया है कि -"यूरोप के सद्य: युग में गणतंत्र (उसे वे प्रजातंत्र कहते हैं) के कुछ प्रयोग हुए हैं। इंगलैंड में इसका जन्म हिंसा में और फ्रांस में भयंकर रक्त-क्रांति में हुआ। कहा जाता है, 'फ्रांस की राज्य-क्रांति ने अपने नेताओं को खा डाला।' और उसीसे नेपोलियन का जन्म हुआ, जिसने अपने को 'सम्राट' घोषित किया। और इसीमें हिटलर, मुसोलिनी एवं स्टालिन सरीखे तानाशाहों का जन्म हुआ। कैसे उत्पन्न हुआ यह प्रजातंत्र का विरोधाभास ?"
इसमें यह भी उल्लेख है कि -"व्यक्ति से लेकर समष्टि तक एक समाज-जीवन खड़ा करने में भारत के गणतंत्र के प्रयोग संसार को दिशा दे सकते हैं। कुटुंब की नींव पर खड़ा मानवता का जीवन शायद 'वसुधैव कुटुंबकम्' को चरितार्थ कर सके।"

प्राचीन सभ्यताओं कि वकालत के बाद आईये चलते है सार्वजनिक जीवन से जुड़े व्यवहारों - लोकाचारों में निभाती-टूटती मानवीय मर्यादाओं पर वेबाक टिपण्णी करने वाले और कानूनी जानकारियाँ देने वाले दो महत्वपूर्ण ब्लॉग पर । एक है तीसरा खंबा और दूसरा अदालत ।
ऐसा ही एक आलेख तीसरा खंबा ब्लॉग पर मेरी नजरों से दिनांक ३१.०५.२००९ को गुजरा । आलेख का शीर्षक था आरक्षण : देश गृहयुद्ध की आग में जलने न लगे । इसमें एक सच्चे भारतीय कि आत्मिक पीड़ा प्रतिविंबित हो रही है । इस तरह के अनेको चिंतन से सजा हुआ है यह ब्लॉग । सच तो यह है कि अपने उदभव से आज तक यह ब्लॉग अनेक सारगर्भित पोस्ट देये हैं , किंतु वर्ष-२००९ में यह कुछ ज्यादा मुखर दिखा ।
आईये अब वहां चलते हैं जहाँ बार-बार कोई न जाना चाहे , जी हाँ हम बात कर रहे हैं अदालत की । मगर यह अदालत उस अदालत से कुछ अलग है । यहाँ बात न्याय की जरूर होती है , फैसले की भी होती है और फैसले से पहले हुयी सुनबाई की भी होती है मगर उन्ही निर्णयों को सामने लाया जाता है जो उस अदालत में दिया गया होता है । यानि यह अदालत ब्लॉग के रूप में एक जीबंत इन्सायिक्लोपिदिया है । मुकद्दमे में रूचि दिखाने बालों के लिए यह ब्लॉग अत्यन्त ही कारगर है , क्योंकि यह सम सामयिक निर्णयों से हमें लगातार रूबरू कराता है । सबसे बड़ी बात तो यह है कि भिलाई छतीसगढ़ के लोकेश के इस ब्लॉग में दिनेशराय द्विवेदी जी की भी सहभागिता है , यानि सोने पे सुहागा !

आईये अब चलते हैं सामाजिक , सांस्कृतिक और एतिहासिक महत्व से संवंधित विविध विषयों पर केंद्रित कुछ महत्वपूर्ण पोस्ट की ओर । " ब्लॉगिंग अभिव्यक्ति का माध्यम है। पर सार्वजनिक रूप से अपने को अभिव्यक्त करना आप पर जिम्मेदारी भी डालता है। लिहाजा, अगर आप वह लिखते हैं जो अप्रिय हो, तो धीरे धीरे अपने पाठक खो बैठते हैं।" यह कहना है श्री ज्ञान दत्त पांडे जी का मानसिक हलचल के २६ जनवरी के पोस्ट अपनी तीव्र भावनायें कैसे व्यक्त करें? पर व्यक्त की गई टिपण्णी में । वहीं उड़न तश्तरी .... के १३ फरवरी (प्रेम दिवस ) के पोस्ट मस्त रहें सब मस्ती में... में श्री समीर भाई ने बहुत ही मार्मिक बोध कथा का जिक्र किया है कि" एक साधु गंगा स्नान को गया तो उसने देखा कि एक बिच्छू जल में बहा जा रहा है। साधु ने उसे बचाना चाहा। साधु उसे पानी से निकालता तो बिच्छू उसे डंक मार देता और छूटकर पानी में गिर जाता। साधु ने कई बार प्रयास किया मगर बिच्छू बार-बार डंक मार कर छूटता जाता था। साधु ने सोचा कि जब यह बिच्छू अपने तारणहार के प्रति भी अपनी डंक मारने की पाशविक प्रवृत्ति को नहीं छोड़ पा रहा है तो मैं इस प्राणी के प्रति अपनी दया और करुणा की मानवीय प्रवृत्ति को कैसे छोड़ दूँ। बहुत से दंश खाकर भी अंततः साधु ने उस बिच्छू को मरने से बचा लिया..........!" जबकि २९ मार्च के घुघूतीबासूती पर प्रकाशित पोस्ट गाय के नाम पर ही सही में पॉलीथीन की थैलियाँ हमारे पर्यावरण के लिए कितना घातक हैं यह महसूस कराने कि विनम्र कोशिश की गई है जो प्रशंसनीय है । सारथी के २२ अप्रैल के एक पोस्ट अस्मत लुटाने के सौ फार्मूले ! में श्री शास्त्री जे सी फिलिप जी के सारगर्भित विचारों को पढ़ने के बाद मुझे यह महसूस हुआ कि सचमुच पश्चिमी सभ्यता के प्रति हमारा रुझान हमारी संस्कृति को कलंकित कर रहा है । शास्त्री जी कहते हैं कि -"पिछले कुछ सालों से भारत में विदेशी पत्रिकाओं एवं सीडी की बाढ आई हुई है. इसका असर सीधे सीधे हमारी युवा पीढी पर हो रहा है. इसके सबसे अच्छे दो नमूने हैं “प्रोग्रेस” के नाम पर भारतीय जवानों को शराबी बनाने की साजिश (पब संस्कृति) और बाबा-बाल्टियान दिवस (वेलेन्टाईन) जैसे मानसिक-व्यभिचार पर आधारित त्योहार ।" क्वचिदन्यतोअपि..........! के २४मईके पोस्ट आकाश गंगा को निहारते हुए .... में श्री अरविन्द मिश्र विजलिविहिन गाँव का बहुत ही सुन्दर तस्वीर प्रस्तुत करते दिखाई देते हैं । वहीं प्रेम ही सत्य है के ३० मई के पोस्ट समझदार को इशारा काफी पर मीनाक्षी जी मानवीय संवेदनाओं को बड़े ही सहज ढंग से अभिव्यक्त करती दिखायी देती हैं । जबकि रंजना भाटिया जी के ब्लॉग कुछ मेरी कलम से के २५ जून के पोस्ट कविता सुनाने के लिए पैसे :) पर सन १९६० का एक सच्चा वाकया सुनाती हुयी कवियित्री रंजू कहती है-"यह किस्सा ।सन १९६० के आस पास की बात है दिल्ली के जामा मस्जिद के पास उर्दू बाजार का .यहाँ एक दुकान थी मौलवी सामी उल्ला की ॥जहाँ हर इतवार को एक कवि गोष्ठी आयोजित की जाती ॥कुछ कवि लोग वहां पहुँच कर अपनी कविताएं सुनाया करते सुना करते और कुछ चर्चा भी कर लेते सभी अधिकतर शायर होते कविता लिखने ,सुनाने के शौकीन ,सुनने वाला भी कौन होता वही स्वयं कवि एक दूजे की सुनते , वाह वाह करते और एक दूजे को दाद देते रहते..........!"२५ अप्रैल २००९ को प्रकाशित आलेख पर अचानक जाकर निगाहें ठिठक जाती है , जिसका शीर्षक है देश का बीमा कैसे होगा ? इस आलेख में एक सच्चे भारतीय की अंत: पीडा से अवगत हुआ जा सकता है । दालान में प्रकाशित इस आलेख की शुरुआत इन शब्दों से हुयी है -"देश का बीमा कैसे होगा ? किसके हाथ देश सुरक्षित रहेगा ? इतिहास कहता है - किस किस ने लूटा ! जिस जिस ने नहीं लूटा - वोह इतिहास के पन्नों से गायब हो गया ! गाँधी जी , राजेन बाबु , तिलक इत्यादी को अब कौन पढ़ना और अपनाना चाहता है ?" इसी क्रम में दूसरा आलेख जो पढ़ने के लिए मजबूर करता है वह है कभी गिनती से जामुन खरीदा है ..... जी हाँ , ममता टी वी पर ३० मार्च को प्राकशित इस आलेख में ममता जी कहती है कि "आपको गिनती से जामुन खरीदने का अनुभव हुआ है कि नही हम नही जानते है पर हमें जरुर अनुभव हुआ है । गिनती से जामुन खरीदने का अनुभव हमें हुआ है और वो भी गोवा में ।"ममता टी वी एक गृहस्वामिनी की कलम से निकले सुझाव, वर्णन, चित्र एवं अन्य आलेख से संवंधित ऐसा चिट्ठा है जिसके कुछ पोस्ट पढ़ते हुए आप अपने दर्द को महसूस कर सकते हैं । इसी क्रम में तीसरा आलेख जो पढ़ने के लिए मजबूर करता है वह है मार्केटिंग का हिंदी फंडा । यह आलेख आशियाना का १५ मई २००९ का पोस्ट है , जिसमे बताया गया है कि "एक लड़के को सेल्समेन के इंटरव्यू में इसलिए बाहर कर दिया गया क्योंकि उसे अंग्रेजी नहीं आती थी।" हिन्दुस्तान में हिन्दी का ऐसा दुर्भाग्य? सचमुच निंदनीय है । यह ग़ाज़ियाबाद निवासी रवीन्द्र रंजन का निजी चिट्ठा है और अपने पञ्च लाईन से आकर्षित करता है, जिसमें कहा गया है कि कुछ कहने स‌े बेहतर है कुछ किया जाए, जिंदा रहने स‌े बेहतर है जिया जाए.... ! इसी क्रम में आगे जिस आलेख पर नज़र जाती है वह है - आज भी हर चौथा भारतीय भूखा सोता है । धनात्मक चिन्तन पर २१ अगस्त को प्रकाशित पोस्ट के माध्यम से ब्लोगर ने कहा है कि जब भारत विश्व शक्ति बनकर उभरने का दावा कर रहा है,ऐसे समय देश में हर चौथा व्यक्ति भूखा है। भारत में भूख और अनाज की उपलब्धता पर भारत के एक ग़ैर-सरकारी संगठन की ताज़ा रिपोर्ट को प्रस्तुत किया गया है इस ब्लॉग पोस्ट में । फुरसतिया के २३ सितंबर के एक पोस्ट मंहगाई के दौर में ,मन कैसे हो नमकीन पढ़ते हुए जब हम अनायास ही श्री अनूप शुक्ल जी के दोहे से रू-ब-रू होते हैं तो होठों से ये शब्द फ़ुट पड़ते है - क्या बात है ...! एक बानगी देखिये- "मंहगाई के दौर में ,मन कैसे हो नमकीन, आलू बीस के सेर हैं, नीबू पांच के तीन।
चावल अरहर में ठनी,लड़ती जैसे हों सौत, इनके तो बढ़ते दाम हैं, हुई गरीब की मौत।"

अब हम चर्चा करेंगे वर्ष -२००९ के उन महत्वपूर्ण आलेखों , व्यंग्यों , लघुकथाओं , कविताओं और ग़ज़लों पर ,जो विगत लोकसभा चुनाव पर केंद्रित रहते हुए गंभीर विमर्श को जन्म देने की गुंजायश छोड़ गए ....!आईये शुरुआत करते हैं व्यंग्य से , क्योंकि व्यंग्य ही वह माध्यम है जिससे सामने वाला आहत नहीं होता और कहने वाला अपना काम कर जाता है । ऐसा ही एक ब्लॉग पोस्ट है जिसपर सबसे पहले मेरी नज़र जाकर ठहरती है ....१५ अप्रैल को सुदर्शन पर प्रकाशित इस ब्लॉग पोस्ट का शीर्षक है - आम चुनाव का पितृपक्ष ......व्यंग्यकार का कहना है कि -"साधो, इस साल दो पितृ पक्ष पड़ रहे हैं । दूसरा पितृ पक्ष पण्डितों के पत्रा में नहीं है लेकिन वह चुनाव आयोग के कलेण्डर में दर्ज है । इस आम चुनाव में तुम्हारे स्वर्गवासी माता पिता धरती पर आयेंगे, वे मतदान केन्द्रों पर अपना वोट देंग और स्वर्ग लौट जायेंगे ।" इस व्यंग्य में नरेश मिश्र ने चुटकी लेते हुए कहा है कि -" अब मृत कलेक्ट्रेट कर्मी श्रीमती किशोरी त्रिपाठी को अगर मतदाता पहचान पत्र हासिल हो जाता है और उसमें महिला की जगह पुरूष की फोटो चस्पा है तो इस पर भी आला हाकिमों और चुनाव आयोग को अचरज नहीं होना चाहिए । अपनी धरती पर लिंग परिवर्तन हो रहा है तो स्वर्ग में भी क्यों नहीं हो सकता । स्वर्ग का वैज्ञानिक विकास धरती के मुकाबले बेहतर ही होना चाहिए । "
गद्य व्यंग्य के बाद आईये एक ऐसी व्यंग्य कविता पर दृष्टि डालते हैं जिसमें उस अस्त्र का उल्लेख किया गया है जिसे गाहे-बगाहे जनता द्बारा विबसता में इस्तेमाल किया जाता है । जी हाँ शायद आप समझ गए होंगे कि मैं किस अस्त्र कि बात कर रहा हूँ ?जूता ही वह अस्त्र है जिसे जॉर्ज बुश और पी चिदंबरम के ऊपर भी इस्तेमाल किया जा चुका है । मनोरमा के ०९ अप्रैल के पोस्ट जूता-पुराण में श्यामल सुमन का कहना है कि -"जूता की महिमा बढ़ी जूता का गुणगान।चूक निशाने की भले चर्चित हैं श्रीमान।।निकला जूता पाँव से बना वही हथियार।बहरी सत्ता जग सके ऐसा हो व्यवहार।।भला चीखते लोग क्यों क्यों करते हड़ताल।बना शस्त्र जूता जहाँ करता बहुत कमाल।।"
इस चुनावी बयार में कविता की बात हो और ग़ज़ल की बात न हो तो शायद बेमानी होगी वह भी उस ब्लॉग पर जिसके ब्लोगर ख़ुद गज़लकार हो । ०९ अप्रैल को अनायास हीं मेरी नज़र एक ऐसी ग़ज़ल पर पड़ी जिसे देखकर -पढ़कर मेरे होठों से फ़ुट पड़े ये शब्द - क्या बात है...!
चुनावी बयार पर ग़ज़ल के माध्यम से अपनी अभिव्यक्ति को धार देने की यह विनम्र कोशिश कही जा सकती है । पाल ले इक रोग नादां... पर पढिये आप भी गौतम राजरिशी की इस ग़ज़ल को । ग़ज़ल के चंद अशआर देखिये-न मंदिर की ही घंटी से, न मस्जिद की अज़ानों सेकरे जो इश्क, वो समझे जगत का सार चुटकी में.......बहुत मग़रूर कर देता है शोहरत का नशा अक्सरफिसलते देखे हैं हमने कई किरदार चुटकी मेंखयालो-सोच की ज़द में तेरा इक नाम क्या आयामुकम्मिल हो गये मेरे कई अश`आर चुटकी में......!

मैत्री में २४ मई के अपने पोस्ट आम चुनाव से मिले संकेत के मध्यम से अतुल कहते हैं कि "लोकसभा चुनाव के परिणाम में कांग्रेस को 205 सीटें मिलने के बाद पार्टी की चापलूसी परंपरा का निर्वाह करते हुए राहुल गांधी और सोनिया गांधी की जो जयकार हो रही है, वह तो संभावित ही थी, लेकिन इस बार आश्चर्यचकित कर देनेवाली बात यह है कि देश का पूरा मीडिया भी इस झूठी जय-जयकार में शामिल हो गया है। इस मामले में मीडिया ने अपने वाम-दक्षिण होने के सारे भेद को खत्म कर लिया है।"

दरवार के १६ मार्च के पोस्ट जल्लाद नेता बनकर आ गए में धीरू सिंह ने नेताओं के फितरत पर चार पंक्तियाँ कुछ इसप्रकार कही है -" नफरत फैलाने आ गए, आग लगाने आ गए, चुनाव क्या होने को हुए-जल्लाद चहेरे बदल नेता बनकर आ गए । "

प्राइमरी का मास्टर के १३ मार्च के पोस्ट में श्री प्रवीण त्रिवेदी कहते हैं पालीथिन के उपयोग करने पर प्रत्याशी मुसीबत में फंस सकते हैं । जी हाँ अपने आलेख में यह रहस्योद्घाटन करते हुए उन्होंने कहा है की "पर्यावरण संरक्षण एवं संतुलन समाज के सामने सबसे बड़ी चुनौती है। बिगड़ते पर्यावरण के इसी पहलू को ध्यान में रखते हुए निर्वाचन आयोग ने चुनावी समर में पालीथिन को हथियार के तौर पर इस्तेमाल करने पर प्रतिबंध लगा दिया है।इसके तहत पालीथिन, पेंट और प्लास्टिक के प्रयोग को भी वर्जित कर दिया गया है।मालूम हो कि चुनाव प्रचार के दौरान पालीथिन का इस्तेमाल बैनर, पंपलेट तथा स्लोगन लिखने के रूप में किया जाता है। बाद में एकत्र हजारों टन कचरे का निपटारा बहुत बड़ी चुनौती होती है। लेकिन इस बार यह सब नहीं चल पाएगा।"
कस्‍बा के ०९ अप्रैल के पोस्ट लालू इज़ लॉस्ट के माध्यम से श्री रविश कुमार ने बिहार के तीन प्रमुख राजनीतिक स्तंभ लालू-पासवान और नीतिश के बाहाने पूरे चुनावी माहौल का रेखांकन किया है । श्री रविश कुमार कहते है कि -"बिहार में जिससे भी बात करता हूं,यही जवाब मिलता है कि इस बार दिल और दिमाग की लड़ाई है। जो लोग बिहार के लोगों की जातीय पराकाष्ठा में यकीन रखते हैं उनका कहना है कि लालू पासवान कंबाइन टरबाइन की तरह काम करेगा। लेकिन बिहार के अक्तूबर २००५ के नतीजों को देखें तो जातीय समीकरणों से ऊपर उठ कर बड़ी संख्या में वोट इधर से उधर हुए थे। यादवों का भी एक हिस्सा लालू के खिलाफ गया था। मुसलमानों का भी एक हिस्सा लालू के खिलाफ गया था। पासवान को कई जगहों पर इसलिए वोट मिला था क्योंकि वहां के लोग लालू के उम्मीदवार को हराने के लिए पासवान के उम्मीदवार को वोट दे दिया। अब उस वोट को भी लालू और पासवान अपना अपना मान रहे हैं। "
अनसुनी आवाज के २८ मार्च के एक पोस्ट चुनावों में हुई भूखों की चिंता में अन्नू आनंद ने कहा है की- "कांग्रेस ने अपने घोषणा पत्र में सबके लिए अनाज का कानून देने का वादा किया है। घोषणा पत्र में सभी लोगों को खासकर समाज के कमजोर तबके को पर्याप्त भोजन देने देने का वादा किया गया है। पार्टी ने गरीबी रेखा के नीचे रहने वाले हर परिवार को कानूनन हर महीने 25 किलो गेंहू या चावल तीन रुपए में मुहैया कराने का वादा किया है। पार्टी की घोषणा लुभावनी लगने के साथ हैरत भी पैदा करती है कि अचानक कांग्रेस को देश के भूखों की चिंता कैसे हो गई।" वहीं अपने २९ मई के पोस्ट में बर्बरता के विरुद्ध बोलते हुए चिट्ठाकार का कहना है -चुनावों में कांग्रेस की जीत से फासीवाद का खतरा कम नहीं होगा।
चुनाव के बाद के परिदृश्य पर अपनी सार्थक सोच को प्रस्थापित करते हुए रमेश उपाध्याय का कहना है की -"भारतीय जनतंत्र में--एक आदर्श जनतंत्र की दृष्टि से--चाहे जितने दोष हों, चुनावों में जनता के विवेक और राजनीतिक समझदारी का परिचय हर बार मिलता है। पंद्रहवीं लोकसभा के चुनाव में भी उसकी यह समझदारी प्रकट हुई।" यह ब्लॉग पोस्ट ०२ जून को लोकसभा चुनावों में जनता की राजनीतिक समझदारी शीर्षक से प्रकाशित है ।

१९ मई को भारत का लोकतंत्र पर प्रकाशित ब्लॉग पोस्ट पर अचानक नज़र ठहर जाती है जिसमें १५वि लोकसभा चुनावों की पहली और बाद की दलगतस्थिति पर व्यापक चर्चा हुयी है । वहीं ३० अप्रैल को अबयज़ ख़ान के द्वारा अर्ज है - उन चुनावों का मज़ा अब कहां ? जबकि २७ अप्रैल को कुलदीप अंजुम अपने ब्लॉग पोस्ट के मध्यम से अपपनी भावनाएं व्यक्त करते हुए कहते हैं-" सुबह को कहते हैं कुछ शाम को कुछ और होता ,क्या अजब बहरूपिये हैं, हाय ! भारत तेरे नेता !! २५ अप्रैल को हिन्दी युग्म पर सजीव सारथी का कहना है की - "आम चुनावों में आम आदमी विकल्पहीन है ....!"कविता की कुछ पंक्तियाँ देखिये- "चुनाव आयोग में सभी प्रतिभागी उम्मीदवार जमा हैं,आयु सीमा निर्धारित है तभी तो कुछ सठियाये धुरंधरदांत पीस रहे हैं बाहर खड़े, प्रत्यक्ष न सही परोक्ष ही सही,भेजे है अपने नाती रिश्तेदार अन्दर,जो आयुक्त को समझा रहे हैं या धमका रहे हैं,"जानता है मेरा....कौन है" की तर्ज पर...बाप, चाचा, ताया, मामा, जीजा आप खुद जोड़ लें...!"
राजनीति और नेता ऐसी चीज है जिसपर जितना लिखो कम है , इसलिए आज की इस चर्चा को विराम देने के लिए मैंने एक अति महत्वपूर्ण आलेख को चुना है । यह आलेख श्री रवि रतलामी जी के द्बारा दिनांक 14-4-2009 को Global Voices हिन्दी पर प्रस्तुत किया गया है जो मूल लेखिका रिजवान के आलेख का अनुवाद है । आलेख का शीर्षक है- आम चुनावों में लगी जनता की पैनी नज़र । इन पंक्तियों से इस आलेख की शुरुआत हुयी है -"हम जिस युग में रह रहे हैं वहाँ जानकारियों का अतिभार है। ज्यों ज्यों नवीन मीडिया औजार ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंच बना रहे हैं, साधारण लोग भी अपना रुख और अपने इलाके की मौलिक खबरें मीडिया तक पहुंचा रहे हैं। ट्विटर और अन्य सिटिज़न मीडिया औजारों की बदौलत ढेरों जानकारी आजकल तुरत फुरत साझा कर दी जाती है। मुम्बई आतंकी हमलों के दौरान ट्विटर के द्वारा जिस तरह की रियल टाईम यानी ताज़ातरीन जानकारियाँ तुरत-फुरत मिलीं उनका भले ही कोई लेखागार न हो पर यह जानकारियाँ घटनाक्रम के समय सबके काम आईं।"

वर्ष -२००९ के महत्वपूर्ण चिट्ठों की जिनके पोस्ट पढ़ते हुए हमें महसूस हुआ कि यह विचित्र किंतु सत्य है । आईये उत्सुकता बढ़ाने वाले आलेखों की शुरुआत करते हैं हम मसिजीवी पर जुलाई-२००९ में प्रकाशित पोस्ट ३८ लाख हिन्दी पृष्ठ इंटरनेट पर से । इस आलेख में यह बताया गया है कि -चौदह हजार एक सौ बाइस पुस्तकों के अड़तीस लाख छत्तीस हजार पॉंच सौ बत्तीस ..... हिन्दी के पृष्ठ । बेशक ये एक खजाना है जो हम सभी को उपलब्ध है ....बस एक क्लिक की दूरी पर ...!इस संकलन में कई दुर्लभ किताबें तक शामिल हैं ।
दूसरा आलेख जो सबसे ज्यादा चौंकाता है वह है -उन्मुक्त पर २८ जून को प्रकाशित आलेख सृष्टि के कर्ता-धर्ता को भी नहीं मालुम इसकी शुरुवात का रहस्य । इस आलेख में श्रृष्टि के सृजन से संवंधित अनेक प्रमाणिक तथ्यों की विवेचना की गई है । वैसे यह ब्लॉग कई महत्वपूर्ण जानकारियों का पिटारा है । प्रस्तुतीकरण अपने आप में अनोखा , अंदाज़ ज़रा हट के इस ब्लॉग की विशेषता है ।इस चिट्ठे की सबसे ख़ास बात जो समझ में आयी वह है ब्लोगर के विचारों की दृढ़ता और पूरी साफगोई के साथ अपनी बात रखने की कला ।
तीसरा आलेख जो हमें चौंकता है , वह है- रवि रतलामी का हिन्दी ब्लॉग पर ०६ अप्रैल को प्रकाशित पोस्ट चेतावनी: ऐडसेंस विज्ञापन कहीं आपको जेल की हवा न खिला दे । इसमे बताया गया है कि- ०५ अप्रैल को यानि कल इसी ब्लॉग में भारतीय समयानुसार शाम पांच से नौ बजे के बीच एक अश्लील विज्ञापन प्रकाशित होता रहा। विज्ञापन एडसेंस की तरफ से स्वचालित आ रहा था और उसमें रोमन हिन्दी में पुरुष जननांगों के लिए आमतौर पर अश्लील भाषा में इस्तेमाल किए जाने वाले की-वर्ड्स (जिसे संभवत गूगल सर्च में ज्यादा खोजा जाता है) का प्रयोग किया गया था ।
चौथा आलेख जो हमें चौंकता है वह है- अगड़म-बगड़म शैली के विचारक अलोक पुराणिक अपने ब्लॉग के दिनांक २६.०६.२००९ के एक पोस्ट के माध्यम से इस चौंकाने वाले शब्द का प्रयोग करते हैं कि -आतंकवादी आलू, कातिल कटहल…. । है न चौंकाने वाले शब्द ? उस देश में जहाँ पग-पग पर आतंकियों का खतरा महसूस किया जाता हो हम दैनिक उपयोग से संवंधित बस्तुओं को आतंकवादी कहें तो अतिश्योक्ति होगी हीं ।
लेकिन लेखक के कहने का अभिप्राय यह है कि -महंगाई जब बढ़ती है, तो टीवी पर न्यूज वगैरह में थोड़ी वैराइटी आ जाती है। वैसे तो टीवी चैनल थ्रिल मचाने के लिए कातिल कब्रिस्तान, चौकन्नी चुड़ैल टाइप सीरयल दिखाते हैं। पर तेज होती महंगाई के दिनों में हर शुक्रवार को महंगाई के आंकड़े दिखाना भर काफी होता है।
आतंकवादी आलू, कातिल कटहल, खौफनाक खरबूज, तूफानी तोरई जैसे प्रोग्राम अब रोज दिखते हैं। मतलब टीवी चैनलों को ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ रही है, वो सिर्फ आलू, तोरई के भाव भर दिखा रहे हैं। हम भी पुराने टाइप के हारर प्रोग्रामों से बच रहे हैं। अन्य शब्दों में कहें, तो कातिल कब्रिस्तान टाइप प्रोग्राम तो काल्पनिक हुआ करते थे, आतंकवादी आलू और कातिल कटहल के भाव हारर का रीयलटी शो हैं।
इसीप्रकार वर्ष-२००९ में मेरी दृष्टि कई अजीबो-गरीब पोस्ट पर गई । मसलन -एक हिंदुस्तानी की डायरी में १० फरबरी को प्रकाशित पोस्ट -हिंदी में साहित्यकार बनते नहीं, बनाए जाते हैं ..........प्रत्यक्षा पर २६ मार्च को प्रकाशित पोस्ट -तैमूर तुम्हारा घोड़ा किधर है ? .........विनय पत्रिका में २७ मार्च को प्रकाशित बहुत कठिन है अकेले रहना ..... निर्मल आनंद पर ०५ फरवरी को प्रकाशित आदमी के पास आँत नहीं है क्या? .........छुट-पुट पर ०२ जुलाई को प्रकाशित पोस्ट -इंटरनेट (अन्तरजाल) का प्रयोग – मौलिक अधिकार है" .........सामयिकी पर ०९ जनवरी को प्रकाशित आलेख -ज़माना स्ट्राइसैंड प्रभाव का..........आदि ।
ये सभी पोस्ट शीर्षक की दृष्टि से ही केवल अचंभित नही करते वल्कि विचारों की गहराई में डूबने को विवश भी करते है । कई आलेख तो ऐसे हैं जो गंभीर विमर्श को जन्म देने की गुंजायश रखते है ।
इस बात क़ा अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है, कि वर्ष -२००७ में हिन्दी ब्लॉग की संख्या लगभग पौने चार हजार के आस- पास थी जबकि महज दो वर्षों के भीतर चिट्ठाजगत के आंकड़ों के अनुसार सक्रीय हिन्दी चिट्ठों की संख्या ग्यारह हजार के पार हो चुकी है .........वर्ष- २००९ में कानपुर से टोरंटो तक ......इलाहबाद से न्यू जर्सी तक ....... मुम्बई से लन्दन तक...... और भोपाल से दुबई तक होता रहा हिन्दी चिट्ठाकारी का धमाल ......छाया रहा कहीं हिन्दी की अस्मिता का सवाल तो कहीं आती रही हिन्दी के नाम पर भूचाल .....इसमें शामिल रहे कहीं कवि , कही कवियित्री , कहीं गीतकार , कहीं कथाकार , कहीं पत्रकार तो कहीं शायर और शायरा .....और उनके माध्यम से होता रहा हिन्दी का व्यापक और विस्तृत दायरा .....

कहीं चिटठा चर्चा करते दिखे अनूप शुक्ल तो कहीं उड़न तस्तरी प़र सवार होकर ब्लॉग भ्रमण करते दिखे समीर लाल जैसे पुराने और चर्चित ब्लोगर ....कहीं सादगी के साथ अलख जगाते दिखे ज्ञान दत्त पांडे तो कहीं शब्दों के माया जाल में उलझाते रहे अजित वाडनेकर ........कहीं हिन्दी के उत्थान के लिए सारथी का शंखनाद तो कहीं मुहल्ला और भड़ास का जिंदाबाद ......कारवां चलता रहा लोग शामिल होते रहे और बढ़ता रहा दायरा हिन्दी का कदम-दर कदम .....!

इस कारवां में शामिल रहे उदय प्रकाश , विष्णु नागर , विरेन डंगवाल , लाल्टू , बोधिसत्व और सूरज प्रकाश जैसे वरिष्ठ साहित्यकार तो दूसरी तरफ़ पुण्य प्रसून बाजपेयी और रबिश कुमार जैसे वरिष्ठ पत्रकार ....कहीं मजबूत स्तंभ की मानिंद खड़े दिखे मनोज बाजपेयी जैसे फिल्मकार तो कहीं आलोक पुराणिक जैसे अगड़म-बगड़म शैली के रचनाकार ......कहीं दीपक भारतदीप का प्रखर चिंतन दिखा तो कहीं सुरेश चिपलूनकर का महा जाल....कहीं रेडियो वाणी का गाना तो कहीं कबाड़खाना ....
तमाम समानताओं के बावजूद जहाँ उड़न तश्तरी का पलड़ा भारी दिखा वह था मानसिक हलचल के मुकाबले उड़न तश्तरी पर ज्यादा टिपण्णी आना और मानसिक हलचल के मुकावले उड़न तश्तरी के द्वारा सर्वाधिक चिट्ठों पर टिपण्णी देना । इसप्रकार सक्रियता में अग्रणी रहे श्री समीर लाल जी और सकारात्मक सोच के साथ हिन्दी चिट्ठाकारी में अपनी उद्देश्यपूर्ण भागीदारी में अग्रणी दिखे श्री ज्ञान दत्त पांडे जी । रचनात्मक आन्दोलन के पुरोधा रहे श्री रवि रतलामी जी , जबकि सकारात्मक लेखन के साथ-साथ हिन्दी के प्रस्दर-प्रचार में अग्रणी दिखे श्री शास्त्री जे सी फिलिप जी । विधि सलाह में अग्रणी रहे श्री दिनेश राय द्विवेदी जी और तकनीकी सलाह में अग्रणी रहे श्री उन्मुक्त जी । वहीं श्रद्धेय अनूप शुक्ल समकालीन चर्चा में अग्रणी दिखे और श्री दीपक भारतदीप गंभीर चिंतन में । इसीप्रकार श्री राकेश खंडेलवाल जी कविता-गीत-ग़ज़ल में अग्रणी दिखे ।
महिला चिट्ठाकारों के विश्लेषण के आधार पर हम जिन नतीजों पर पहुंचे है उसके अनुसार कविता में अग्रणी रहीं रंजना उर्फ़ रंजू भाटिया वहीँ कथा-कहानी में अग्रणी रहीं निर्मला कपिला , ज्योतिषीय परामर्श में अग्रणी रही संगीता पूरी वहीँ व्यावहारिक वार्तालाप में अग्रणी रही ममता । समकालीन सोच में घुघूती बासूती और गंभीर काव्य चिंतन में अग्रणी दिखी आशा जोगलेकर। सांस्कृतिक जागरूकता में अग्रणी दिखी अल्पना वर्मा वहीँ समकालीन सृजन में अग्रणी रही प्रत्यक्षा । इसीप्रकार कविता वाचकनवी सांस्कृतिक दर्शन में अग्रणी रही।
हिन्दी ब्लोगिंग के सात आश्चर्य यानि वर्ष के सात अद्भुत चिट्ठे । इसमें कोई संदेह नही कि संगणित भूमंडल की अद्भुत सृष्टि हैं चिट्ठे।यदि हिन्दी चिट्ठों की बात की जाय तो आज का हिन्दी चिटठा अति संवेदनात्मक दौर में है , जहां नित नए प्रयोग भी जारी हैं। मसलन समूह ब्लाग का चलन ज्यादा हो गया है। ब्लागिंग कमाई का जरिया भी बन गया है। लिखने की मर्यादा पर भी सवाल उठाए जाने लगे हैं। ब्लाग लेखन को एक समानान्तर मीडिया का दर्जा भी हासिल हो गया है। हिंदी साहित्य के अलावा विविध विषयों पर विशेषज्ञ की हैसियत से भी ब्लाग रचे जा रहे हैं । विज्ञान, सूचना तकनीक, स्वास्थ्य और राजनीति वगैरह कुछ भी अछूता नहीं है। समस्त प्रकार के विश्लेषणों के उपरांत वर्ष के सात अद्भुत चिट्ठों के चयन में केवल दो व्यक्तिगत चिट्ठे ही शामिल हो पा रहे थे जबकि पांच कम्युनिटी ब्लॉग थे , ऐसे में उन पाच कम्युनिटी ब्लॉग को अलग रखने के बाद वर्ष-२००९ के सात अद्भुत हिन्दी चिट्ठों की स्थिति बनी है वह इसप्रकार है --ताऊ-डौंट-इन ( रामपुरिया का हरयाणवी ताऊनामा ...),हिन्दी ब्लॉग टिप्स,रेडियो वाणी,शब्दों का सफर,सच्चा शरणम,महाजाल पर सुरेश चिपलूनकर (Suresh Chiplunkar) और कल्पतरु ।
अब आईये उन चिट्ठाकारों की बात करते है, जिनका अवदान हिन्दी चिट्ठाकारी में अहम् है और वर्ष -२००९ में अपनी खास विशेषताओं के कारण लगातार चार्चा में रहे हैं । साहित्यिक-सांस्कृतिक -सामाजिक - विज्ञानं - कला - अध्यात्म और सदभावनात्मक लेखन में अपनी खास शैली के लिए प्रसिद्द चिट्ठाकारो में लोकप्रिय एक-एक चिट्ठाकार का चयन किया गया है । इस विश्लेषण के अंतर्गत जिन सात चिट्ठाकारों का चयन किया गया है ,उसमें भाषा-कथ्य और शिल्प की दृष्टि से उत्कृष्ट लेखन के लिए श्री प्रमोद सिंह ( चिट्ठा - अजदक ) । व्यंग्य लेखन के लिए श्री अविनाश वाचस्पति (चिट्ठा - की बोर्ड का खटरागी ) । लोक -कला संस्कृति के लिए श्री विमल वर्मा ( चिटठा- ठुमरी ) । सामाजिक जागरूकता से संबंधित लेखन के लिए श्री प्रवीण त्रिवेदी ( चिटठा- प्राईमरी का मास्टर ) । विज्ञानं के लिए श्री अरविन्द मिश्र ( चिटठा - साईं ब्लॉग ) । अभिकल्पना और वेब-अनुप्रयोगों के हिन्दीकरण के लिए श्री संजय बेगाणी ( चिटठा - जोग लिखी ) और सदभावनात्मक लेखन के लिए श्री महेंद्र मिश्रा ( चिट्ठा - समयचक्र ) का उल्लेख किया जाना प्रासंगिक प्रतीत हो रहा है । उल्लेखनीय है कि ये सातों चिट्ठाकार केवल चिट्ठा से ही नहीं अपने-अपने क्षेत्र में सार्थक गतिविधियों के लिए भी जाने जाते है और कई मायनों में अनेक चिट्ठाकारों के लिए प्रेरक की भूमिका निभाते हैं ।
विदेशों में रहने वाले हिंदी चिट्ठाकार इस दृष्टि से अति महत्वपूर्ण है कि उनकी सोच - विचारधाराओं में अलग-अलग देशों की विभिन्न सामाजिक, सांस्कृतिक परिस्थितियाँ हिन्दी की व्यापक रचनाशीलता का अंग बनती हैं, विभिन्न देशों के इतिहास और भूगोल का हिन्दी के पाठकों तक विस्तार होता है। विभिन्न शैलियों का आदान -प्रदान होता है और इस प्रकार हिंदी अंतर्राष्ट्रीय मंच पर अपनी सार्थक उपस्थिति दर्ज कराने में कामयाब होती दिखती है । वैसे विश्व के विभिन्न देशों में बसे अप्रवासी /प्रवासी भारतीय साहित्यकारों / चिट्ठाकारों / कवियों में - अमेरिका से- अंजना संधीर, अखिलेश सिन्हा,अचला दीपक कुमार, डॉ अनिल प्रभा कुमार, डॉ. अमिता तिवारी, अनूप भार्गव, अरुण, कैलाश भटनागर, नीलम जैन, बिंदु भट्ट, मानोशी चैटर्जी , मैट रीक , राकेश खंडेलवाल , राजीव रत्न पराशर , राधेकांत दवे , रानी पात्रिक , डॉ राम गुप्ता , प्रो. रामनाथ शर्मा , रूपहंस हबीब , रेनू गुप्ता , लावण्या शाह , विजय ठाकुर , विनय बाजपेयी , श्रीकृष्ण माखीजा , स्वयम दत्ता , सरोज भटनागर , साहिल लखनवी , डॉ सुदर्शन प्रियदर्शिनी , सुभाष काक , सुरेंद्र नाथ तिवारी , सुरेंद्रनाथ मेहरोत्रा , डॉ सुषम बेदी , सौमित्र सक्सेना , हिम्मत मेहता , ऑस्ट्रेलिया से- ब्बास रज़ा अल्वी , अनिल वर्मा , ओमकृष्ण राहत , कैलाश भटनागर , राय कूकणा , रियाज़ शाह , शैलजा चंद्रा , सादिक आरिफ़ , सुभाष शर्मा , हरिहर झा , इंडोनेशिया से— अशोक गुप्ता , राजेश कुमार सिंह , ओमान से— रामकृष्ण द्विवेदी मधुकर, कुवैत से— दीपिका जोशी संध्या , कैनेडा से— अश्विन गांधी , चंद्र शेखर त्रिवेदी , पराशर गौड़ , भगवत शरण श्रीवास्तव शरण , भारतेंदु श्रीवास्तव , डॉ शैलजा सक्सेना , स्वप्न मंजूषा शैल , सुमन कुमार घई , जर्मनी से— अंशुमान अवस्थी , रजनीश कुमार गौड़ , विशाल मेहरा , जापान से— प्रो सुरेश ऋतुपर्ण , डेनमार्क से— चाँद हदियाबादी , दक्षिण अफ्रीका से— अमिताभ मित्रा , संतोष कुमार खरे , न्यूज़ीलैंड से— विजेंद्र सागर , नॉर्वे से— प्रभात कुमार , रंजना सोनी , सुरेशचंद्र शुक्ल शरद आलोक नीदरलैंड से— अंजल प्रकाश , बाहरीन से— डॉ परमजीत ओबेराय , ब्रिटेन से— डॉ. अजय त्रिपाठी , इंदुकांत शुक्ला , उषाराजे सक्सेना , उषा वर्मा , डॉ. कृष्ण कन्हैया , गौतम सचदेव , तेजेंद्र शर्मा , दिव्या माथुर , प्राण शर्मा , पुष्पा भार्गव , महावीर शर्मा , मोहन राणा , ललित मोहन जोशी , लालजी वर्मा , शैल अग्रवाल पोलैंड से— डॉ सुरेंद्र भूटानी , फ्रांस से— हंसराज सिंह वर्मा कल्पहंस , फ़ीजी— आलोक शर्मा , जय नन प्रसाद मॉरिशस— गुलशन सुखलाल , युगांडा से— डॉ भावना कुंअर , मनोज भावुक , रूस से— अनिल जनविजय, संयुक्त अरब इमारात से— अर्बुदा ओहरी, आरती पाल बघेल , कृष्ण बिहारी , चंद्रमोहन भंडारी , पूर्णिमा वर्मन, मीनाक्षी धन्वंतरि , सिंगापुर से— अमरेंद्र नारायण , दीपक वाईकर , शार्दूला , शैलाभ शुभिशाम , सूरीनाम से— पुष्पिता , त्रिनिडाड से— आशा मोर आदि सर्वाधिक सक्रीय हैं ।
एक चिट्ठाकार की हैसियत से वर्ष -२००९ में सर्वाधिक सक्रीय रहे प्रवासी/ अप्रवासी चिट्ठाकारों में अग्रणी रहे श्री समीर लाल , राकेश खंडेलवाल , महावीर शर्मा , अनुराग शर्मा , राजेश दीपक आर सी मिश्र दिगम्बर नासवा babali जीतू , मीनाक्षी , देवी नागरानी , लावण्या शाह , आशा जोगलेकर , कविता वाचक्नवी Kavita Vachaknavee आदि । वर्ष के तीन प्रखर इस प्रकार है -श्री महावीर शर्मा,श्री अनुराग शर्मा और श्री जीतू ।
पांच सर्वाधिक लोकप्रिय सामुदायिक चिट्ठों का उल्लेख किया जाए तो वह क्रमश: इस प्रकार है -मोहल्ला,चिट्ठा चर्चा, भड़ास blog,कबाड़खाना और tasliim । उपरोक्त चिट्ठों के अलावा वर्ष -२००९ में जिन अन्य महत्वपूर्ण चिट्ठों की सहभागिता परिलक्षित हुयी है उनमें से महत्वपूर्ण है - महाशक्ति समूह । इस ब्लॉग के प्रमुख सदस्य हैं -प्रमेन्द्र प्रताप सिंह amit mann मिहिरभोज Rajeev गिरीश बिल्लोरे 'मुकुल' तेज़ धार राज कुमार रीतेश रंजन आशुतॊष Abhiraj Suresh Chiplunkar Shakti महासचिव Vishal Mishra पुनीत ओमर maya anoop neeshoo अभिषेक शर्मा Chandra Vaibhav Singh आदि । कहा गया है कि सामूहिकता का मतलब केवल मुंडी गिनाने से नहीं होता वल्कि सामूहिक रूप से सबके हितार्थ कार्य करने से होता है । इस दृष्टि से जो चिट्ठे प्रशंसनीय है उनका उल्लेख प्रासंगिक प्रतीत हो रहा है , ये नाम इस प्रकार है- KHAJANA NOW जबलपुर-ब्रिगेड ,नुक्कड़,चोखेर वाली,अनुनाद,नैनीताली और उत्तराखंड के मित्र,उल्टा तीर,कवियाना,माँ !,पिताजी,जनोक्ति : संवाद का मंच,बुन्देलखण्ड,हिन्दी साहित्य मंच,पांचवा खम्बा,पहला एहसास,मेरे अंचल की कहावतें,प्रिंट मीडिया पर ब्लॉगचर्चा,लखनऊ ब्लॉगर एसोसिएशन,कुछ तो है.....जो कि !,कबीरा खडा़ बाज़ार में,हिन्दोस्तान की आवाज़,Science Bloggers' Association,हमारी बहन शर्मीला (our sister sharmila),फाइट फॉर राईट,हमारी अन्‍जुमन,हिन्दुस्तान का दर्द ,भोजपुरी चौपाल,TheNetPress.Com.,उल्टा तीर,सूचना का अधिकार,हरि शर्मा - नगरी-नगरी द्वारे-द्वारे,हँसते रहो हँसाते रहो,Ek sawaal tum karo,स्मृति-दीर्घा,बगीची,तेताला,भारतीय शिक्षा - Indian Education,मीडिया मंत्र (मीडिया की खबर),हास्य कवि दरबार,सबद-लोक,The World of Words,वेबलाग पर...At Hindi Weblog,यूँ ही निट्ठल्ला,नारी का कविता ब्लॉग,नारी ब्लॉग के सदस्यों का परिचय,बुनो कहानी,नन्हा मन,दाल रोटी चावल,आदि ।

वर्ष-२००९ में हिन्दी ब्लोगिंग के मुद्दों पर आधारित १० शीर्ष चिट्ठाकार की बात करने से पहले हम कुछ ऐसे यशश्वी चिट्ठाकारों के चर्चा करना चाहते हैं जिनके अवदान को हिंदी ब्लॉग जगत कभी नकार ही नहीं सकता । कभी-कभी ऐसा भी होता है जब हम राजनीति , खेल , मनोरंजन और मुद्दों में उलझकर साहित्य - संस्कृति और कला को महत्व देने वाले महत्वपूर्ण चिट्ठों को भूल जाते हैं जबकि ये तीनों तत्त्व किसी भी देश और समाज के आईना होते है । आईये हम कुछ ऐसे चिट्ठाकारों की चर्चा करते हैं जिनके साहित्यिक- सांस्कृतिक और कलात्मक योगदान से समृद्ध हो रहा है अपना यह हिंदी ब्लॉग जगत । इस प्रकार के सारे चिट्ठों की चर्चा करना इस संक्षिप्त विश्लेषण के अंतर्गत संभव नहीं है फिर भी उन लेखकों -कलाकारों आदि की चर्चा के जा रही है जिनकी वर्ष-२००९ में सर्वाधिक सक्रियता रही है ।
वर्ष -२००९ में अपनी गतिविधियों से लगातार चर्चा में रहे हैं श्री अलवेला खत्री,अजय कुमार झा,बी एस पाबला,जी के अवधिया,डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक,रश्मि प्रभा,गौतम राजरिशी,संजीव तिवारी,काजल कुमार,विरेन्द्र जैन,गिरीश पंकज,महफूज़ अली आदि ।
जो वर्ष-२००८ के उत्तरार्द्ध में अथवा वर्ष-२००९ के मध्य तक हिंदी ब्लॉग जगत का हिस्सा बने हैं और अपने कौशल व् प्रतिभा के बल पर वर्ष-२००९ के चर्चित चिट्ठाकारों में शुमार हो चुके हैं वे यशश्वी चिट्ठाकार हैं -ओम आर्य, कृष्ण कुमार यादव,राज कुमार केसवानी,ललित शर्मा,खुशदीप सहगल,गिरिजेश राव, अभिषेक ओझा,इरफ़ान,सुरेश शर्मा (कार्टूनिस्ट) और प्रीति टेलर आदि ।
वर्ष के ऐसे दस चिट्ठाकारो की जो पूरे वर्ष भर हिंदी ब्लॉग जगत के माध्यम से मुद्दों की बात पूरी दृढ़ता के साथ करते रहे हैं .... वे या तो किसी समाचार पत्र में संपादक अथवा संवाददाता है अथवा ऑफिस रिपोर्टर या फिर वकील अथवा स्वतन्त्र लेखक , व्यंग्यकार और स्तंभ लेखक आदि...ये चिट्ठाकार अपने कार्यक्षेत्र के दक्ष और चर्चित हस्ती हैं , फिर भी इनका योगदान वर्ष-२००९ में हिंदी ब्लोगिंग में बढ़- चढ़कर रहा है । इसमें से कई ब्लोगर चिट्ठाजगत की सक्रियता में शीर्ष पर हैं और समाज -देश की तात्कालिक घटनाओं पर पूरी नज़र रखते हैं । ये ब्लोगर प्रशंसनीय ही नहीं श्रद्धेय भी हैं ।
पहले स्थान पर है-रवीश कुमार का कस्बा,दूसरे स्थान पर हैं -पुण्य प्रसून बाजपेयी, तीसरा चिट्ठा है आलोक पुराणिक की अगड़म बगड़म, इस क्रम का चौथा चिटठा है- समाजवादी जनपरिषद,इस क्रम का पांचवा चिटठा है- मसिजीवी,इस क्रम के छठे चिट्ठाकार है- राजकुमार ग्वालानी,इस क्रम कॆ सातवें चिट्ठाकार हैं- प्रभात गोपाल झा,इस क्रम का आठवा चिट्ठा है -डा महेश परिमल का संवेदनाओं के पंख, इस क्रम के नौवें चिट्ठाकार है - सुमन यानि लोकसंघर्ष सुमन,लो क सं घ र्ष ! के अलावा इन्हें आप गंगा के करीब ….उल्टा तीर…..भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी बाराबंकी…..ठेनेत्प्रेस.कॉम…..लोकसंघर्ष छाया….लोक वेब मीडिया…..हिन्दुस्तान का दर्द…..रंगकर्मी रंगकर्मी……भड़ास ब्लॉग….ब्लॉग मदद…..लखनऊ ब्लॉगर एसोसिएशन……कबीरा खडा़ बाज़ार में…आदि पर भी देख सकते हैं । इस क्रम की दसवीं महिला चिट्ठाकार हैं -अन्नू आनंद सुश्री आनंद का हिंदी चिट्ठा है- अनसुनी आवाज,अनसुनी आवाज़ उन लोगों की आवाज़ है जो देश के दूर दराज़ के इलाकों में अपने छोटे छोटे प्रयासों के द्वारा अपने घर, परिवार समुदाय या समाज के विकास के लिए संघर्षरत हैं।
वर्ष -२००९ में श्री दीपक भारत दीप जी के द्वारा अपने ब्लॉग क्रमश: ..... दीपक भारतदीप की अंतर्जाल पत्रिका ...शब्दलेख सारथी .....अनंत शब्दयोग ......दीपक भारतदीप की शब्द योग पत्रिका .....दीपक बाबू कहीन .....दीपक भारतदीप की हिंदी पत्रिका .....दीपक भारतदीप की ई पत्रिका .....दीपक भारतदीप की शब्द पत्रिका .....दीपक भारतदीप की शब्दलेख पत्रिका ......दीपक भारतदीप की शब्द ज्ञान पत्रिका .....राजलेख की हिंदी पत्रिका ....दीपक भारत दीप की अभिव्यक्ति पत्रिका ...दीपक भारतदीप की शब्द प्रकाश पत्रिका .....आदि के माध्यम से पुराने चिट्ठाकारों के श्रेणी में सर्वाधिक व्यक्तिगत ब्लॉग पोस्ट लिखने का गौरव प्राप्त किया है । इसप्रकार इस चिट्ठाकार का हिंदी ब्लॉग जगत को समृद्ध करने में विशिष्ट योगदान हैं । इसी श्रेणी में दूसरे स्थान पर हैं एक ऐसी संवेदनशील महिला चिट्ठाकार , जिनकी संवेदनशीलता उनके बहुचर्चित ब्लॉग पारुल चाँद पुखराज का ...पर देखी जा सकती है । इस ब्लॉग पर पहले तो गंभीर और गहरी अभिव्यक्ति की साथ कविता प्रस्तुत की जाती थी , किन्तु अब गहरे अर्थ रखती गज़लें सुने जा सकती है । सुश्री पारुल ने शब्द और संगीत को एक साथ परोसकर हिंदी ब्लॉगजगत में नया प्रयोग कर रही हैं , जो प्रशंसनीय है ।
चलते- चलते मैं यह बता दूं कि वर्ष-२००९ में हास्य-व्यंग्य के दो चिट्ठों ने खूब धमाल मचाया पहला ब्लॉग है श्री राजीव तनेजा का हंसते रहो । आज के भाग दौर , आपा धापी और तनावपूर्ण जीवन में हास्य ही वह माध्यम बच जाता है जो जीवन में ताजगी बनाये रखता है । इस दृष्टिकोण से राजीव तनेजा का यह चिटठा वर्ष-२००९ में हास्य का बहुचर्चित चिटठा होने का गौरव हासिल किया है । दूसरा चिटठा है -के. एम. मिश्र का सुदर्शन । इसपर हास्य और व्यंग्य के माध्यम से समाज की विसंगतियों पर प्रहार किया जाता है । के .एम. मिश्र का कहना है कि व्यंग्य, साहित्य की एक गम्भीर विधा है । व्यंग्य और हास्य में बड़ा अन्तर होता है । हास्य सिर्फ हॅसाता है पर व्यंग्य कचोटता है, सोचने पर मजबूर कर देता है । व्यंग्य आहत कर देता है । सकारात्मक व्यंग्य का उद्देश्य किसी भले को परेशान करना नहीं बल्कि बुराइयों पर प्रहार करना है चाहे वह सामाजिक, आर्थिक या राजनैतिक हो । सुदर्शन सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक विसंगतियों, भ्रष्टाचार, बुराइयों, कुरीतियों, राष्ट्रीय, अन्तर्राष्ट्रीय घटनाओं, बाजार, फिल्म, मीडिया, इत्यादि पर एक कटाक्ष है ।
वहीं तहजीब के शहर लखनऊ के श्री सलीम ख़ान..........स्वच्छ सन्देश: हिन्दोस्तान की आवाज़ में अपने स्पष्टवादी दृष्टिकोण के साथ-साथ विभिन्न चिट्ठों पर अपनी तथ्यपरक टिप्पणियों के लिए लगातार चर्चा में बने रहे । डा० अमर कुमार जी ने स्वयं को चर्चा से ज्यादा चिंतन में संलग्न रखा । -रवीश कुमार जी ने महत्वपूर्ण चिट्ठों के बारे में लगातार प्रिंट मिडिया के माध्यम से अवगत कराया । श्री पुण्य प्रसून बाजपेयी अपनी राजनीतिक टिप्पणियों तथा तर्कपूर्ण वक्तव्यों के लिए लगातार चर्चा में बने रहे । हिंदी ब्लोगिंग के लिए सबसे सुखद बात यह है कि इस वर्ष हिन्दीचिट्ठों कि संख्या १५००० के आसपास पहुंची । वर्ष का सर्वाधिक सक्रीय क्षेत्र रहा मध्यप्रदेश और छतीसगढ़ । वर्ष का सर्वाधिक सक्रीय शहर रहा भोपाल और रायपुर । वर्ष में सर्वाधिक पोस्ट लिखने वाले नए चिट्ठाकार रहे डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक । वर्ष में सर्वाधिक टिपण्णी करने वाले चिट्ठाकार रहे श्री श्री समीर लाल । वर्ष भर हिंदी चिट्ठों की चर्चा करने वाला चर्चित सामूहिक चिटठा रहा चिट्ठा चर्चा । सर्वाधिक समर्थकों वाला तकनीकी ब्लॉग रहा हिंदी ब्लॉग टिप्स । अबतक मुम्बईया हिंदी के स्वर फिल्मों में ही सुनाई देते थे किन्तु इस बार हिंदी ब्लॉग जगत में इसे सर्किट ने प्रस्तुत करके ख्याति अर्जित की ।
वर्ष-2009 में साहित्य-संस्कृति और कला को समर्पित अत्यधिक चिट्ठों का आगमन हुआ । चिट्ठों कि चर्चा करते हुए इस वर्ष श्री रवि रतलामी जी , श्री अनूप शुक्ल जी और मसिजीवी ज्यादा मुखर दिखे । चुनौतीपूर्ण पोस्ट लिखने में इस बार महिला चिट्ठाकार पुरुष चिट्ठाकार की तुलना में ज्यादा प्रखर रहीं । इस वर्ष मुद्दों पर आधारित कतिपय ब्लॉग से हिंदी पाठकों का परिचय हुआ । इस वर्ष फादर्स डे पर एक नया सामूहिक ब्लॉग पिताजी से भी मुखातिब हुआ हिंदी का पाठक । मुद्दों पर आधारित नए राजनीतिक चिट्ठों में सर्वाधिक अग्रणी रहा - बिगुल .......आदि । वर्ष का सर्वाधिक ज्वलंत मुद्दा रहा - स्लम डॉग , सलैंगिकता और मंहगाई आदि । सबसे सुखद बात तो यह रही कि विगत कई वर्षों से अग्रणी श्री श्री समर लाल जी, श्री ज्ञान दत्त पांडे जी , श्री रवि रतलामी जी , श्री अनूप शुक्ल जी , श्री शास्त्री जे सी फिलिप जी , श्री दीपक भारतदीप जी , श्री दिनेशराय द्विवेदी जी आदि अपने सम्मानित स्थान को सुरक्षित रखने में सफल रहे ।वर्ष का एक और सुखद पहलू यह रहा की चिट्ठा चर्चा ने १००० पोस्ट की सीमा रेखा पार की । कुलमिलाकर देखा जाए तो हिन्दी ब्लोगिंग की दृष्टि से सार्थक रहा वर्ष-२००९ .
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दृष्टव्य :उपरोक्त सभी जानकारियाँ वर्ष-२००९ में परिकल्पना ब्लॉग विश्लेषण के अंतर्गत दी जा चुकी है , यद्यपि परिकल्पना का वार्षिक ब्लॉग विश्लेषण-२०१० आज से प्रकाशित किया जा रहा है, इसलिए वर्ष-२००९ की प्रमुख झलकिया एक साथ प्रकाशित की जा रही है , लिंक के लिए कृपया इन लिंक पर जाएँ -

http://www.parikalpnaa.com/2009/10/blog-post.html
http://www.parikalpnaa.com/2009/10/2009-2.html
http://www.parikalpnaa.com/2009/10/2009-3.html
http://www.parikalpnaa.com/2009/10/2009-4.html
http://www.parikalpnaa.com/2009/10/2009-5.html
http://www.parikalpnaa.com/2009/10/2009-6.html
http://www.parikalpnaa.com/2009/11/2009-7.html
http://www.parikalpnaa.com/2009/10/2009-8.html
http://www.parikalpnaa.com/2009/10/2009-9.html
http://www.parikalpnaa.com/2009/10/2009-10.html
http://www.parikalpnaa.com/2009/10/2009-11.html
http://www.parikalpnaa.com/2009/10/2009-12.html
http://www.parikalpnaa.com/2009/11/2009-13.html
http://www.parikalpnaa.com/2009/10/2009-14.html
http://www.parikalpnaa.com/2009/10/2009-15.html
http://www.parikalpnaa.com/2009/10/2009-16.html
http://www.parikalpnaa.com/2009/11/2009-17.html
http://www.parikalpnaa.com/2009/10/2009-18.html
http://www.parikalpnaa.com/2009/11/2009-19.html
http://www.parikalpnaa.com/2009/12/2009-20.html
http://www.parikalpnaa.com/2009/12/2009-21.html
http://www.parikalpnaa.com/2009/12/2009-22.html
http://www.parikalpnaa.com/2009/12/2009-23.html
http://www.parikalpnaa.com/2009/12/2009-24.html
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http://utsav.parikalpnaa.com/2010/06/blog-post_07.html
http://www.srijangatha.com/mulyankan_6jun210
http://loksangharsha.blogspot.com/2010/06/2009-7.html
http://bharhaas.blogspot.com/2010/06/2009-7.html
http://kabirakhadabazarmein.blogspot.com/2010/06/2009-7.html

वर्ष-२०१० के शीर्ष १०० ब्लोग्स के बारे में जानिए

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जैसा कि आप सभी जानते ही होंगे कि हिंदी के पहले ब्लॉग का नाम नौ दो ग्यारह था,इसीलिए  परिकल्पना ब्लॉग विश्लेषण-२०१० का समापन भी ९/२/११ को ही  किया गया, जिसमें - 

परिकल्पना ब्लॉग विश्लेषण के आधार पर वर्ष-२०१० के  शीर्ष  १०० ब्लॉग का उल्लेख किया गया !
साथ ही -वर्ष-२०१० में सर्वाधिक पढ़े गए शीर्ष तीन व्यक्तिगत ब्लॉग......वर्ष -२०१० में सर्वाधिक पढ़े गए शीर्ष तीन नवोदित ब्लॉग......वर्ष-२०१० में सर्वाधिक पढ़े गए शीर्ष तीन ब्लॉग चर्चा से संवंधित ब्लॉग.......
आदि से पाठकों को रूबरू कराया गया !
किन्तु दुर्भाग्यवश तकनीकी कारणों से पूरे २४ घंटे तक परिकल्पना ब्लॉग इंटरनेट से गायब रहा और हमारे सम्मानित पाठक गण इस विश्लेषण को नहीं पढ़ पाए , जिसका मुझे खेद है !
अब लिंक खुल गया है और परिकल्पना पूर्व की तरह आपके सामने है -
अवश्य पढ़ें और अपनी राय से अवगत करावें -

हिंदी ब्लॉगिंग और आपकी सोच

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मित्रो,
आज मैं एक परिचर्चा लेकर आप सभी के समक्ष उपस्थित हूँ ....जैसा की आप सभी को विदित है कि  विगत दिनों हिंदी बलॉगिंग के स्वरुप,व्याप्ति और संभावनाओं को लेकर ब्लॉग जगत में काफी गर्मागर्म वहस हुई , साथ ही ब्लॉगिंग के ऊपर सरकार के द्वारा नकेल कसे जाने की संभावनाओं को भी कुछ ब्लॉगर्स ने सिरे से खारिज करते हुए एक अभियान चलाया ! इस सन्दर्भ में हिंदी के कुछ प्रवुद्ध लोगों की राय आपके समक्ष प्रस्तुत है ... आईये आप भी इस परिचर्चा में शामिल होईये ,विषय है हिंदी ब्लॉगिंग और आपकी सोच ?







हिन्दी ब्लॉगिंग शैशवा-वस्था से आगे निकल कर किशोरावस्था को पहुँच रही है. अलबत्ता इसे मैच्योर होने में बरसों लगेंगे. अंग्रेज़ी के गुणवत्ता पूर्ण (हालांकि वहाँ भी अधिकांश - 80 प्रतिशत से अधिक कचरा और रीसायकल सामग्री है,), समर्पित ब्लॉगों की तुलना में हिन्दी ब्लॉगिंग पासंग में भी नहीं ठहरता. मुझे लगता है कि तकनीक के मामले में हिन्दी कंगाल ही रहेगी. बाकी साहित्य-संस्कृति से यह उत्तरोत्तर समृद्ध होती जाएगी - एक्सपोनेंशियली.
  • रवि रतलामी, भोपाल 
    (हिंदी इंटरनेट में एक जाना पहचाना नाम)




हिन्दी ब्लोगिंग सृजन एवं जनसंचार के क्षेत्र में नई संभावनाएं लेकर सामने आई है। उसने एक उत्तेजक वातावरण का निर्माण किया है तथा परस्पर संवाद और विचार विमर्श के नये रास्ते खोले हैं और इसका स्वागत होना चाहिए ताकि इसमें ज्यादा से ज्यादा लोगों की भागीदारी होनी चाहिए। यह भागीदारी जैसे विस्तार पायेगी ब्लागिंग का क्षेत्र अधिक उत्तेजक विचारपूर्ण और उपयोगी होता जायेगा।


  • शकील सिद्दीकी 
    (प्रगतिशील लेखक संघ के राष्ट्रीय परिषद के सदस्य)






हिन्दी ब्लोगिंग अभी, मेरी निगाह में, शिशु हॆ जिसे परवरिश की दरकार हॆ । इसे बहुत स्नेह चाहिए ऒर प्रोत्साहन भी ।अच्छी बात यह हॆ कि इसे पालने-पोसने वाले मॊजूद हॆं । इसका अधिक से अधिक प्रयोग ही इसकी सफलता की कुंजी हॆ । हां इसका उपयोग मर्यादित होना चाहिए । मर्यादा मिल जुल कर निर्धारित की जा सकती हॆ । जानकारों ऒर विशेषज्ञों को सेवा भाव से भी सामने आना होगा । अभी तो खुलकर उपयोग हो ।
हिदी का महत्त्व जितना बढ़ेगा, हिन्दी का ब्लाग भी बढ़ेगा ।


  • दिविक रमेश
(सुपरिचित हिंदी कवि )






ब्लॉग की दुनिया में मैं शिशु हूं ओर मुझे अभी घुटनों-घुटनों भी चलना नहीं आता है। वो तो भला हो अविनाश वाचस्पति जैसे मित्रों का जिन्होंनें मुझ अनाड़ी को इस क्षेत्र का नौसिखिया खिलाड़ी बना दिया। मैंनें जब लिखना आरंभ किया तो , ये मेरी अल्पज्ञता हो सकती है, ब्लॉग की दुनिया विकास की ओर उन्मुख थी। आज तो चारों ओर ब्लॉग ही ब्लॉग नजर आते हैं।
  • प्रेम जनमेजय
(आधुनिक हिंदी व्यंग्य की तीसरी पीढ़ी के सशक्त हस्ताक्षर)

जारी है परिचर्चा, मिलते हैं एक विराम के बाद ............ 

हिंदी ब्लॉगिंग और आपकी सोच ? (दूसरा भाग)

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......गतांक से आगे बढ़ते हुए

 

मित्रो,
कल  मैं एक परिचर्चा लेकर आप सभी के समक्ष उपस्थित था  ....विषय था हिंदी ब्लॉगिंग और आपकी सोच ? इस सन्दर्भ में आईये हिंदी के कुछ और प्रवुद्ध लोगों की राय जानते हैं -



 हिंदी ब्लॉगिंग अभी तो  शुरुआती दौर से ही गुजर रही है। एक छोटा-सा समाज है। लोग एक-दूसरे को जानने लगे हैं। परस्पर व्यक्तिगत संबंध स्थापित हो रहे हैं। बाद में शायद यह वाला आयाम न रहे। रोज नए लोग आ रहे हैं। समुदाय बढ़ता जा रहा है। कभी कभार थोड़े-बहुत विवाद हो जाते हैं, मगर जल्द ही हल भी हो जाते हैं। मैं हिन्दी ब्लॉगिंग के सुनहरे भविष्य के लिये पूर्णतः आशान्वित हूँ।आने वाले समय में हिंदी ब्लॉगिंग एक बडी ताकत के रूप में उभर कर सामने आएगी  । इसलिए ब्लॉगिंग करने वाले हर ब्लॉगर को एक जिम्मेदारी का स्वत: अहसास होना चाहिए ।
  • समीर लाल  
(अन्तराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त हिंदी में अग्रपंक्ति के  ब्‍लॉगर) 



साहित्य का जहाँ तक ताल्लुक है वह रिफाइंड फॉर्म होता है। रिफाइंड फार्म हर ब्लॉग व ब्लॉगर के लेखन को साहित्य नहीं कहा जा सकता है। वर्चुअल दुनिया कि सम्पूर्ण विषय वस्तु साहित्य नहीं है।

ब्लॉग लेखन से नए साहित्य का उदय हो रहा है, यह अद्भुत घटना है। साहित्य का लोकतान्त्रिक स्वरूप विकसित हो रहा है। ब्लॉग लेखन से उत्पन्न साहित्य प्रकाशक, वितरक, विज्ञापन दाताओं के दबाव से मुक्त है। यह साहित्य लोकतान्त्रिक  है।
  •  गौहर रजा 
( अन्तराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त शायर और  जहांगीराबाद मीडिया इंस्टिट्यूट के निदेशक)




ब्लॉगिंग एक ऐसा माध्यम है जिसमें लेखक ही संपादक है और वही प्रकाशक भी होता है। ऐसा माध्यम जो भौगोलिक सीमाओं से पूरी तरह मुक्त, और राजनैतिक-सामाजिक नियंत्रण से लगभग स्वतंत्र है। जहां अभिव्यक्ति न कायदों में बंधने को मजबूर है, न अल कायदा से डरने को। त्वरित अभिव्यक्ति, त्वरित प्रसारण, त्वरित प्रतिक्रिया और विश्वव्यापी प्रसार के चलते ब्लॉगिंग अद्वितीय रूप से लोकप्रिय हो गई है।
जहां तक हिंदी ब्लॉगिंग का प्रश्न है तो इसपर कहीं संगीत उपलब्ध है, कहीं कार्टून, कहीं चित्र तो कहीं वीडियो। कहीं पर लोग मिल-जुलकर पुस्तकें लिख रहे हैं तो कहीं तकनीकी समस्याओं का समाधान किया जा रहा है। ब्लॉग मंडल का उपयोग कहीं भाषाएं सिखाने के लिए हो रहा है तो कहीं अमर साहित्य को ऑनलाइन पाठकों को उपलब्ध कराने में। इंटरनेट पर मौजूद अनंत ज्ञानकोष में ब्लॉग के जरिए थोड़ा-थोड़ा व्यक्तिगत योगदान देने की लाजवाब कोशिश हो रही है। कुलमिलाकर इन गतिविधियों को सुखद कहा जा सकता है !
  • बालेन्दु शर्मा दाधीच
(प्रमुख हिंदी पोर्टल प्रभासाक्षी.कॉम के समूह संपादक )
  

 अंग्रेजी ब्लोगिंग की उम्र लगभग 13 वर्ष है। इन 13 वर्षों में अंग्रेजी ब्लॉगिंग  निरन्तर विकास करती रही। हिन्दी ब्लॉगिंग की शुरुआत  लगभग  7 वर्ष पूर्व हुई; इसका स्पष्ट अर्थ है कि हिन्दी ब्लोगिंग की उम्र अंग्रेजी ब्लोगिंग की उम्र से लगभग आधी है। किन्तु अपने इन 7वर्ष की अवधि के दौरान हिन्दी ब्लॉगिंग में अंग्रेजी ब्लॉगिंग जैसा विकास देखने में नहीं आया, बल्कि कहा तो यह जा सकता है कि हिन्दी ब्लोगिंग में नहीं के बराबर ही विकास हुआ। विशाल संख्या में पाठकों को आकर्षित करना अंग्रजी ब्लॉगिंग की सबसे बड़ी सफलता रही है किन्तु हिन्दी ब्लॉगिंग के पाठकों की संख्या आज भी नगण्य है।  यह सिर्फ हमारी शिक्षानीति का ही दुष्परिणाम है। हिन्दी ब्लॉगिंग को उपयुक्त दिशा प्रदान करने के लिये हिन्दी के प्रति पूर्णतः समर्पित ब्लॉगर्स  को सामने आकर अथक परिश्रम करना होगा।

  • जी. के. अवधिया
( हिंदी ब्लॉगिंग में सकारात्मक लेखन से जुड़े हस्ताक्षर )





हिन्‍दी ब्‍लॉगिंग की दशा समाज से बेहतर को निकाल कर और अपने साथ लेकर बेहतरीन की ओर अग्रसर है जिससे समाज और ब्‍लॉगिंग की दिशा अपनेपन के प्रचार प्रसार में मुख्‍य भूमिका निभा रही है। इसका एक अहसास आप रोजाना कहीं-न-कहीं आयोजित हो रहे ब्‍लॉगर मिलन के संबंध में जारी की गई पोस्‍टो में महसूस कर सकते हैं और इसका सकारात्‍मक और स्‍वस्‍थ असर आप शीघ्र ही समाज पर महसूस करेंगे।

  • अविनाश वाचस्पति
(हिंदी के हरफनमौला बलॉगर और व्यंग्यकार )

आप भी अपने विचारों से अवगत कराएं ताकि इस परिचर्चा को एक सार्थक आयाम दिया जा सके , जारी है परिचर्चा मिलते हैं एक विराम के बाद ........ 

हिंदी ब्लॉगिंग और आपकी सोच ? (तीसरा भाग)

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...............गतांक से आगे बढ़ाते हुए


विगत दो पोस्ट के माध्यम से मैंने परिचर्चा के माध्यम से ०९ प्रबुद्ध जनों के विचारों से आप सभी को रूबरू कराया विषय था हिंदी ब्लॉगिंग और आपकी सोच ? आईये इसी क्रम में कुछ और व्यक्तियों के विचारों से हम आपको रूबरू कराते हैं-




मेरे जैसे अनेक हैं, जो लेखन की दुनियां से पहले कभी जुड़े नहीं रहे। हम पाठक अवश्य रहे। शब्दों के करिश्मे से परिचित अवश्य रहे। पर शब्दों का लालित्य अपने विचारों के साथ देखने का न पहले कभी सुयोग था और न लालसा भी। मैं अपनी कहूं - तो रेलवे के स्टेशनों और यार्ड में वैगनों, कोचों, मालगाड़ियों की संख्या गिनते और दिनो दिन उनके परिचालन में बढ़ोतरी की जुगत लगाते जिंदगी गुजर रही थी। ऐसा नहीं कि उसमें चैलेंज की कमी थी या सृजनात्मकता की गुंजाइश कम थी। फिर भी मौका लगने पर हम जैसों ने ब्लॉगरी का उपयोग किया और भरपूर किया। कुछ इस अन्दाज में भी करने की हसरत रही कि हम कलम के धनी लोगों से कमतर न माने जायें। ब्लॉगिंग तकनीक ने हम जैसे लेखन से दूर रहे को अभिव्यक्ति तथा सृजनात्मकता के प्रयोग के अवसर दिये हैं। और वह सृजनात्मकता शुद्ध लेखन से किसी तरह कमतर नहीं है। इसे स्वीकार न करने वालों को अपने को श्रेष्ठतर बताने के लिये केवल वक्तव्य देना पर्याप्त नहीं होगा। कड़ी मेहनत करनी होगी।
  • ज्ञान दत्त पाण्डेय
( भारतीय रेल में कार्यरत और हिंदी ब्लॉगिंग में सकारात्मक लेखन के सूत्रधार)

My Photoहिंदी ब्लॉगिंग से जुड़े लोगों को इस बात से बड़ी राहत मिलती है कि उनकी भाषा में चिट्ठाकारी तेजी से विकसित हो रही है। चार पांच साल पहले हिंदी ब्लॉग की संख्या उंगलियों पर गिनी जाने लायक थी, लेकिन आज यह तादाद बीस हजार से अधिक है। सक्रिय ब्लॉगरों की संख्या भले इतनी न हो, पर कई ब्लॉगर पूर्ण समर्पण और निष्ठा से हिंदी ब्लागिंग का परचम लहराने में जुटे हैं।लेकिन उन्नति के तमाम कारकों के बीच एक सवाल अहम है कि हिंदी ब्लॉगर आर्थिक रूप से लाभान्वित हो रहे हैं ?

  • पियूष पाण्डेय
( वहुचर्चित साईबर पत्रकार )


चिट्ठाकारिता !  मानव अभिव्यक्ति की संभावनाओं से लबरेज एक अभिनव  पहल -अपने विकास क्रम में मानव ने संचार के आदि हुँकरणों से आगे बढ़ते हुए भाषा बोली और फिर लिपियाँ सृजित की ....अभिव्यक्ति की दुनिया में मुद्रण साहित्य ने मानों एक क्रान्ति ला दी ....और अब डिजिटल अभिव्यक्ति की नयी क्रान्ति का नाम है चिट्ठाकारिता!
इसने सबसे बाजी मार ली है -दुतरफा त्वरित संवाद ,बेडरूम  से टायलेट तक इसकी सहज लोकगम्यता और निरन्तरता ने बाकी के संचार के माध्यमों को काफी पीछे छोड़ दिया है ....ज्यों ज्यों अंतर्जाल की जन उपलब्धता बढ़ती जायेगी लोगों के अभिव्यक्ति  का यह माध्यम विस्तार पाता चला जायेगा -इस डिजिटल वामन ने अपने ब्रह्माण्ड व्यापी 'पूत के पाँव ' दिखाने शुरू कर दिए हैं ......ब्लॉग और सोशल नेट्वर्किंग साईटें आज लोकतंत्र की व्हिसिल ब्लोवर और रहनुमा बन कर भी उभर रही हैं -अफ्रीकी और खाड़ी के देशों में हुई जन क्रान्तियाँ इनकी ताकत दिखा रही हैं .....जनता की आवाज को और बुलंदी देने में ये सहायक बन रही हैं -मनुष्य की अभिव्यक्ति कभी शायद  इतना समवेत सिनर्जिस्टिक  और पावरफुल कभी नहीं थी .....जो लोग इसकी अहमियत को नकार रहे हैं वे अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मार रहे हैं या तो आत्म मुग्धता में उनकी आँखें मुद गयी हैं!
  • डा. अरविन्द मिश्र 
(वहुचर्चित चिट्ठाकार और अध्यक्ष: साईंस ब्लॉगर असोसिएशन ) 


मैंने जब ब्लॉग लिखना शुरू किया था तो देखता था-सबसे ज़्यादा पसंद वाले कॉलम में ऊपर की पांच छह पोस्ट सिर्फ धर्म को लेकर एक-दूसरे पर निशाना साधने वाली ही होती थीं...या फिर किसी पोस्ट में किसी ब्ल़ॉगर का नाम लेकर ही उसे ललकारा जाता रहता था...ये सब बिल्कुल बंद तो नहीं हुआ है, पहले से कम ज़रूर हो गया है...अब अलग-अलग मुद्दों पर जमकर लिखा जा रहा है...ये बड़ा सकारात्मक बदलाव है...हमें अपने ब्लॉग्स के लिए पाठक तभी ज़्यादा मिलेंगे जब उन्हें हमारे लिखे में विभिन्नता और गुणवत्ता मिलेगी...मुझे महसूस हो रहा है...शायद आपको भी हो रहा हो...न जाने क्यों मुझे लग रहा आने वाला साल हिंदी ब्ल़ॉगिंग के लिए कई खुशियांलेकर आने वाला है...इसकी सुगबुगाहट शुरू भी हो चुकी है..!

  • खुशदीप सहगल
(विख्यात मीडियाकर्मी एवं ब्लॉगर )

हिन्दी ब्लॉगिंग में नित बढ़ते ब्लॉग इस बात का कतई द्योतक नहीं हैं कि इससे किसी प्रकार की सामाजिकता, सांस्कृतिकता अथवा भाईचारे में वृद्धि हो रही है। अभी हम ब्लॉग-विकास के उस दौर में हैं जहां स्वयं को स्थापित किया जाना होता है। इसी कारण से ब्लॉग-लेखन के रूप में हमें अभी रोजनामचा सा दिखता है या फिर आपसी विद्वेष। अभी ब्लॉग लेखन में सक्रिय लोग, चाहे वे कितने भी प्रख्यात हों, इसको गहराई से आत्मसात नहीं कर सके हैं। साहित्य के नाम पर, भाषा के नाम पर विकास की बात तो बाद में हो अभी हम अभिव्यक्ति के नाम पर ही कमजोर हैं। इसका एक प्रमुख कारण नामचीन ब्लॉग-लेखकों द्वारा सामयिक विषयों से इतर रोजमर्रा की घटनाओं को प्रमुखता से पोस्ट किया जाना है। एकाधिक ब्लॉग-लेखक ही हैं जो गम्भीरता से ब्लॉग के मर्म को समझकर इस दिशा में कार्य कर रहे हैं। इसके अलावा देखा जाये तो सीखने-सिखाने के इस दौर में ब्लॉग-लेखकों को लेकर भी जबरदस्त गुटबाजी देखने को मिल रही है, जो विकास को नहीं गिरावट को दर्शाती है। अभी बहुत समय है और इस समय ब्लॉग के द्वारा किसी प्रकार की राह निर्मित कर देने की भविष्यवाणी करना अथवा गर्वोक्ति महसूस करना शेखचिल्लीपना ही कहा जायेगा।

  • डॉ0 कुमारेन्द्र सिंह सेंगर
(हिंदी के आलोचक, समीक्षक, चुनाव विश्लेषक, शोध निदेशक)

.........जारी है परिचर्चा, मिलते हैं एक विराम के बाद 
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